चन्द्रशेखर आजाद का नाम भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में अमिट है। ऐसा निडर, सहज और निष्कलंक चरित्र वाला इतिहास में कोई दूसरा दिखाई नहीं पड़ता। एक बार कह दिया तो फिर करके दिखाने वाले ‘पं. चंद्रशेखर आजाद’ को बचपन में एक बार अंग्रेजी सरकार ने 15 कोड़ों का दंड दिया था, तभी उन्होंने प्रण किया कि वे अब कभी पुलिस के हाथ नहीं आएँगे। वे गुनगुनाया करते थेः-
‘दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे।
आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे।।’
सनद रहे कि ‘आजाद’ के अतिरिक्त काकोरी कांड के सभी क्रांतिकारियों को पकड़ लिया गया था। बस ‘आजाद’ ही आजाद घूमते रहे। वे अपनी अंतिम साँस तक अंग्रेज सरकार के हाथ नहीं आए।
क्रन्तिकारी जीवन
चंद्रशेखर आजाद सन् 1919 में अमृसतर में हुए जलियाँ- वाला बाग हत्याकांड से बहुत आहत और परेशान हुए थे। सन् 1921 में जब महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की तब चंद्रशेखर आजाद ने इस क्रांतिकारी गतिविधि में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्हें पंद्रह साल की उम्र में ही पहली बार सजा मिली। चन्द्रशेखर आजाद को क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने के लिए पकड़ा गया। जब मजिस्ट्रेट ने उनसे उनका नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम आजाद बताया। चंद्रशेखर आजाद को पंद्रह कोड़ों की सजा सुनाई गई। चाबुक के हर एक प्रहार पर युवा चंद्रशेखर ‘‘भारत माता की जय’’ चिल्लाते थे। तब से चंद्रशेखर को आजाद की उपाधि प्राप्त हुई और वह आजाद के नाम से विख्यात हो गए। स्वतंत्रता आन्दोलन में कार्यशील चंद्रशेखर आजाद ने कसम खाई थी कि वे ब्रिटिश सरकार के हाथों कभी भी गिरफ्तार नहीं होंगे और आजाद की मौत मरेंगे।
शहीद अशफाक उल्लाह खाँ का एक काफी प्रसिद्ध शेर हैः
‘शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले,
वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशा होगा।’
इसी उपरोक्त शेर को भी आजाद थोड़ा बदलकर अक्सर इस तरह कहा करते थेः
‘शहीदों की चिताओं पर पड़ेंगे खाक के ढे़ले।
वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा।।’
पता नहीं ‘आजाद’ ने किस मनोदशा में यह शेर बदलकर कहा होगा! क्या यह शेर मजाक में कहा गया था? वे क्षुब्ध थे? या उन्होंने भविष्य को पहचानते हुए उसका विश्लेषण कर छोड़ा था? उन्होंने इसे जिस भी मनोदशा में कहा हो, लेकिन आज के हालात देखें तो शहीदों को सचमुच ‘खाक के ढे़लों तले दबा दिया गया’ लगता है। आज देश पर शहीद हुए क्रांतिकारियों को कैसा सम्मान मिल रहा है?
आजाद के क्रांतिकारी साथियों में कई लेखक, गायक व कवि भी थे। ‘आजाद’ को गाना गाने या सुनने का शौक नहीं था, लेकिन फिर भी वे कभी-कभी कुछ शेर कहा करते थे। उनके साथियों ने निम्न शेर आजाद के मुँह से सुनने का उल्लेख किया हैः
‘टूटी हुई बोतल है, टूटा हुआ पैमाना।
सरकार तुझे दिखा देंगे, ठाठ फकीराना।।’
उपर्युक्त शेर शहीद रामप्रसाद ‘बिस्मिल‘ के शेर का बदला हुआ रूप है। आजाद द्वारा लिखी उनकी रचना भी उल्लेखनीय हैः
‘माँ हम विदा हो जाते हैं, हम विजय केतु फहराने आज,
तेरी बलिवेदी पर चढ़कर माँ, निज शीश कटाने आज।
मलिन वेष ये आँसू कैसे, कंपित होता है क्यों गात?
वीर प्रसूता क्यों रोती है, जब लग खंग हमारे हाथ।
धरा शीघ्र ही धसक जाएगी, टूट जाएँगे न झुके तार,
विश्व काँपता रह जाएगा, होगी माँ जब रण हुँकार।
नृत्य करेगी रण प्रांगण में, फिर-फिर खंग हमारी आज,
अरि शीश गिराकर यही कहेंगे, भारत भूमि तुम्हारी आज।
अभी शमशीर कातिल ने, न ली थी अपने हाथों में।
हजारों सिर पुकार उठे, कहो दरकार कितने हैं।।’
स्वतंत्रता की बलिवेदी पर सर्वस्व समर्पण
चन्द्रशेखर आजाद अपने देश की आजादी के प्रति इतने पक्के थे और अक्सर बोलते थे की मै तो आजाद हूँ कभी भी जीते जी अंग्रेजो के हाथ नही आऊँगा और आ भी गया तो वह जिन्दगी का मेरा आखिरी पल होगा।
अंग्रेजों ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी की सजा सुनाई थी। उनको बचाने के लिए चंद्रशेखर आजाद योजना बना रहे थे इसके लिए वह अपने एक साथी सुखदेव से मिलने के लिए 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में गए थे। इसकी सूचना मुखबिर ने पुलिस को दे दी। जिससे पार्क के अंदर ही पुलिस ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया था। लेकिन चन्द्रशेखर आजाद ने इस स्थिति में भी अपनी हिम्मत का परिचय देते हुए अंग्रेजां पर गोलियाँ चलानी शुरू कर दी। इसके बाद उन्होंने उस स्थान से अपने साथी सुखदेव को किसी तरह भगा दिया और खुद अंग्रेजों का सामना करने लगे।
चूँकि चन्द्रशेखर आजाद अंग्रेजों से चारो तरफ से घिर चुके थे और उन्हें लगने लगा था कि अब वे अंग्रेजों का सामना नहीं कर पाएँगे क्यूँकि उनकी पिस्तौल में सिर्फ एक ही गोली बची थी। उन्होंने अपने खुद से किये वादे के मुताबिक जीते जी अंग्रेजो के हाथ न आने के लिए खुद को आखिरी गोली से उड़ा लिया। इस तरह भारत माँ का लाल भारत माँ की गोद में गिर पड़ा था और खुद को भारत माँ की आजादी के लिए प्राणों को न्योछावर कर दिया था।
लेकिन चन्द्रशेखर आजाद से अंग्रेज इतने भयभीत थे कि उन पर कई सौ गोलियाँ चलायी। फिर जब उन्हें विश्वास हो गया कि चन्द्रशेखर आजाद अब मृत हैं तभी उनके खून से सने शरीर के पास गये और इस प्रकार उनकी मृत्यु की पुष्टि की गयी। अब उस अल्फ्रेड पार्क का नाम बदलकर आजाद पार्क कर दिया गया है।
इस प्रकार चन्द्रशेखर आजाद द्वारा अक्सर कहने वाली ये शायरी सत्य सिद्ध हुई –
दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे।
आजाद ही रहे हैं, आजाद ही मरेंगे।।
विनोद भट्ट