संकट का मुकाबला करके नया जीवन जीने वालों के अनुभवों की पोथियां आशा की किरण हैं, दीपक हैं। ‘आखिरकार जीवन का उद्देश्य उसे जीवन का उद्देश्य उसे जीना और ईष्टतम अनुभवों को हासिल करना, नए और समृद्ध अनुभवों को उत्सुकता से और निर्भर होकर आजमाना है। इसलिए संकटों से घबराएं नहीं, बल्कि अपने लिए एक नई राह बनाएं ताकि अपने जीवन को भरपूर जी सकें।
मार्क रुदरफोर्ड एक बहुचर्चित लेखक थे। मार्क ने समुद्र में तैरने के अपने एक विशेष संस्मरण में लिखा है- ‘मनुष्य जैसा सोचता है, उसका शरीर भी वैसा ही होने लगता है। कुविचारों के कारण मैं, एक फुर्तीला नौजवान, बिना डूबे ही डूबा हुआ-सा हो गया। लेकिन विचारों को मैंने निराशा से आशा की ओर ढ़केला, तो क्षणभर में ही चमत्कार-सा होने लगा। मैं अपने में परिवर्तन महसूस करने लगा। शरीर में नई शक्ति का संचार हो रहा था। मैं समुद्र में तैर रहा था और सोच रहा था कि किनारे तक नहीं पहुंचने का मतलब है डूबकर मरने से पहले का संघर्ष। मेरा बल मजबूत हुआ, मेरे अपने ही विचारों से, अपनी ही सोच से। मैं फिर से शक्तिमान हो गया। जैसे मुझे संजीवनी मिल गई। पहले मन में भय था और अब विश्वास किनारे तक पहुंचने की क्षमता का अहसास। मैंने संकल्प किया और अपने लक्ष्य की ओर तैरने लगा!’
लेखक के पूरे जीवन पर बचपन की इस घटना की गहरी छाप रही। उसका जीवन-दर्शन ही बदल गया। मार्क ने लिखा- ‘बिना साहस के मंजिल नहीं मिलती। बिना विश्वास के संकट से उबरा नहीं जा सकता।
जब डूबना ही है, तो संघर्ष क्यों न करें? संघर्ष में ही सफलता का रहस्य छिपा है। नैतिकता ही वह बल है, जो मनुष्य को भीतर से साहसी बनाता है।’ इस पंक्ति में बहुत गंभीर सच्चाई है- ‘यदि आप हँसते हैं तो पूरी दुनिया आपके साथ हँसती है और यदि आप रोते हैं तो आप अकेले होते हैं।’ यह थोड़ा कड़वा है, लेकिन सच है।
विचार की शक्ति अणु से भी महान् होती है। विचार ही तो है, जो मनुष्य को संकट में डालता है या फिर संकट से उबारता है। विचार ही मनुष्य को नैतिक बनाता है या पतित करता है। विचार पहले, क्रिया बाद में। एंथनी डि एंजेलो ने यह खूबसूरत पंक्ति कही है- ‘आप जहां भी जाएं, चाहे कोई भी मौसम हो, हमेशा अपनी धूप लेकर आएं।’ जैसा कि कहा जाता है- ‘सब अपने दिमाग में होता है।’ खुशी या उदासी बाहर नहीं होती, वह हमारे भीतर रहती है।
कुछ विचारकों ने संकट को अनुभव माना है और इसे पाठशाला की संज्ञा दी है। उसने उदाहरण दिया है- ‘अखाड़े में उस्ताद अपने शिष्य को बार-बार पटखनी देकर गिराता है, उसे चोट भी लगती है, मोच भी आती है, शरीर से धूल लगती है, थकान होती है, लेकिन बार-बार की पटखनी से ही शिष्य वह सीख पाता है जिसके लिए वह अखाड़े में आता है।’
मनुष्य अपनी समस्या का समाधान दूसरों से चाहता है। दूसरे लोग सहयोगी बन सकते हैं, उपाय सुझा सकते है, पर समाधान नहीं कर सकते। समस्याओं का उत्स व्यक्ति स्वयं होता है। समाधान भी स्वयं से मिलता है। मार्ग में अवरोध भी आ सकते हैं। उन्हें उत्साह और साहस के साथ पार करना होता है। कहीं अपमान मिलता है, कहीं निराशा का कुहासा सामने आता है, कहीं असफलता सहचरी के रूप में दिखाई देती है, इन स्थितियों का सम्यक् विश्लेषण इनसे मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकता
संकटों के बिना जीवन का असली आनंद नहीं आता। संकटमयी घटनाएं इतिहास का निर्माण करती हैं। व्यक्तित्व का निखार हैं संकट वाली घटनाएं। असफलताओं को सफलताओं में बदलने के प्रयास ही अनुभव हैं। इतिहास में उन्हीं का उल्लेख होता है जिन्होंने चुनौतियां स्वीकार करने का साहस दिखाया है। सभी की प्रसिद्धि का सूत्र यही है कि नैतिक बल के सहारे संकटों का मुकाबला किया जा सकता है। अनैतिक लोगों के हाथ लगी सफलता तात्कालिक होती है, अल्पकालिक होती है, नैतिक बल से प्राप्त सफलता स्थायी होती है, सदियों तक सुगंध देने वाली।
गंतव्य की प्राप्ति से पूर्व उसका निर्धारण आवश्यक है। मार्ग लंबा हो या छोटा, उसका सही ज्ञान और समुचित गतिशीलता पथिक को गंतव्य से मिला देती है। गतिशीलता का महत्व है, परंतु वह गंतव्य पर आधारित है। यदि हमारा गंतव्य (लक्ष्य) महत्वपूर्ण है तो गतिशीलता भी महत्वपूर्ण है। लक्ष्य निर्धारण हो जाने के बाद भी आलस्य और प्रमाद व्यक्ति को गतिशील और क्रियाशील नहीं बनने देता। समीचीन पुरुषार्थ हो तो गंतव्य निकट होता चला जाता है। मनुष्य के पग-पग पर समस्याओं का जाल बिछा हुआ है। उसे समेटने के लिए उसके पास दिमाग है। वह समाधान खोजे और अपना पथ स्वयं प्रशस्त करे। समस्याओं के सामने घुटने टिकाने वाला व्यक्ति अपने जीवन में सफल नहीं हो सकता। इसीलिए एलिन की ने एक बार कहा था- ‘भविष्य के बारे में बताने का बेहतरीन तरीका है उसे खुद गढ़ना।’
अधिकांश मनुष्यों के दुर्भाग्य का मूल कारण यही होता है कि उन्हें अपने ऊपर भरोसा नहीं होता। वे अपने भाग्य को ही कोसने में अपना बहुमूल्य समय नष्ट कर देते हैं। जो व्यक्ति अपने को निर्बल और कमजोर समझता है उस व्यक्ति को कभी विजय नहीं मिल सकती। अपने को छोटा समझने वाला व्यक्ति इस संसार में सदा कमजोर समझा जाता है। उस व्यक्ति को कभी वह उत्तम पदार्थ नहीं मिल पाते, जो सदैव अपने भाग्य को कोसता है। हर व्यक्ति में शक्ति का जागरण और उस शक्ति का रचनात्मक दिशा में उपयोग ही समाज के जागरण का मूलमंत्र है।
श्रीमती दर्शना शर्मा, अ. जि. शि. अ. (मा.) अजमेर