प्रत्येक कार्य भगवान के लिए करें। हमारी क्रिया से किसी को कष्ट न हो, दुःख न हो।
अपना – अपना काम ठीक तरह से करें। हरदम सावधानी रखें। सावधानी ही साधना है। हरदम सावधान रहने वाला ही साधक होता है।
सबसे बढ़िया है – त्याग। सेवा तो करे, पर चाहे कुछ नहीं। दूसरों की सेवा करने के लिए ही मानव जन्म है। किसी भी योग – मार्ग से चलो, अन्त में समता आनी चाहिए।
करने की शक्ति केवल सेवा के लिए है, और यह भगवान से मिली है भगवान की चीज भगवान के समर्पित कर देनी चाहिए। जो मिला है, वह साधन – सामग्री है।
मनुष्य शरीर साधन शरीर है। जो परिस्थिति आती है, वह केवल साधन – सामग्री है।
दर्द को महसूस करें …
किसी के दिल के दर्द को सुना नहीं जा सकता, महसूस किया जा सकता है। किसी बीमार व्यक्ति की दर्द को सुनकर उसे सहानुभूति दे सकते हैं। पेड़ पौधों को पानी डालकर उसकी देखभाल कर सकते हैं। फूलों के मुरझाने के बाद उसमें नई कलियाँ खिलने लगती हैं। किसी गरीब आदमी को नए कपड़े और खाना दे सकते हैं। बच्चा रोता है तो उसे खिलौने से खिलाया जा सकता है, वृद्ध अवस्था के लोंगों को आराम दिया जा सकता है, घायल पक्षियों जानवरों को अस्पताल पहुंचाया जा सकता है और देश के शहीद लोंगों को श्रद्धांजलि दी जा सकती है।
गरीबों को सर्दी की पीड़ा से मुक्त करने के लिए उनका दर्द समझकर उन्हें गरम कपड़े दिये जा सकते हैं। जब हम किसी दूसरे का दर्द नहीं सुनेंगे तो हमारा दर्द कोई नहीं सुनेगा। एक दूसरे के दर्द को बाँट लिया जाय तो मनुष्य अपने आप को कभी भी अकेला नहीं पाएगा और आगे चलकर दूसरों की मदद करने के लिए उनके दर्द को समझने के लिए निरंतर प्रयास करेगा। इस जीवन चक्र का मुख्य उद्देश्य यही है कि हम सभी की सहायता करें और एक दूसरे के दर्द को समझ सकें और उसका निदान करें। सिर्फ दर्द को ही नहीं छोटी से छोटी खुशी को भी अगर बाँट ले तो मनुष्य का जीवन अपने आप सरल और खुशियों से भरा हो जाएगा।