शिवाजी महाराज एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में जाने जाते हैं। सेनानायक के रूप में शिवाजी की महानता निर्विवाद रही है। शिवाजी समर्पित हिन्दू राजा थे और धार्मिक सहिष्णुता के पक्षधर भी थे। उनके साम्राज्य में मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता थी, कई मस्जिदों के निर्माण के लिए शिवाजी ने अनुदान दिया। हिन्दू पण्डितों की तरह मुसलमान सन्तों और फ़कीरों को भी सम्मान प्राप्त था। वे पारम्परिक हिन्दू मूल्यों तथा शिक्षा पर बल देते थे। मुग़लों, बीजापुर के सुल्तान, गोवा के पुर्तग़ालियों और जंजीरा स्थित अबीसिनिया के समुद्री डाकुओं के प्रबल प्रतिरोध के बावजूद उन्होंने दक्षिण में एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य की स्थापना की थी। धार्मिक आक्रामकता के युग में वह लगभग अकेले ही धार्मिक सहिष्णुता के समर्थक बने रहे। जिस स्वतंत्रता की भावना से वे स्वयं प्रेरित हुए थे, उसे उन्होंने अपने देशवासियों के हृदय में भी प्रज्ज्वलित कर दिया था। शिवाजी यथार्थ में एक व्यावहारिक आदर्शवादी थे।
शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 में शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। इनके पिता का नाम शाहजी भोसलें और माता का नाम जीजाबाई था। शिवनेरी दुर्ग पुणे के पास हैं। शिवाजी का ज्यादा जीवन अपने माता जीजाबाई के साथ बीता था। शिवाजी महाराज बचपन से ही काफी तीक्ष्ण बुद्धि और चालाक थे। शिवाजी ने बचपन से ही युद्ध कला और राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली थी।भोसलें एक मराठी क्षत्रिय हिन्दू राजपूत की एक जाति हैं। शिवाजी के पिता शाहजी अप्रतिम शूरवीर और बीजापुर के एक शक्तिशाली सामन्त थे। ये भोंसले उपजाति के थे, जो कृषि संबंद्धित कार्य करती थी। उनकी माता जीजाबाई (जिजाऊ) जाधव कुल में उत्पन्न असाधारण प्रतिभाशाली महिला थी। शिवाजी महाराज के चरित्र पर माता का बहुत प्रभाव पड़ा। उनका बचपन उनकी माता जिजाऊ के मार्गदर्शन में बीता।माँ जिजाऊ शिवाजी को बचपन से ही रामायण और महाभारत की प्रमुख कहानियाँ तथा उस युग की घटनाओं को बताती थीं। जिन्हें सुनकर शिवाजी के ऊपर बहुत ही गहरा असर पड़ा था। वह सभी कलाओं मे माहिर थे। वे उस युग के वातावरण और घटनाओं को भली प्रकार समझने लग गये थे। शासक वर्ग की करतूतों पर वे झल्लाते और बेचैन हो जाते थे। उनके बाल-हृदय में स्वाधीनता की लौ प्रज्ज्वलित हो चुकी थी। उन्होंने कुछ स्वामीभक्त साथियों को संगठित किया। अवस्था बढ़ने के साथ विदेशी शासन की बेड़ियाँ तोड़ फेंकने का उनका संकल्प और प्रबल होता गया।
शिवाजी की अग्नि परीक्षा : सिंहनी का दूध समर्थ गुरु रामदास स्वामी अपने शिष्यों में सबसे अधिक स्नेह छत्रपति शिवाजी महाराज से करते थे। शिष्य सोचते थे कि, ‘शिवाजी उनके राजा होने के कारण ही अधिक प्रेम हैं।’ समर्थ ने शिष्यों का भ्रम दूर करने के बारे में विचार किया। एक दिन वे शिवाजी सहित अपनी शिष्य मंडली के साथ जंगल से जा रहे थे। रात्रि होने पर उन्होंने समीप की एक गुफा में जाकर डेरा डाला। सभी वहां लेट गये, किंतु थोड़ी ही देर में रामदास स्वामी के कराहने की आवाजें आने लगीं। शिष्यों ने कराहने का कारण पूछा, तो उन्होंने कहा, ‘‘मेरे पेट में दर्द है।’’ सभी शिष्य चुप रहे पर शिवाजी ने पूछा, ‘‘क्या इस दर्द को दूर करने की कोई दवा है।’’ गुरुजी बोले, ‘‘एक मात्र सिंहनी का दूध ही मेरे पेट के दर्द को दूर कर सकता है।’’ शिवाजी ने सुना, तो गुरुदेव का तुम्बा उठाकर सिंहनी की खोज में निकल पड़े। कुछ ही देर में उन्हें एक गुफा में सिंहनी की गर्जना सुनाई दी। वे वहां गए, तो देखा कि एक सिंहनी शावकों को दूध पिला रही थी। शिवाजी उस सिंहनी के पास गए, और उन्होंने कहा, ‘‘मां मैं तुम्हें मारने या तुम्हारे इन छोटे-छोटे शावकों को लेने नहीं आया हूँ। मेरे गुरुदेव अस्वस्थ हैं और उन्हें तुम्हारे दूध की आवश्यकता है। उनके स्वस्थ होने पर यदि तुम चाहो तो मुझे खा सकती हो।’’ शिवाजी की गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा एवम् गुरु के सच्चे आशीर्वाद के आगे सिंहनी ने भी हथियार डाल दिये और सिंहनी शिवाजी के पैरों को चाटने लगी। तब शिवाजी ने सिंहनी का दूध निचोड़ कर तुम्बा भर लिया और प्रणाम कर वह स्वामी जी के पास पहुंचे। सिंहनी का दूध लाया देख समर्थ बोले, ‘‘धन्य हो शिवा। आखिर तुम सिंहनी का दूध ले ही आए।’’ उन्होंने अपने और शिष्यों से कहा, ‘‘मैं तो तुम सभी की परीक्षा ले रहा था।’’ पेट दर्द तो एक बहाना था। गुरुजी ने शिवाजी से कहा, ‘‘तुम्हारे जैसा शूरवीर शिष्य जिसके साथ हो उसे कोई विपदा छू ही नहीं सकती।’’
शिवाजी की निडरता : शिवाजी के पिता शाहजी बीजापुर के सुलतान के सामन्त थे। वह अक्सर युद्ध लड़ने के लिए घर से दूर रहते थे। इसलिए उन्हें शिवाजी के निडर और पराक्रमी होने का सही अंदाज नहीं था। एक बार वे शिवाजी को बीजापुर के सुलतान के दरबार में ले गए। शाहजी ने तीन बार झुक कर सुलतान को सलाम किया, और शिवाजी से भी ऐसा ही करने को कहा। लेकिन, शिवाजी अपना सिर ऊपर उठाए सीधे खड़े रहे। एक विदेशी शासक के सामने वह किसी भी कीमत पर सिर झुकाने को तैयार नहीं हुए। इतना ही नहीं किसी शेर की तरह शान से चलते हुए दरबार से वापस चले गए। शिवाजी से ऐसी निडरता की उम्मीद किसी को नहीं थी। वही निडर बालक बड़ा होकर एक कुशल और प्रबुद्ध राजा बना।
शिवाजी महाराज का बढ़ता वर्चस्व : सन् 1640 और 1641 के समय बीजापुर महाराष्ट्र पर विदेशियों और राजाओं के आक्रमण हो रहे थें। शिवाजी महाराज मावलों को बीजापुर के विरुद्ध इकट्ठा करने लगे। मावल राज्य में सभी जाति के लोग निवास करते हैं, बाद में शिवाजी महाराज ने इन मावलों को एक साथ आपस में मिलाया और मावला नाम दिया। इन मावलों ने कई सारे दुर्ग और महलों का निर्माण करवाया था। इन मावलों ने शिवाजी महाराज का बहुत ज्यादा साथ दिया। बीजापुर उस समय आपसी संघर्ष और मुगलों के युद्ध से परेशान था, जिस कारण उस समय के बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह ने बहुत से दुर्गों से अपनी सेना हटाकर उन्हें स्थानीय शासकों के हाथों में सौप दी दिया था। तभी अचानक बीजापुर के सुल्तान बीमार पड़ गए थे और इसी का फायदा देखकर शिवाजी ने बीजापुर के दुर्गों को हथियाने की नीति अपनायी और पहला दुर्ग तोरण का दुर्ग को अपने कब्जे में ले लिया था।
किलों पर अधिकार : तोरण का दुर्ग पूना (पुणे) में हैं। शिवाजी महाराज ने सुल्तान आदिलशाह के पास अपना एक दूत भेजकर खबर भिजवाई की अगर आपको किला चाहिए तो अच्छी रकम देनी होगी, किले के साथ-साथ उनका क्षेत्र भी उनको सांप दिया जायेगा। शिवाजी महाराज इतने तेज और चालाक थे कि आदिलशाह के दरबारियों को पहले से ही खरीद लिया था। शिवाजी जी के साम्राज्य विस्तार नीति की भनक जब आदिलशाह को मिली थी तब वह देखते रह गया। उसने शाहजी राजे को अपने पुत्र को नियंत्रण में रखने के लिये कहा लेकिन शिवाजी महाराज ने अपने पिता की परवाह किये बिना अपने पिता के क्षेत्र का प्रबन्ध अपने हाथों में ले लिया था और लगान देना भी बंद कर दिया था। वे 1647 ई. तक चाकन से लेकर निरा तक के भू-भाग के भी मालिक बन चुके थे। अब शिवाजी महाराज ने पहाड़ी इलाकों से मैदानी इलाकों की और चलना शुरू कर दिया था। शिवाजी जी ने कोंकण और कोंकण के 9 अन्य दुर्गों पर अपना अधिकार जमा लिया था। शिवाजी महाराज को कई देशी और कई विदेशियों राजाओं के साथ-साथ युद्ध करना पड़ा था और सफल भी हुए थे।
शाहजी बने बंदी : बीजापुर के सुल्तान शिवाजी महाराज की हरकतों से पहले ही गुस्से में था। सुल्तान ने शिवाजी महाराज के पिता को बंदी बनाने का आदेश दिया था। शाहजी उस समय कर्नाटक राज्य में थे। और दुर्भाग्य से शिवाजी महाराज के पिता को सुल्तान के कुछ गुप्तचरों ने बंदी बना लिया था। उनके पिता को एक शर्त पर रिहा किया गया कि शिवाजी महाराज बीजापुर के किले पर आक्रमण नहीं करेगा। पिताजी की रिहाई के लिए शिवाजी महाराज ने भी अपने कर्तव्य का पालन करते हुए 5 सालों तक कोई युद्ध नहीं किया और तब तक शिवाजी अपनी विशाल सेना को मजबूत करने में लगे रहे।
शिवाजी की न्याय प्रियता : पुणे की जागीर को सम्हालना उन्होंने अभी-अभी प्रारम्भ ही किया था तब की घटना है, रांझा नामक गाँव के पाटील (ग्रामाधिकारी) ने अपने सत्ता के मद में ग्राम के ही एक निरीह महिला पर बलात्कार किया।शिवाजी महाराज ने अपने सैनिकों को भेजकर उसको रस्सियों से बांधकर अपने सामने हाजिर करवाया शिवाजी बड़े ही बहादुर, निडर और न्यायप्रिय थे। और खास तौर पर उनके मन में महिलाओं के प्रति असीम सम्मान था। उन्होंने तत्काल अपना निर्णय सुनाया और कहा, ‘‘इसके दोनों हाथ और पैर काट दो, ऐसे जघन्य अपराध के लिए इससे कम कोई सजा नहीं हो सकती।’’ छत्रपति शिवाजी महाराज जीवन पर्यंत साहसिक कार्य करते रहे और हमेशा गरीब, बेसहारा लोगों को प्रेम और सम्मान के साथ न्याय देते रहे।
शिवाजी महाराज का राज्य विस्तार : शाहजी की रिहा के समय जो शर्ते लागू की थी उन शर्तो में शिवाजी ने पालन तो किया लेकिन बीजापुर के दक्षिण के इलाकों में अपनी शक्ति को बढ़ाने में ध्यान लगा दिया था, पर इस में जावली नामक राज्य बीच में रोड़ा बना हुआ था। उस समय यह राज्य वर्तमान में सतारा महाराष्ट्र के उत्तर और पश्चिम के कृष्णा नदी के पास था। कुछ समय बाद शिवाजी ने जावली पर आकिया और जावली के राजा के बेटों ने शिवाजी के साथ युद्ध किया और शिवाजी ने दोनों बेटों को बंदी बना कर दिया था। और किले की सारी संपति को अपने कब्जे में ले लिया था और इसी बीच कई मावल शिवाजी के साथ मिल गए थे।
शिवाजी का आदिलशाही सल्तनत के साथ संघर्ष 1659 में आदिलशाह ने एक अनुभवी और दिग्गज सेनापति अफजल खान को शिवाजी को तबाह करने के लिए भेजा ताकि वो क्षेत्रीय विद्रोह को कम कर दे। 10 नवम्बर 1659 को वो दोनों प्रतापगढ़ किले की तलहटी पर एक झोपड़ी में मिले। इस तरह का हुक्मनामा तैयार किया गया था कि दोनों केवल एक तलवार के साथ आयेंगे। शिवाजी को को संदेह हुआ कि अफजल खान उन पर हमला करने की रणनीति बनाकर आएगा इसलिए शिवाजी ने अपने कपड़ों के नीचे कवच, दायीं भुजा पर छुपा हुआ बाघ नकेल और बाएँ हाथ में एक कटार साथ लेकर आये। तथ्यों के अनुसार अफज़ल खान ने पहले वार किया। इस लड़ाई में अफजल खान की कटार को शिवाजी के कवच में रोक दिया और शिवाजी के हथियार बाघ नकेल ने अफजल खान पर इतने घातक घाव कर दिए जिससे उसकी मौत हो गयी। इसके बाद शिवाजी ने अपने छिपे हुए सैनिकों को हमला करने के संकेत दिए। 10 नवम्बर 1659 को प्रतापगढ़ का युद्ध हुआ जिसमे शिवाजी की सेना ने बीजापुर के सल्तनत की सेना को हरा दिया। चुस्त मराठा पैदल सेना और घुडसवार बीजापुर पर लगातार हमला करने लगे और बीजापुर के घुड़सवार सेना के तैयार होने से पहले ही आक्रमण कर दिया। मराठा सेना ने बीजापुर सेना को पीछे धकेल दिया। बीजापुर सेना के 3000 सैनिक मारे गये और अफज़ल खान के दो पुत्रों को बंदी बना लिया गया। इस बहादुरी से शिवाजी मराठा लोकगीतों में एक वीर और महान नायक बन गये।
शिवाजी का अनिंद्य सुन्दरी गौहर बानू के प्रति असीम सम्मान। शिवाजी ने 1659 ई. के अंत में कल्याण दुर्ग पर विजय प्राप्त की। तत्कालीन परंपरा के अनुसार विजेता का अधिकार विजित की महिलाओं पर भी होता था। गौहर बानू सुन्दरता की प्रतिमूर्ति थी। उनके सेनापति आबाजी सोनदेव ने कल्याण के परास्त मुस्लिम सूबेदार की अनिंद्य सुन्दर पुत्रवधू गौहर बानू को बंदी बनाकर शिवाजी की सेवा में प्रस्तुत किया। तब पहले तो शिवा जी ने अपनी व अपने सूबेदार सोनदेव की और से गौहर बानू से क्षमा मांगी | पर शिवाजी ने गौहर बानू को देखा तो, वह उसकी सुंदरता की तारीफ किए बिना नहीं रह सके। उन्होंने उसकी तारीफ में कहा, ‘‘काश मेरी माँ भी आपकी तरह सुन्दर होती तो मैं भी इतना ही सुन्दर होता।’’ और उन्होंने उनको तत्काल मुक्त कर ससम्मान उनके परिवार के पास भेज दिया। साथ ही उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि वह दूसरे की बहू-बेटियों को अपनी माता की तरह मानते हैं। नारी के प्रति उनके दिल में असीम सम्मान था। इस घटना से केवल हिन्दू ही नहीं मुसलमान भी शिवाजी के चरित्र के कायल हो गये थे।
मुगलों से पहला मुकाबला : मुगलों के शासक औरंगजेब का ध्यान उत्तर भारत के बाद दक्षिण भारत की तरफ गया। उसे शिवाजी के बारे में पहले से ही मालूम था। औरंगजेब ने दक्षिण भारत में अपने मामा शाइस्ता खान को सूबेदार बना दिया था। शाइस्ता खान अपने 1,50,000 सैनिकों को लेकर पुणे पहुँच गया और उसने 3 साल तक लूटपाट की। एक बार शिवाजी ने अपने 350 मावलों के साथ उस पर हमला कर दिया। तब शाइस्ता खान अपनी जान निकालकर भाग खड़ा हुआ और शाइस्ता खान को इस हमले में अपनी 4 उँगलियाँ खोनी पड़ी। इस हमले में शिवाजी महाराज ने शाइस्ता खान के पुत्र और उनके 40 सैनिकों का वध कर दिया था। उसके बाद नाराज औरंगजेब ने शाइस्ता खान को दक्षिण भारत से हटाकर बंगाल का सूबेदार बना दिया था।
जब हुई सूरत में लूट : इस जीत से शिवाजी की शक्ति ओर मजबूत हो गयी थी। लेकिन 6 साल बाद शाइस्ता खान ने अपने 15,000 सैनिकों के साथ मिलकर राजा शिवाजी के कई क्षेत्रां को जला कर तबाह कर दिया था। बाद में शिवाजी ने इस तबाही को पूरा करने के लिये मुगलों के क्षेत्रों में जाकर लूटपाट शुरू कर दी। सूरत उस समय मुसलमानों का हज पर जाने का एक प्रवेश द्वार था। शिवाजी ने 4 हजार सैनिकों के साथ सूरत के व्यापारियों को लूटा लेकिन उन्होंने किसी भी आम आदमी को अपनी लूट का शिकार नहीं बनाया। आगरा में आमन्त्रित और पलायन : शिवाजी महाराज को औरंगजेब ने आगरा बुलाया गया जहाँ उन्हें लगा कि उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया गया है। इसके खिलाफ उन्होंने अपना रोष दरबार में निकाला और औरंगजेब पर छल का आरोप लगाया। औरंगजेब ने शिवाजी को कैद कर लिया। और शिवाजी पर 500 सैनिकों का पहरा लगा दिया। कुछ ही दिनों बाद शिवाजी महाराज को जान से मारने का औरंगजेब ने इरादा बनाया था लेकिन अपने बेजोड़ साहस और युक्ति के साथ शिवाजी और उनके पुत्र संभाजी दोनों कैद से भागने में सफल हो गये। संभाजी को मथुरा में एक ब्राह्मण के यहाँ छोड़ कर शिवाजी महाराज बनारस चले गये थे और बाद में सकुशल राजगढ़ आ गये। औरंगजेब ने जयसिंह पर शक किया और उसने विष देकर उसकी हत्या करा दी। जसवंत सिंह के द्वारा पहल करने के बाद शिवाजी ने मुगलों से दूसरी बार संधि की। 1670 में सूरत नगर को दूसरी बार शिवाजी ने लुटा था, यहाँ से शिवाजी को लाखों की संपति हाथ लगी और शिवाजी ने मुगलों को सूरत में फिर से हराया। शिवाजी महाराज का राज्यभिषेक : सन 1674 तक शिवाजी ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था जो पुरंदर की संधि के अन्तर्गत उन्हें मुगलों को देने पड़े थे। बालाजी राव जी ने शिवाजी का सम्बन्ध मेवाड़ के सिसोदिया वंश से मिलते हुए प्रमाण भेजे थे। इस कार्यक्रम में विदेशी व्यापारियों और विभिन्न राज्यों के दूतों को इस समारोह में बुलाया था।
शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि धारण की और काशी के पंडित गंगा भट्ट को इसमें समारोह में विशेष रूप से बुलाया गया था। शिवाजी के राज्याभिषेक करने के 12वें दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया था और फिर दूसरा राज्याभिषेक हुआ। वर्तमान संदर्भ में अनुकरणीय संदेश छत्रपति शिवाजी महाराज स्वयं व्यक्तिगत दृष्टि से राजा कैसा हो, हिंदू समाज का व्यक्ति कैसा हो, हिंदू समाज का नेतृत्व करने वाला नेता कैसा हो? इसका मूर्तिमंत आदर्श आज भी है। जिनके हृदय के आत्मविश्वास और विजिगीषा ने संपूर्ण समाज के आत्मविश्वास को जागृत किया। संपूर्ण समाज में अपना स्वराज्य स्थापना हो इस आकांक्षा का संकल्प जगाया और उद्यम के साथ समाज को साथ लेकर जिनके नेतृत्व के कारण यह हिंदवी स्वराज्य का सिंहासन निर्मित हुआ उन शिवाजी महाराज की विजय वास्तव में हिंदुराष्ट्र की इस लम्बी लडाई की पहली अवस्था में निर्णायक विजय थी। आज की परिस्थिति भी वही है।
आज की आवश्यकता भी वही है। आज भी समाज के मन में उसी विजिगीषा को, आत्मविश्वास को उद्यम को जागृत करना चाहिये। आज भी प्रत्येक व्यक्ति को शिवाजी महाराज के चरित्र का, गुणों का अनुकरण कर हिंदू समाज का, हिंदू समाज के साथ रहकर, अपने लिये नहीं, अपने राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति के लिये समाज का सक्षम नेतृत्व करने वाला व्यक्ति बनना है, और सारे समाज के आत्मविश्वास को एक नई ऊँचाई देने वाला ऐसा एक हिंदू याने प्रजाहित-दक्ष, सहृदयी, सर्वत्र समभावी, नीतिकठोर ऐसा शासन समाज के द्वारा ही स्थापित करवाना है। आज की परिस्थिति में यह जो उपाय है, वह समाज के संगठन से होने वाला है। समाज की गुणवत्ता, उद्यम और आत्मविश्वास के आधारपर होने वाला है।
संदीप आमेटा