कण-कण में ईश्वर होते हुए भी कई बार जीव आनंद को प्राप्त नही कर पाता है। वह संसार के क्षुद्र विषय-सुखों व माया के फंदे में फंस जाता है। जिससे अपने उद्देश्य से भटक जाता है…
जीवन व्यर्थ ही गुजार दिया
आप रात में आकाश में तारे देखते हैं, लेकिन सूरज उगने के बाद उन्हें देख नहीं पाते। इस कारण क्या हम यह कहें कि दिन में आकाश में तारे नहीं होते। अज्ञानता की अवस्था में यदि हमें ईश्वर के दर्शन नहीं होते हैं, तो ऐसा तो नहीं कहा जा सकता है कि ईश्वर है ही नहीं। जैसी जिसकी भावना होगी, वैसा ही उसे लाभ होगा। कोई गरीब युवा पढ़-लिखकर तथा कड़ी मेहनत कर अपने जीवन का भौतिक लक्ष्य पा लेता है। वह मन ही मन सोचता है कि अब मैं मजे में हूँ। मैं उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर आ पहुंचा हूँ। अब मुझे बहुत आनंद है। जब वह अपने कार्य से सेवानिवृत्त होकर अपने विगत जीवन की ओर देखता है, तो उसे लगता है कि उसने अपना सारा जीवन व्यर्थ ही गुजार दिया। तब वह सोचता है कि इस जीवन में मैंने कोई उल्लेखनीय कार्य तो किया ही नहीं।
भगवान का आकर्षण स्थापित
संसार में मनुष्य दो तरह की प्रवृत्तियों के साथ जन्म लेता है। विद्या और अविद्या। विद्या मुक्तिपथ पर ले जाने वाली प्रवृत्ति है, तो अविद्या सांसारिक बंधन में डालने वाली। मनुष्य के जन्म के समय ये दोनों प्रवृत्तियां मानो खाली तराजू के पल्लों की तरह समतल स्थिति में रहती हैं। शीघ्र ही मनरूपी तराजू के एक पलड़े में संसार के भोग-सुखों का आकर्षण तथा दूसरे में भगवान का आकर्षण स्थापित हो जाता है। यदि मन में संसार का आकर्षण अधिक हो, तो अविद्या का पलड़ा भारी होकर झुक जाता है और मनुष्य संसार में डूब जाता है। यदि मन में ईश्वर के प्रति अधिक आकर्षण हो, तो विद्या का पलड़ा भारी हो जाता है
और मनुष्य ईश्वर की ओर खिंचता चला जाता है।
माया के फंदे में
कण-कण में ईश्वर का वास होते हुए भी जीव उस आनंद को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न न कर संसार के क्षुद्र विषय-सुखों से आकर्षित होकर माया के फंदे में फंस जाता है और अपने उद्देश्य से भटक जाता है। आपने अक्सर देखा होगा कि छोटा बच्चा घर में अलग-अलग खिलौने के साथ अकेले मनमाने खेल खेलता रहता है। उसके मन में कोई भय या चिंता नहीं होती है, लेकिन जैसे ही उसकी मां वहां आ जाती है, वैसे ही वह सारे खिलौने छोड़कर मां-मां कहते हुए उसकी ओर दौड़ जाता है। आप भी धन-मान-यश के खिलौने लेकर संसार में निश्चित होकर सुख से खेल रहे हैं। कोई भय या चिंता नहीं है, लेकिन यदि आप एक बार भी उस आनंदमयी मां को देख लेंगे, तो आपको धन-मान और यश नहीं भाएंगे। तब आप सब कुछ फेंककर उन्हीं की ओर दौड़ जाएंगे।
कठिन परिश्रम करना होगा
समुद्र में अनेक रत्न हैं, पर उन्हें पाने के लिए आपको कठिन परिश्रम करना होगा। यदि एक ही डुबकी में आपको रत्न न मिलें, तो समुद्र को रत्नरहित न समझें। बार-बार डुबकी लगाएं। डुबकी लगाते-लगाते अंत में आपको रत्न जरूर मिल जाएगा। केवल धन संचय कर कोई धनी नहीं हो सकता है। किसी घर में धन होने का मतलब यह है कि उसके घर के हर एक कमरे में दीया जलता हो। गरीब आदमी इतना तेल खर्च नहीं कर पाता है, इसलिए वह कई सारे दीयों का प्रबंध नहीं कर सकता है। देह मंदिर को भी अंधेरे में नहीं रखना चाहिए। उसमें ज्ञान का दीप जलाना चाहिए। हर एक व्यक्ति ज्ञान लाभ कर सकता है। हर एक जीवात्मा का परमात्मा के साथ संयोग है।
संदीप आमेटा