“सूर्य की पहली छटा की अग्नि का है वास इसमें
पूर्वजों की यह पताका विजय का विश्वास इसमें
कोटि हृदयों के मिलन की भावना इसमें जुडी है।
आज नव संवत्सर के पूजा की घड़ी है ….”
नव संवत्सर 2075, युगाब्द 5120 की हार्दिक मंगल कामनाएँ! संवत्सर एक संस्कृत शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘एक वर्ष’। समय की संकल्पना से उत्पन्न, संवत्सर समय के विशाल कालचक्र का एक सूक्ष्म घटक है। इस बार रुद्रविशंति के इस पाँचवे संवत्सर का नाम विरोधकृत संवत्सर है जिसका राजा सूर्य और मंत्री शनि है। विक्रम संवत का प्रारम्भ 57 ईसवी पूर्व में हुआ था। सम्राट विक्रमादित्य द्वारा शकों पर विजय प्राप्त करने की स्मृति में इस दिन आनंदोत्सव मनाया जाता था। सम्राट विक्रमादित्य ने इस संवत्सर की शुरुवात की थी, इसीलिए उनके नाम से ही इस संवत का नामकरण हुआ है।
इस नववर्ष को भारत के विभिन्न प्रान्तों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है – जैसे की महाराष्ट्र में ‘गुड़ी पाड़वा’, जम्मू-कश्मीर में ‘नवरेह’, सिंधियों में ‘चेटी चंद’, केरल में ‘विशु’, असम में ‘रोंगली बिहू’, आंध्र, तेलंगाना तथा कर्नाटक में ‘उगादी’ और मणिपुर में ‘साजिबू नोंग्मा पन्बा चौराओबा’। समूचा भारत चैत्र माह से ही नववर्ष का प्रारम्भ मानता है। पुराणों के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण किया था, इसलिए इस पावन तिथि को नव संवत्सर पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। संवत्सर-चक्र के अनुसार सूर्य इस ऋतु में अपने राशि-चक्र की प्रथम राशि मेष में प्रवेश करता है।
इस समय के दौरान जलवायु और सौर प्रभावों का एक महत्वपूर्ण संगम होता है। चैत्र नवरात्रि के दौरान उपवास करके शरीर को आगामी ग्रीष्म ऋतु के लिए तैयार किया जाता है। इस समय हमारे शरीर में नया रक्त का निर्माण और संचार होता है ।नव संवत्सर के दिन नीम की कोमल पत्तियों और ऋतु काल के पुष्पों का मिश्रण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, मिश्री, जीरा और अजवाइन मिलाकर खाने से रक्त विकार, चर्मरोग आदि शारीरिक व्याधियाँ होने की संभावना नहीं रहती हैं तथा वर्षभर हम स्वस्थ और रोग मुक्त रह सकते हैं।
जंग-ए-आजादी में शहीदों ने कुर्बानी इसलिए दी थी कि देश आजाद हो सके। लेकिन क्या हम उनके बलिदान का मूल्य समझ रहे हैं। जवाब है, नहीं। अफसोस है कि हम आजादी के मूल्यों को तिरस्कृत करने पर तुले हैं। लोगों की सोच व्यक्तिवादी हो गई। जबकि राष्ट्रहित को लोगों ने नेपथ्य में ढ़केल दिया है। देश को आजादी कई कुर्बानियों व बलिदानों की मूल्य पर मिली है। शहीदों व आजाद हिंदुस्तान का सपने देखने वाले लाखों क्रांतिकारियों की शहादत के दम पर आज हम आजाद हिंदुस्तान में जी रहे है।
अग्रिधर्मा मिजाज के क्रांतिकारी कवि शलभ श्रीराम सिंह की एक कविता का यह अंश
‘वतन की राह पर हुए हैं शौक से जो बेवतन,
उन्हीं की आह बेअसर, उन्हीं की लाश बेकफन’
आज हृदय में शूल की तरह चुभता है, बेधता है और दर्द देता है । आज की पीढ़ी जिस तरह राष्ट्रीय चरित्र को बिसरा कर अवनति के गर्त में समाने की अंधी दौड़ में लगी है, उसे देख कर प्रश्न उठता है कि आजादी के यज्ञ में अपनी जवानी को होम कर देने वाले, ताउम्र सागर मंथन कर हमको आजादी रूपी अमृत का घूँट पिलाने वालों ने क्या इस दिन के लिए आत्मोत्सर्ग किया था? देश का सूरत-ए हाल देख महसूस होता है कि जहाँ बहारों के दिन आने वाले थे, उस चमन में अमृत की जगह विष मिल गया लगता है । जिस माटी को चंदन की तरह पूजित होना चाहिए, वहाँ ध्वंसों का इतिहास शिलापट्टों में बिखरा पड़ा है। उदासी है, बेबसी है और अतीत को बिसराने से पैदा हुई विकलता है। इन सबमें निराश होने का कोई कारण नहीं है क्योंकि समाधान जो सहज और सरल है और हमारे ही हाथ में है।
राष्ट्र को मजबूती देने के लिए समाज को सुदृढ़ बनाना होगा और समाज को मजबूती देने हेतु परिवार की निर्बलता को सबलता में बदलना होगा। व्यक्ति से परिवार बनते हैं, परिवार से समाज का निर्माण होता है और समाज से राष्ट्र का विनिर्माण होता है। सबके मूल में है व्यक्ति। ढे़रों सुधारों की प्रक्रिया एवं विकास की बहुविधि धारणाओं और अवधारणाओं के बीच हमें यह ध्यान रखना होगा कि व्यक्ति का सही निर्माण हुए बिना न तो श्रेष्ठ परिवार का निर्माण एवं विकास सम्भव है और न ही समाज व राष्ट्र का सशक्तिकरण। ‘हम बदलें तो युग बदले’ की अवधारणा के महत्व को नजरअंदाज करने की गलती को अब बिना देर किये ठीक करना होगा।
इसके लिए संस्कार व्यवस्था के साथ- साथ संस्कृति की विविध धाराओं में आ गये विकारों को दूर करने का समय अब आ गया है। साथ ही समृद्ध और सशक्त राष्ट्र के निर्माण के लिए देशवासियों को प्रचण्ड़ पुरुषार्थ, कर्मठता, निष्ठा, सच्चरित्रता, राष्ट्रीय अनुशासन, श्रेष्ठ जीवन दर्शन, सहयोग-सहकार, मूर्धन्य सहकारिता, नैतिक मर्यादा, कर्तव्य-धर्म, कथनी व करनी की समानताएँ, तात्कालिक नहीं बल्कि दूरवर्ती हितों को प्रश्रय, व्यक्तिवाद नहीं वरन् समूहवाद। सशक्त संविधान, कानून का सख्ती से पालन, राष्ट्रनिष्ठा ही ईश्वरनिष्ठा जैसे जीवन मन्त्रों को अपनाना होगा।समुन्नत, समृद्ध और सुखी राष्ट्र बनाने के लिए इसके सिवाय दूसरा कोई चारा है ही नहीं।
“करते जायें नव युग सर्जन, जन -जन में भर दें नवजीवन ।
धरती को नन्दन वन कर दें, पूरी होगी तभी साधना ।।
अविरल चलती रहे साधना…”