इन्हीं सावरकर दंपत्ति के यहां वैशाख कृष्ण 6, संवत् 1940 (द. भारतीय गणना) तदनुसार 28 मई, सन् 1883 को एक बालक का जन्म हुआ और भारतीय इतिहास में यही बालक आगे चलकर वीर विनायक दामोदर सावरकर के नाम से विख्यात हुआ।
विनायक के पिता दामोदर तथा माता राधा बाई दोनो ही हिंदुत्वाभिमानी व धार्मिक वृत्ति के थे। माता-पिता बालक विनायक को नित्स नियम से भगवान राम, कृष्ण, शिव, हनुमान आदि की पौराणिक कथाएँ सुनाते। उसे शिवाजी, महाराणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह द्वारा विधर्मियों से किये गए संघर्षों की ऐतिहासिक गाथाएं सुनाते तो बालक विनायक उत्सुकता से प्रश्न करता, ‘‘माँ, इन वीरों ने संघर्ष क्यों किया?’’
और माँ अपने नन्हे-मुन्ने का मुख चूम लेती।
राधाबाई विनायक को 10 वर्ष का छोड़कर अचानक स्वर्गवासी हो गईं। माँ की पूजा का भार नन्हे-मुन्ने विनायक पर आ गया। वह सिंहवाहिनी दुर्गा की बड़ी तन्मयता से पूजा-आराधना करता। साथ ही उनकी मूर्ति के समक्ष गुनगनाता, ‘‘हे माँ, मेरे देश भारत को विदेशी विधर्मी अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त करो। मेरे देश में ‘स्वराज्य’ की स्थापना होनी चाहिए।’’ विनायक का घर का नाम ‘तात्या’ था। तात्या को गाँव के ही स्कूल में ही प्रारम्भिक शिक्षा दिलाई गई।