समुत्कर्ष समिति द्वारा मासिक विचार गोष्ठी के क्रम में ‘‘कश्मीर समस्या : समाधान की राह पर’’ विषयक 60 वीं समुत्कर्ष विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में वक्ताओं ने अपने विचार रखते हुए स्पष्ट किया कि प्राचीन काल से ही कश्मीर भारतीय गणतंत्र का अविभाज्य घटक था, है और रहेगा। मध्य एशियाई बर्बर जातियों के विध्वंसक आक्रमण काल, विभेदकारी अंग्रेजी दासता और पश्चात स्वतन्त्र भारत के अदूरदर्शी राजनैतिक नेतृत्व के कारण भयावह हुए कश्मीर के हालात को सामान्य करने के लिए वहां के जन सामान्य में भारतीय होने के गौरव का जागरण कर उन्हें पृथकता का एहसास करने वाली धारा 370 तथा उसके अंतर्गत आर्टिकल 35 (।) को हटाकर उन्हें भारत के अन्य राज्यों के समकक्ष ला खडा करना और यहाँ के नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करना ही इस समस्या का स्थायी समाधान है।
वक्ताओं ने कहा कि 1947 में पाकिस्तानी अनियमित सैनिकों (जिन्हें कबायली गया है) द्वारा कश्मीर पर आक्रमण किये जाने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इस मुद्दे को स्वयं संयुक्त राष्ट्र में ले गये थे। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इस मामले पर विचार करते हुए कुछ प्रस्ताव पारित किये। इनमें सबसे महत्वपूर्ण था- कश्मीर के जिन हिस्सों को पाकिस्तान ने अपने कब्जे में लिया है, वहाँ से उसे अपने सैनिकों को हटाना होगा और इसके बाद कश्मीरी लोगों के विचारों को जानने के लिए भारत जनमत संग्रह करायेगा। बाद की स्थिति में न तो पाकिस्तान ने अपना कब्जा छोड़ा और ना ही भारत ने जनमत संग्रह की मांग मानी। बस यहीं से कश्मीर समस्या का बीजारोपण हो गया था।
शिक्षाविद विद्या सागर ने अपनी बात रखते हुए कहा कि बात कश्मीर की है तो भारतीय और पाक अधिकृत दोनों ही तरफ के कश्मीर के लोग चाहे वे मुसलमान हो या गैर-मुस्लिम, जलालत और दुखभरी जिंदगी जी रहे हैं। मजे कर रहे हैं तो अलगाववादी, आतंकवादी और उनके आका। उनके बच्चे देश-विदेश में घूमते हैं और सभी तरह के ऐशोआराम में गुजर-बसर करते हैं। भारतीय कश्मीर के हालात तो पाक अधिकृत कश्मीर से कई गुना ज्यादा अच्छे हैं। पाकिस्तान ने दोनों ही तरफ के कश्मीर को बर्बाद करके रख दिया है।
संदीप आमेटा ने संचालन करते हुए कहा कि कश्मीर का वर्तमान तथा भविष्य केवल भारत के साथ ही सुरक्षित है। ऐसे में कश्मीर, कश्मीरियों को स्वयं पाक की चालों को नाकाम करने के लिये भारत सरकार का साथ देना चाहिये कश्मीरी जनता के साथ साथ भारत सरकार तथा वहां की राज्य सरकार को तुष्टिकरण के स्थान पर ऐसे कदम उठाने चाहिए जिनसे कुछ गिने चुने अलगाववादी तथा आंतकवादी अपने पाकिस्तानी आकाओं से अलग थलग पड़कर वहां की जनता को डराने या गुमराह करने की कोशिश न करें। साहित्यकार तरुण कुमार दाधीच ने कहा कि संविधान की धारा 370 कश्मीर को एक विशेष राज्य का दर्जा देती है। संविधान की ये धारा राज्य को एक अलहदा संविधान, अलग झंडा और कई मामलों में स्वतंत्र रहने का अधिकार देता है। इसी की आड़ में पृथकता वादी ताकतें अस्थिरता फैलाकर कश्मीर को भारत से अलग करने के षड्यंत्र करती रहती हैं। फिर भी उनको ये समझ लेना चाहिये की भारत की देशभक्त जनता और अदम्य साहस वाली सैन्य शक्ति के आगे उन्हें सदैव मुंह की खानी पड़ी है।
कश्मीर की स्थितियों का वर्णन करते हुए श्याम मठपाल तथा सरोज जैन ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि नेहरूजी के यूएनओ में चले जाने के कारण युद्धविराम तो हो गया परन्तु भारतीय सेना के हाथ बंध गए जिससे पाकिस्तान द्वारा कब्जा किए गए शेष क्षेत्र को भारतीय सेना प्राप्त करने में फिर कभी सफल न हो सकी। आज कश्मीर में आधे क्षेत्र में नियंत्रण रेखा है तो कुछ क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सीमा। अंतरराष्ट्रीय सीमा से पाक द्वारा लगातार फायरिंग और घुसपैठ होती रहती है। भारत को एक ओर इन पृथककारी ताकतों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करते रहना चाहिये तो दूसरी ओर अपनी शर्तों पर समाधान वार्ता भी करनी चाहिये।
प्रधानाचार्य अनिल गुप्ता ने कहा कि केंद्र सरकार कश्मीर के नागरिकों को पर्याप्त सुरक्षा देकर यह सुनिश्चित करे कि अलगाववादी या आंतकी एक आम कश्मीरी या नौजवान को अपने प्रोपगैंड़ा या धमकियों से ना तो बहका सके और ना ही उन्हें बाध्य कर सके। इसके लिए कड़े कदमों के रूप में कश्मीर में सोशल मीडिया तथा पाक टीवी पर पूरी तरह रोक लगानी चाहिये। इसके अलावा बोलने के आजादी के नाम पर देश विरोधी गतिविधियाँ चलाने वालों के विरूद्ध ऐसी कानूनी कार्यवाही करनी चाहिए, जो इस प्रकार के अन्य तत्वों के लिये उदाहरण बन सके।
लोकेश जोशी