समुत्कर्ष समिति द्वारा समाज प्रबोधन हेतु मासिक विचार गोष्ठी के क्रम में ‘‘निष्ठामूलक है गुरु शिष्य परम्परा’’ विषय पर 64 वीं समुत्कर्ष विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में वक्ताओं ने अपने विचार रखते हुए स्पष्ट किया कि गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम् और पवित्र हिस्सा है, जिसके कई स्वर्णिम उदाहरण इतिहास में दर्ज हैं। गुरु उस माली के समान है, जो समाज रूपी उपवन को अलग अलग रूप-रंग के शिष्य रूपी फूलवारी से सजाता है। वह अपने शिष्य को कांटों पर भी मुस्कुराकर चलने के लिए प्रेरित करता है। एक सद्गुरु ही अपने शिष्य में अच्छे चरित्र का निर्माण करता है।
विषय का प्रवर्तन करते हुए संदीप आमेटा ने कहा कि वैसे तो हमारे जीवन में कई जाने-अनजाने गुरु होते हैं, जिनमें हमारे माता-पिता का स्थान सर्वोपरि है, फिर शिक्षक और अन्य। लेकिन असल में गुरु का संबंध शिष्य से होता है न कि विद्यार्थी से। गुरु और शिष्य का रिश्ता समर्पण के आधार पर टिका होता है। जीवन-समर को पार करने के लिए सद्गुरु रूपी सारथी का विशेष महत्व होता है।
गुरु शब्द की व्याख्या करते हुए शिक्षाविद् तरुण शर्मा ने कहा कि ‘गु’ शब्द का अर्थ है अंधकार (अज्ञान) और ‘रु’ शब्द का अर्थ है प्रकाश (ज्ञान)। अज्ञान को नष्ट करने वाला जो ब्रह्मरूपी प्रकाश है, वह गुरु है। इस प्रकार गुरु – शिष्य परम्परा आध्यात्मिक प्रज्ञा को नई पीढ़ियों तक पहुंचाने का सोपान है।
हरिदत्त शर्मा ने बताया कि गीता में भगवान श्रीकृष्ण जी ने गुरु-शिष्य परम्परा को ‘परम्पराप्राप्तम् योग’ बताया है। गुरु-शिष्य परम्परा का आधार सांसारिक ज्ञान से शुरू होता है, परन्तु इसका चरमोत्कर्ष आध्यात्मिक शाश्वत आनंद की प्राप्ति है, जिसे ईश्वर-प्राप्ति व मोक्ष प्राप्ति भी कहा जाता है। गुरु अपने शिष्य को निरहंकारी बना कर उसे उत्थान की ओर ले जाता है। सम्पूर्ण समर्पण की स्थिति में सद्गुरु शिष्य की अन्तरात्मा में अपना स्थान बना लेता है तथा वहीं बैठकर शिष्य का मार्गदर्शन करता है।
इस अवसर पर बोलते हुए श्याम मट्टपाल ने कहा कि गुरु और शिष्य के संबंधों का आधार है गुरु का ज्ञान, मौलिकता और नैतिक बल, उनका शिष्यों के प्रति स्नेह भाव, तथा ज्ञान बांटने का निःस्वार्थ भाव। और शिष्य में होनी चाहिये, गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा, गुरु की क्षमता में पूर्ण विश्वास तथा गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण एवं आज्ञाकारिता। अनुशासन शिष्य का सबसे महत्वपूर्ण गुण माना गया है।
पप्पूलाल प्रजापत ने अपने विचार रखते हुए कहा कि गुरु एक ऐसी टकसाल है, जो अपने सांचे में अपने प्राणबल, तपोबल के सहारे प्रखर व्यक्तित्व का निर्माण करता है। साधारण को असाधारण और तुच्छ को महान बनाता है। इतिहास प्रमाण है कि भारत देश ने जब भी महानता का शिखर स्पर्श किया है, उसके पीछे सद्गुरुओं का हाथ रहा है।
गोष्ठी के अन्त में समुत्कर्ष पत्रिका के उप सम्पादक गोविन्द शर्मा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए सभी का आभार प्रदर्शित किया। विचार गोष्ठी का संचालन वाणी शिल्पी शिवशंकर खण्डेलवाल ने किया।
इस अवसर पर समुत्कर्ष समिति के वरिष्ठ कार्यकर्त्ता गोपाल लाल माली, विद्यासागर, कविता शर्मा, पुष्कर मेनारिया, राकेश शर्मा, विनय दवे, लोकेश जोशी, राजेंद्र बंसल तथा हेमंत मेहता आदि उपस्थित थे।