एक समय की बात है । एक नगर में एक कंजूस राजेश नामक व्यक्ति रहता था । उसकी कंजूसी सर्वप्रसिद्ध थी । वह खाने, पहनने तक में भी कंजूस था । एक बार उसके घर से एक कटोरी गुम हो गई । इसी कटोरी के दुःख में राजेश ने 3 दिन तक कुछ न खाया । परिवार के सभी सदस्य उसकी कंजूसी से दुखी थे । मोहल्ले में उसकी कोई इज्जत न थी, क्योंकि वह किसी भी सामाजिक कार्य में दान नहीं करता था । एक बार उस राजेश के पड़ोस में धार्मिक कथा का आयोजन हुआ । वेदमंत्रों व् उपनिषदों पर आधारित कथा हो रही थी ।
राजेश को सद्बुद्धि आई तो वह भी कथा सुनने के लिए सत्संग में पहुँच गया । वेद के वैज्ञानिक सिद्धांतों को सुनकर उसको भी रस आने लगा क्योंकि वैदिक सिद्धान्त व्यावहारिक व वास्तविकता पर आधारित एवं सत्य-असत्य का बोध कराने वाले होते हैं । कंजूस को और रस आने लगा । उसकी कोई कदर न करता फिर भी वह प्रतिदिन कथा में आने लगा । कथा के समाप्त होते ही वह सबसे पहले शंका पूछता । इस तरह उसकी रुचि बढ़ती गई । वैदिक कथा के अंत में लंगर का आयोजन था इसलिए कथावाचक ने इसकी सूचना दी कि कल लंगर होगा । इसके लिए जो श्रद्धा से कुछ भी लाना चाहे या दान करना चाहे तो कर सकता है ।
अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार सभी लोग कुछ न कुछ लाए । कंजूस के हृदय में जो श्रद्धा पैदा हुई वह भी एक गठरी बांध सर पर रखकर लाया । भीड़ काफी थी । कंजूस को देखकर उसे कोई भी आगे नहीं बढ़ने देता । इस प्रकार सभी दान देकर यथास्थान बैठ गए । अब कंजूस की बारी आई तो सभी लोग उसे देख रहे थे । कंजूस को विद्वान की ओर बढ़ता देख सभी को हँसी आ गई क्योंकि सभी को मालूम था कि यह महाकंजूस है । उसकी गठरी को देख लोग तरह-तरह के अनुमान लगते ओर हँसते । लेकिन कंजूस को इसकी परवाह न थी । कंजूस ने आगे बढ़कर विद्वान ब्राह्मण को प्रणाम किया । जो गठरी अपने साथ लाया था, उसे उसके चरणों में रखकर खोला तो सभी लोगों की आँखें फटी-की-फटी रह गई ।
कंजूस के जीवन की जो भी अमूल्य संपत्ति गहने, जेवर, हीरे-जवाहरात आदि थे उसने सब कुछ को दान कर दिया । उठकर वह यथास्थान जाने लगा तो विद्वान ने कहा, “महाराज! आप वहाँ नहीं, यहाँ बैठिये ।”कंजूस बोला, “पंडित जी! यह मेरा आदर नहीं है, यह तो मेरे धन का आदर है, अन्यथा मैं तो रोज आता था और यहीं पर बैठता था, तब मुझे कोई न पूछता था।”ब्राह्मण बोला, “नहीं, महाराज! यह आपके धन का आदर नहीं है, बल्कि आपके महान त्याग (दान) का आदर है ।
यह धन तो थोड़ी देर पहले आपके पास ही था, तब इतना आदर-सम्मान नहीं था जितना की अब आपके त्याग (दान) में है इसलिए आप आज से एक सम्मानित व्यक्ति बन गए है।
शिक्षा :- मनुष्य को कमाना भी चाहिए और दान भी अवश्य देना चाहिए । इससे उसे समाज में सम्मान और इष्टलोक तथा परलोक में पुण्य मिलता है ।
रौनक कुमावत