एक बार पिता और पुत्र खाने बैठे। पिता की थाली में मां ने एक पूरा लड्डू रखा और बच्चे की थाली में आधा। बच्चा रोने लगा, हठ करने लगा कि हमें पूरा ही लड्डू चाहिए। माँ कुशल थी। उसने एक छोटा-सा गोल लड्डू बनाया और बच्चे को परोस दिया। लड़का खुश हुआ। पिता को बड़ा लड्डू मिला और बच्चे को छोटा तो भी वह खुश हुआ, क्योंकि उसे पूरा लड्डू मिल गया था।
इसका अर्थ यह हुआ कि बच्चा कहता है, ‘मेरा पिता जितना पूर्ण आत्मा है, उतना ही पूर्ण आत्मा मैं भी हूँ।’ मैं छोटा हूँ, पर टुकड़ा नहीं हूँ।’ जो विश्व का राजा होगा, वह बड़ा लड्डू होगा और गाँव का राजा छोटा लड्डू होगा। पर वह भी पूर्ण होना चाहिए। इसीलिए हम हमेशा कहते हैं- पूर्णमद : पूर्णमिदम् :
माही भट्ट