पंजाब की धरती ने अनेक महान और वीर पुरुष पैदा किये हैं | उनमे से ही एक थे ‘ लाला लाजपत राव ‘ | जिन्हें “शेरे पंजाब ” या “पंजाब केसरी ” कहा जाता था | वे सचमुच नर केसरी थे, केवल पंजाब ही नहीं , अपितु सारे भारत के l जैसे केसरी की दहाड़ से वन के जीव जन्तु भयभीत हो जाते हैं, उसी तरह लाला लाजपत राय की गर्जना से अग्रेज सरकार काँप उठती थी | जब देश आजादी की लड़ाई रहा था, तब उनका नाम युवाओ के लिए प्रेरणा और उत्साह का प्रतिक बन गया था |
लाला लाजपत राय मुंशी किशन आजाद और गुलाब देवी के ज्येष्ठ पुत्र थे | उनका जन्म पंजाब के फिरोजपुर जिले के ढोढ़ी नामक गांव में हुआ था | माता गुलाब देवी प्रतिदिन संध्या, हवन आदि किया करती थी | बालक लाजपत राय के चरित्र गठन में उनके माता-पिता के दिए संस्कारों का ही हाथ था |वे तीव्र बुद्धि के प्रतिभाशाली छात्र थे | लाला लाजपत राय ने वर्ष 1889 में वकालत की पढाई के लिए लाहौर के सरकारी विद्यालय में दाखिला लिया | कॉलेज के दौरान वह लाला हंसराज और पंडित गुरुदत्त जैसे देशभक्तों और भविष्य के स्वतंत्रता सेनानियों के संपर्क में आये | तीनो अच्छे दोस्त बन गए और स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा स्थापित आर्य समाज में शामिल हो गए | लाला लाजपत राय लाला लाजपत राय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीन प्रमुख हिन्दू राष्ट्रवादी नेताओ में से एक थे | वह लाल-बाल-पाल की तिकड़ी का हिस्सा थे | बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चन्द्र पाल इस तिकड़ी के दूसरे दो सदस्य थे। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में नरम दल (जिसका नेतृत्व पहले गोपाल कृष्ण गोखले ने किया) का विरोध करने के लिए गरम दल का गठन किया। लालाजी ने बंगाल के विभाजन के खिलाफ हो रहे आंदोलन में हिस्सा लिया। उन्होंने सुरेन्द्र नाथ बैनर्जी, बिपिन चंद्र पाल और अरविन्द घोष के साथ मिलकर स्वदेशी के सशक्त अभियान के लिए बंगाल और देश के दूसरे हिस्से में लोगों को एकजुट किया। लाला लाजपत राय को 3 मई 1907 को रावलपिंडी में अशांति पैदा करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया और मांडले जेल में छः महीने रखने के बाद 11 नवम्बर 1907 को रिहा कर दिया गया।
अब तक स्वतंत्रता संग्राम ने एक क्रन्तिकारी मोड़ ले लिया था, इसलिए लालाजी का चाहते थे कि भारत की वास्तविक परिस्थिति का प्रचार दूसरे देशों में भी किया जाये। इस उद्देश्य से 1914 में वह ब्रिटेन गए। इसी समय प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया जिसके कारण वह भारत नहीं लौट पाये और फिर भारत के लिए समर्थन प्राप्त करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए। उन्होंने इंडियन होम लीग ऑफ. अमेरिका की स्थापना की और ष्यंग इंडियाष् नामक एक पुस्तक लिखी। पुस्तक के द्वारा उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन को लेकर गंभीर आरोप लगाये और इसलिए इसे ब्रिटेन और भारत में प्रकाशित होने से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया गया। 1920 में विश्व युद्ध खत्म होने के बाद ही वह भारत लौट पाये। वापस लौटने के पश्चात लाला लाजपत राय ने जलियाँवाला बाग नरसंहार के खिलाफ पंजाब में विरोध प्रदर्शन और असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया। इस दौरान वो कई बार गिरफ्तार भी हुए। वह चौरी चौरा कांड के कारण असहयोग आंदोलन को बंद करने के गांधी जी के निर्णय से सहमत नहीं थे और उन्होंने कांग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी की स्थापना की। 1924 में लालाजी कांग्रेस के अन्तर्गत ही बनी स्वराज्य पार्टी में शामिल हो गये और ‘केन्द्रीय धारा सभा के सदस्य चुन लिए गये। जब उनका पण्डित मोती लाल नेहरू से राजनैतिक मतभेद हो गया तो उन्होंने ‘नेशनलिस्ट पार्टी’ का गठन किया और पुनः असेम्बली में पहुँच गये। अन्य विचारशील नेताओं की भाँति लालाजी भी कांग्रेस में दिन-प्रतिदिन बढ़ने वाली मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति से अप्रसन्नता अनुभव करते थे, इसलिए स्वामी श्रद्धानन्द तथा मदनमोहन मालवीय के सहयोग से उन्होंने ‘हिन्दू महासभा’ के कार्य को आगे बढ़ाया।
1925 में उन्हें ‘हिन्दू महा सभा’ के कलकत्ता अधिवेशन का अध्यक्ष भी बनाया गया। सन1912 में लाला लाजपत राय ने एक ‘अछूत कॉन्फ्रेंस’ आयोजित की थी, जिस का उद्देश्य हरिजनों के उद्धार के लिये ठोस कार्य करना था। उन्हीं के प्रयासों से 1926 ई. में ‘श्रमिक संघ अधिनियम’ पारित किया गया। उन्होंने ‘तरुण भारत श्नामक पुस्तक लिखी, जिसे ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। उन्होंने ‘यंगइंण्डिया’ नामक मासिक पत्र भी निकाला। इसी दौरान उन्होंने ‘भारत का इंग्लैंड पर ऋण’, ‘भारत के लिए आत्मनिर्णय’ आदि पुस्तकें लिखीं। लालाजी परदेश में रहकर भी अपने देश और देशवासियों के उत्थान के लिए काम करते रहे थे। अपने चार वर्ष के प्रवास काल में उन्होंने श्इंडियन इन्फॉर्मेशनश् और श्इंडियन होमरूलश् दो संस्थाएं सक्रियता से चलाईं। 1920 में उन्होंने पंजाब में असहयोग आन्दोलन का नेतृत्व किया, जिस के कारण उन्हें 1921 में जेल हुई। उनके नेतृत्व में यह आंदोलन पंजाब में जंगल की आग की तरह फैल गया और जल्द ही वे ‘पंजाब का शेर या श्पंजाब केसरीश् जैसे नामों से पुकारे जाने लगे।
साइमन कमीशन का विरोध
वर्ष1928 में ब्रिटिश सरकार ने संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए साइमन कमीशन को भारत भेजने का फैसला किया। कमीशन में कोई भी भारतीय सदस्य न होने की वजह से सभी लोगों में निराशा ओर क्रोध व्याप्त था। अक्टूबर 1928 में साइमन कमीशन भारत आया ।
कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पास करके कमीशन के बहिष्कार की घोषणा की थी इसलिए साइमन कमीशन जहाँ भी जाता था वहा सभाओं और जुलूसों के द्वारा उसका बहिष्कार किया जाता था। 30 अक्टूबर को कमीशन लाहौर स्टेशन पर भी पहुँचा। कमीशन का बहिष्कार करने के लिए भारी भीड़ एकत्र थी। भीड़ का नेतृत्व स्वयं लालाजी कर रहे थे। घुड़सवार पुलिस रास्ता रोककर खड़ी थी। अचानक पुलिस ने रास्ता बनाने के लिए लाठीचार्ज कर दिया। हालांकि जुलूस शांति पूर्ण निकाला गया था, पर ब्रिटिश सरकार ने बेरहमी से जुलूस पर लाठी चार्ज करवाया। पुलिस कप्तान सांडर्स का संकेत पाकर एक गोरे सिपाही ने लालाजी पर भी लाठी से जोरदार प्रहार किया। चोट उनकी छाती पर लगी और वे धराशायी हो गये। उन्हें शीघ्र अस्पताल पहुँचाया गया। उन पर जीवन रक्षा के लिए किये गये सारे प्रयत्न व्यर्थ गये और 17 नवंबर 1928 को गर्जना करने वाला यह शेर सदा के लिए सो गया। जाते जाते भी उनकी टूटती सांसों ने कहा ‘‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील काम करेगी।ष् उनकी बात 19 वर्ष बाद सच भी निकली ।
लाला जी की मृत्यु से सारा देश उत्तेजित हो उठा और चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी की मौत का बदला लेने का निर्णय किया। इन जाँबाज देशभक्तों ने लालाजी की मौत के ठीक एक महीने बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली और 17 दिसम्बर 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफसर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया। लालाजी की मौत के बदले सांडर्स की हत्या के मामले में ही राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह को फाँसी की सजा सुनाई गई। लाला लाजपत राय स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ एक अच्छे लेखक भी थे। उनकी कुछ पुस्तकों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका.ए हिंदू इंप्रेशन एण्ड ए स्टडी, ए हिस्ट्री ऑफ द आर्य समाज, स्वराज एवं सोशल चेंज और भारत का इंग्लैंड पर ऋण, भारत में ब्रिटेन की राजकोषीय नीति का ऐतिहासिक विवरण का विशेष उल्लेख किया है। उन्होंने ने पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी की भी स्थापना की थी।
तरुण शर्मा