नारी सृष्टि का आधार है। नारी के बिना संसार की हर रचना अपूर्ण तथा रंगहीन है। नारी मृदु होते हुए भी कठोर है। उसमें पृथ्वी जैसी सहनशीलता, सूर्य जैसा ओज तथा सागर जैसा गांभीर्य एक साथ दृष्टिगोचर होता है। नारी के अनेक रूप हैं। वह समाज कभी उन्नति नहीं कर सकता जहां नारी को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता।
जयशंकर प्रसाद ने लिखा है-
नारी! तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग-पगतल में ।।
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में ।।
गढ़ा- मंडला की रानी दुर्गावती
जबलपुर से कुछ किलोमीटर दूर एक गांव है ‘‘बरेना’’। बरेना में श्वेत पत्थरों की एक समाधि बनी हुई है। वह समाधि देश की स्वतंत्रता पर बलिदान होने वाली वीर रानी दुर्गावती की है। जो भी मनुष्य उस ओर से निकलता है, वह समाधि के सामने मस्तक झुकाए बिना आगे नहीं बढ़ता। वह मस्तक झुकाकर समाधि के पास एक श्वेत पत्थर भी रख देता है। समाधि के पास अनगिनत श्वेत पत्थर रखे हुए है।…
इंसानियत की जिन्दादिल मिसाल नीरजा भनोट
नीरजा भनोट का जन्म 7 सितम्बर 1963 को पंजाब के चंडीगढ़ जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम हरीश भनोट और माता का नाम रामा भनोट था। नीरजा के पिता हरीश भनोट मुंबई में एक पत्रकार थे और नीरजा की पढाई भी मुंबई में ही हुई। नीरजा ने अपनी शुरुआत की पढ़ाई बोम्बे स्कोटिश कॉलेज से की जबकि सेंट जेवियर कॉलेज से स्नातक की उपाधि ली। नीरजा के माता पिता उनको प्यार से लाडो कहकर पुकारते थे।…
अंग्रेज गवर्नर पर गोली चलाने वाली अदम्य साहसी बंग बाला बीना दास
6 फरवरी 1932 का दिन था जब कलकत्ता विश्वविद्यालय के कनवोकेशन हाल में बैठे सैकड़ों लोग एक युवती द्वारा लगातार चलायी जा रही गोलियों से स्तब्ध रह गए, जिनका निशाना कोई और नहीं बल्कि बंगाल का तत्कालीन गवर्नर स्टेनले जैक्सन था। हालाँकि जैक्सन बच गया पर युवा लड़की के इस साहस ने पूरे ब्रिटिश साम्राज्य को थर्रा कर रख दिया। क्रान्तिकारी और राष्ट्रवादी विचारों से ओत प्रोत वह युवती थी-बीना दास।…
अंग्रेजी अत्याचारों के आगे हार नहीं मानने वाली आत्म बलिदानी कनकलता बरुआ
कनकलता बरुआ भारत माता की शहीद पुत्री हैं जो भारतीय वीरांगनाओं की लंबी कतार में जा मिली। मात्र 17 वर्षीय कनकलता अन्य बलिदानी वीरांगनाओं से उम्र में छोटी भले ही रही हो, लेकिन त्याग व बलिदान में उसका कद किसी से कम नहीं।
आजाद हिन्द फौज की ‘रानी लक्ष्मी रेजिमेन्ट’ की कमाण्डर कैप्टन लक्ष्मी सहगल
कैप्टन लक्ष्मी सहगल भारत की स्वतंत्रता संग्राम की सेनानी थी। वे आजाद हिन्द फौज की ‘रानी लक्ष्मी रेजिमेन्ट’ की कमाण्डर तथा आजाद हिन्द सरकार में महिला मामलों की मंत्री थी। वे व्यवसाय से डॉक्टर थी जो द्वितीय विश्वयुद्ध के समय प्रकाश में आयीं।
जान दे दी पर तिरंगे को झुकने न दिया मातंगिनी हाजरा
भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाली बंगाल की वीरांगनाओं में से एक थीं- मातंगिनी हाजरा। भारतीय इतिहास में उनका नाम बड़े ही मान-सम्मान के साथ लिया जाता है। मातंगिनी हाजरा विधवा स्त्री अवश्य थी, किंतु अवसर आने पर उन्होंने अदम्य शौर्य और साहस का परिचय दिया था। ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के तहत ही सशस्त्र अंग्रेज सेना ने आन्दोलनकारियों को रुकने के लिए कहा। मातंगिनी हाजरा ने साहस का परिचय देते हुए राष्ट्रीय ध्वज को अपने हाथों में ले लिया और जुलूस में सबसे आगे आ गईं। इसी समय उन पर गोलियाँ दागी गईं और इस वीरांगना ने देश के लिए अपना बलिदान दिया।
महिला शिक्षा की पुरोधा और करुणा की प्रतिमूर्ति सावित्री बाई फुले
वे भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्राचार्य और पहले किसान विद्यालय की संस्थापक थी। महात्मा ज्योति बा को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है। उनको महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए सावित्री बाई के न केवल पति अपितु संरक्षक, गुरु और समर्थक थे।
One Comment
Jithin
Queen durgawati the great***