एक हवेली के तीन हिस्सों में तीन परिवार रहते थे। एक तरफ कुंदनलाल, बीच में रामचरण, दूसरी तरफ जसवंत सिंह। उसी दिन रात में बारह बजे रामचरण के बेटे पप्पू के पेट में दर्द हुआ कि वह दोहरा हो गया और जोर-जोर से रोने लगा।
मां ने बहलाया, पर वह वह चुप न हुआ। उसके रोने से कुंदनलाल की नींद खुल गई। करवट बदलते हुए उसने सोचा, ‘कमबख्त ने नींद ही खराब कर दी। अरे, तकलीफ है तो सहो, दूसरो को तो तकलीफ में मत डालो। और कुंदनलाल फिर खर्राटे भरने लगा। नींद जसवंत सिंह की भी उचट गई। उसने करवट बदलते हुए सोचा- ‘बच्चा कष्ट में है।
हे भगवान, तू उसकी आंखों में मीठी नींद दें ताकि मैं भी सो सकूं। हवेली के सामने बुढ़िया राम दुलारी अपनी कोठरी में रहती थी। उसकी भी नींद उखड़ गई। लाठी उठाई और खिड़की के नीचे आवाज देकर कहा, ‘ओ बहू ! यह हींग ले और इसे जरा से पानी में घोलकर मुन्ने की डूंटी पर लेप कर दे। बच्चा है, कच्चा- पक्का हो जाता है। फिकर की कोई बात नहीं, अभी सो जाएगा।
बुढ़िया संतुष्ट थी, कुंदनलाल बुरे सपने देख रहा था, जसवंत सिंह थका-थका-सा और रामचरण मुन्ने की डूंटी पर हींग का लेप कर रहा था।
कथा मर्मः कुछ लोग सिर्फ अपना भला ही देखते हैं, कुछ कुछ दूसरों का भला तो देखते हैं, पर करते कुछ नहीं है, पर तीसरे प्रकार के लोग जो दूसरों का भला चाहकर उसके लिए प्रयास भी करते हैं, वहीं श्रेष्ठ हैं।
रजत प्रताप