धारा 370 और अनुच्छेद 35-ए अब इतिहास की बात हो गई है। परन्तु अनुच्छेद 370 शुरू से ही राष्ट्रीय बहस का मुद्दा रहा था। देश का एक वर्ग इसे जम्मू-कश्मीर के लोगों को भारत से जोड़ने वाली कड़ी मानता आ रहा था। लिहाजा उसकी मान्यता रही है कि इससे कोई छेड़छाड़ कश्मीरी जनता की भावनाओं के अलावा भारत की मूल संवैधानिक प्रस्थापना के भी खिलाफ जाएगी। जबकि राष्ट्रवादी दृष्टिकोण रखने वाली दूसरी राय यह रही है कि इसके तहत मिलने वाले अधिकार और व्यवस्थाएँ भारत की नैसर्गिक एकात्मता के खिलाफ हैं।
जम्मू कश्मीर के महाराज हरि सिंह के बेटे कर्ण सिंह ने भी धारा 370 के हटने पर अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया जाहिर की है। कर्ण सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं और उन्होंने मोदी सरकार के धारा 370 हटाने के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि, ‘केंद्र शासित प्रदेश के रूप में लद्दाख के अस्तित्व का स्वागत है। साथ ही अनुच्छेद 35 ए में लिंग भेदभाव को संबोधित करने की आवश्यकता है।’ उन्होंने कहा कि ‘मेरी एकमात्र चिंता जम्मू और कश्मीर के सभी वर्गों और क्षेत्रों की भलाई है।’
वहीं प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी का कहना है कि अब आर्टिकल 370 और 35-ए, इतिहास की बात हो जाने के बाद, उसके नकारात्मक प्रभावों से भी जम्मू-कश्मीर जल्द बाहर निकलेगा, इसका मुझे पूरा विश्वास है। अनुच्छेद 370 और 35-ए ने जम्मू-कश्मीर को अलगाववाद-आतंकवाद-परिवारवाद और व्यवस्थाओं में बड़े पैमाने पर फैले भ्रष्टाचार के अलावा कुछ नहीं दिया। इन दोनों अनुच्छेद का देश के खिलाफ, कुछ लोगों की भावनाएं भड़काने के लिए पाकिस्तान द्वारा एक शस्त्र के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा था। इसकी वजह से पिछले तीन दशक में लगभग 42 हजार निर्दोष लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का विकास उस गति से नहीं हो पाया, जिसका वो हकदार था। अब व्यवस्था की ये कमी दूर होने से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों का वर्तमान तो सुधरेगा ही, उनका भविष्य भी सुरक्षित होगा। ये फैसला जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के साथ ही पूरे भारत की आर्थिक प्रगति में सहयोग करेगा। जब दुनिया के इस महत्वपूर्ण भूभाग में शांति और खुशहाली आएगी, तो स्वभाविक रूप से विश्व शांति के प्रयासों को मजबूती मिलेगी।
प्रधानमंत्री ने देश के सामने स्पष्ट किया कि लोकतंत्र में ये भी बहुत स्वाभाविक है कि कुछ लोग इस फैसले के पक्ष में हैं और कुछ को इस पर मतभेद है। मैं उनके मतभेद का भी सम्मान करता हूँ और उनकी आपत्तियों का भी। इस पर जो बहस हो रही है, उसका केंद्र सरकार जवाब भी दे रही है। समाधान करने का प्रयास भी कर रही है, ये हमारा लोकतांत्रिक दायित्व है। लेकिन मेरा उनसे आग्रह है कि वो देशहित को सर्वोपरि रखते हुए व्यवहार करें और जम्मू-कश्मीर-लद्दाख को नई दिशा देने में सरकार की मदद करें। देश की मदद करें। संसद में किसने मतदान किया, किसने नहीं किया, किसने समर्थन दिया, किसने नहीं दिया, इससे आगे बढ़कर अब हमें जम्मू-कश्मीर-लद्दाख के हित में मिलकर, एकजुट होकर काम करना है।
वस्तुतः धारा 370, जम्मू और कश्मीर के लिए एक अजीबोगरीब विडंबना थी, जिसने यहां के मुस्लिम समाज को एक आक्रांता का रूप दिया और दूसरी ओर जम्मू, पुंछ, राजौरी, किश्तवाड़, लद्दाख जैसे क्षेत्र के विकास का रास्ता बंद कर दिया। हालांकि अब ये नहीं हो पाएगा। पूरे जम्म-कश्मीर, लद्दाख प्रांत को केंद्र की सुविधाओं और योजनाओं का फायदा पहुंचेगा। यह 70 वर्षो के निरंतर चले आ रहे संघर्ष का परिणाम है कि अस्थायी धारा 370 एवं 35 ए हटाई गई। इसके लिए प्रजा परिषद ने भी आंदोलन किए। जिसमें जम्मू के स्व. पंडित प्रेम नाथ डोगरा एवं बंगाल के डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इसके लिए आंदोलन चलाकर अपना बलिदान भी दिया। इस निर्णय से जम्मू कश्मीर अब देश की मुख्य धारा में शामिल हुआ है। अब इस निर्णय से जम्मू कश्मीर के लोगों के हित सुरक्षित हुए हैं। यहाँ पर युवाओं को रोजगार के अवसर मिलेंगे। सड़कें बनेंगी और उन सड़कों पर विकास की गाड़ी फर्राटे भरती हुई दौड़ेंगी। नए दफ्तर खुलेंगे, निवेश बढ़ेगा। स्वास्थ्य, शिक्षा, एवं अन्य ढाँचागत सुविधाओं के अलावा सरकारी कर्मचारियों को लाभ मिलेंगे। परिसीमन पर लगी रोक हटेगी। इसके अलावा यहाँ के निवासियों को अपनी नागरिकता का परिणाम देने का झंझट खत्म हुआ है। पंचायती राज पहली बार राज्य में मजबूत होगा। इससे ग्रामीण क्षेत्र में विकास की बयार बहेगी। महिला वर्ग को लाभ के अलावा अनुसूचित, जनजाति ओबीसी को भी लाभ मिलेगा। पश्चिमी पाकिस्तानी नागरिकों को भी लाभ मिलेगा। कुल मिलकर अब यह प्रबल सम्भावना बनी है कि अलग हुए दोनों केंद्र शासित प्रदेशों का नव निर्माण विकास की पटरी पर द्रुत गति से होगा।
राज्य में पिछले तीन-चार दशकों से जिस तरह के हालात बने हुए थे, उसे देखते हुए यह जरूरी भी हो गया था कि इस अनुच्छेद को खत्म कर दिया जाए। ऐसा करते समय जाहिर है सरकार के सामने राज्य के विकास को लेकर अपनी परिकल्पनाएँ होंगी। राज्य की संवेदनशील स्थिति के मद्देनजर किसी भी जोखिम से निपटने की रणनीति सरकार के पास है और इसके लिये जरूरी तैयारी भी उसने कर रखी है। लेकिन यह धारणा बनाना उचित नहीं होगा कि अनुच्छेद 370 खत्म होने से कश्मीर की समस्या रातोंरात सुलझ जाएगी। इसके अलावा इसे किसी की जीत या हार के रूप में प्रचारित करना ठीक नहीं है क्योंकि असल मुद्दा तो उस क्षेत्र की अस्मिता, कश्मीरियत बचाने का है। सबसे बड़ी कामना अब यही है कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने और जम्मू-कश्मीर को दो राज्यों में बाँट देने के बाद वर्षों से जिसकी पूरे देश को प्रतीक्षा थी वो अमन-चैन फिर से कायम हो जाए और जम्मू-कश्मीर पुनः देश का नंदन वन बन जाए।