अरुंधती ऋषि वसिष्ठ की पत्नी थी। वे एक आदर्श पत्नी थीं। जिन्होंने सच्चे दिल से अपने पति की सेवा की और सुख दु:ख में उनका साथ दिया। एक बार सप्तर्षि, कश्यप, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वसिष्ठ, हिमालय पर्वत पर तपस्या करने के लिए गए। वे अरुंधती को अकेला जंगल में बने आश्रम में छोड़ गए। इस बीच में भयंकर अकाल पड़ा जो बारह साल तक चला। ऋषियों ने हिमालय पर बारह वर्षों तक तपस्या की।
आश्रम में अरुंधती के खाने के लिए कुछ भी नहीं था। उसने भगवान शिव के तपस्या करनी शुरू कर दी। भगवान शिव उसकी परीक्षा लेने के लिए एक बूढ़े ब्राह्मण का वेश धारण करके आये। आश्रम में आकर उन्होंने कहा कि हे माता, मुझे भूख लगी है। मुझे कुछ खाने को दो। अरुंधति ने कहा, ‘‘हे ब्राह्मण, घर में खाने के लिए कुछ नहीं है, ये थोड़े बदरी के बीज हैं इन्हीं को खा लीजिये।’’ भगवान शिव ने कहा, ‘‘क्या तुम इन बीजों को पका सकती हो?’’
अरुंधति ने आग जलाई और बीज पकाने लगी। बीज पकाते हुए उन्होंने ब्राह्मण से धर्म की चर्चा शुरू कर दी। अरुन्धती बारह वर्षो तक धर्म की व्याख्या करती रही। बारह साल के अंत में अकाल समाप्त हो गया और सप्तर्षि भी हिमालय से लौट आए।
भगवान शिव अरुंधती की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्होंने अपना असली रूप ले लिया। उन्होंने ऋषियों से कहा, ‘‘अरुंधती की तपस्या आपके द्वारा हिमालय पर की गयी तपस्या से अधिक थी!’’ भगवान शिव ने अरुंधती के रहने के स्थान को पवित्र किया और चले गए।
आज भी अरुन्धती सप्तर्षि मंडल में स्थित वसिष्ठ के पास ही दिखती हैं। नवविवाहित लड़कियाँ आकाश में अरुंधती को देखकर उनकी तरह आदर्श पत्नी बनने की कामना करती हैं। अरुंधति हमारे देश की महान् महिलाओं में से एक है और हमें उन्हें हमेशा स्मरण रखना चाहिए।
रिया शर्मा