मौलवी साहब काफी देर से बच्चों को पढ़ा रहे थे। मौलवी साहब का नाम उस्ताद फर्ऱाह था। बच्चे भी बड़ी ध्यान ने उनकी बात को समझ रहे थे। अब मौलवी साहब का घर जाने का समय हो गया तो उन्हें बच्चों से कहा – ‘बच्चों, मेरी जूतियाँ उठा लाओ।’ मौलवी साहब ने कहा।
दो बच्चे मौलवी साहब की बहुत इज्जत करते थे। ये दोनों बालक बगदाद के खलीफा मामुन अल रशीद के बेटे थे। मौलवी साहब खलीफ़ा के इन दोनों बेटों को पढऩा-लिखना सिखाया करते थे। बच्चे जूतियाँ उठाने के लिए भाग पड़े कि कौन मौलवी साहब की पहले खिदमत कर सके। बच्चे एक साथ ही जूतियों के पास पहुँच गये। वे आपस मे ही उलझ पड़े कि कौन जूतियाँ उठाए। दोनों यही चाहते थे कि मैं ही जूतियाँ उठाऊँ और मौलवी साहब के पास पहुँचू। झगड़ा सुलझने का नाम ही नही ले रहा था। तब दोनों ने मिलकर एक युक्ति निकाली। एक-एक जूती लेकर दोनों भाई मौलवी साहब के पास पहुँच गये।
खलीफ़ा के पास यह बात मौलवी साहब से जलन रखने वाले चापलूसों द्वारा पहुँच गयी कि आज मौलवी साहब ने दोनों शहजादों से अपनी जूतियाँ उठवायी हैं। खलीफ़ा ने तुरन्त मौलवी साहब को बुलाने का आदेश दिया। मौलवी साहब के तो जैसे होश ही उड़ गये। वे घबराये हुए खलीफा के सामने पहुँचे। उनके आश्चर्य की सीमा न रही जब खलीफा ने उनको बड़े प्रेम से अपने पास बिठाया। मौलवी साहब को इसमें भी कुछ खतरनाक राज़ ही नजर आ रहा था।
खलीफा ने कहा- ‘मौलवी साहब! एक बात बताइए। आज इस दुनिया में सबसे बड़ा कौन है और सबसे ज़्यादा इज्जत किसकी होनी चाहिए?’
मौलवी साहब का वैसे ही बुरा हाल था। वे खलीफा के मन की बात नहीं समझे, सिर झुकाकर बोले-‘हुजूर! आज की दुनिया में तो आप ही सबसे बड़े हैं तथा आपकी इज्जत भी सबसे ज्यादा है क्योंकि आप मुसलमानों की खलीफा हैं।’
खलीफा ने मुस्कराकर कहा-‘नहीं, दुनिया में सबसे बड़े उस्ताद फर्राह हैं और इज्जत भी उस्ताद फर्राह ही की सबसे ज्यादा है; क्योंकि खलीफा के बेटे उनकी जूतियाँ उठाते हैं।’
मौलवी साहब की तो वैसे ही हालात खराब थी। अब खलीफा को 1या जवाब दें! उन्हें कुछ न सूझा तो माफी माँगते हुए गिड़गिड़ाकर बोले-‘मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी कि मैंने जो शाहजादों से जूतियाँ उठवायी। हुजूर अल्लाह के नाम पर मेरा कसूर माफ कीजिए।’
खलीफा मुस्कुराते हुए बोले-‘आप डरते क्यों हैं जनाब! मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ। आप मेरे बच्चों के उस्ताद हैं। इसलिए सचमुच दुनिया में आप ही सबसे बड़े हैं और इज्जत भी आपकी ही सबसे ज्यादा है। सच मानिये, इस बात से मैं बहुत खुश हूँ कि आप मेरे बच्चों से खिदमत कराते हैं और वे भी खुशी-खुशी आपकी खिदमत भी करते हैं। उसने आगे कहा-‘उस्ताद, माँ-बाप और बादशाह की खिदमत करने से हमेशा आदमी की इज्जत बढ़ती है। आज मेरे बच्चों ने आपकी जो खिदमत की है, उससे उनकी ही नहीं, मेरी भी इज्जत बढ़ी है।’
सीख:- आप समझ ही गये होंगे कि अपने से बड़ों का हमेशा आदर-सम्मान करना चाहिए क्योंकि इससे आपके माता-पिता का भी सम्मान बढ़ता है और उन्हें आप पर गौरव का अनुभव होगा, जैसे कि खलीफा जैसे बड़े बादशाह को अपने पुत्रों पर हुआ। अनुभव टांक