भारत के प्राचीन ऋषि मनीषियों ने लम्बी साधना एवं गहन अध्ययन के द्वारा शरीर को स्वस्थ एवं दीर्घायु रखने के लिये विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों को विकसित किया। उनमें से ‘‘मुद्रा विज्ञान’’ एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमें हाथों की अंगुलियों व अँगूठे के उपयोग के द्वारा ही चिकित्सा का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। चिकित्सा पद्धति में हठ योग के आसन, प्राणायाम एवं बंध की कुछ जानकारी अधिकांश लोगों को है परन्तु मुद्राओं की जानकारी एवं उनके अद्भुत प्रभाव से अधिकांश जन अपरिचित हैं। आइए, कुछ मुद्राएँ और उनके प्रभाव से परिचित होते है
विधि :-
कनिष्ठा एवं अनामिका अंगुलियों के अग्र भाग को अँगूठे के अग्रभाग से मिलाएं। शेष दोनों अंगुलियां सीधी रखनी हैं।
ध्यातव्य :- जल तत्व, पृथ्वी तत्व और अग्नि तत्व तीनों के मिलने से यह मुद्रा बनती है। प्राणवायु हृदय से कण्ठ तक घूमती है, अतः इस मुद्रा को करने से हृदय से कण्ठ तक के सभी अंगों के रोग दूर होते हैं। अनामिका अंगुली सूर्य ग्रह का प्रतीक है। यह अंगुली सभी विटामिनों और प्राण शक्ति का केन्द्र मानी गयी है। छोटी अंगुली बुध ग्रह का प्रतीक है। दोनों मिलकर प्राण शक्ति को बढ़ाते हैं।
अवधि :- 30 से 45 मिनिट।
लाभ :-
यह मुद्रा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है।
इससे तन व मन की दुर्बलता कम होती है जीवनी शक्ति बढ़ती है। विटामिनों की कमी दूर होती है, जिससे आयु बढ़ती है। नेत्र ज्योति बढ़ती है, दृष्टिदोष भी दूर होते हैं।
थकावट दूर होती है, नस नाड़ियों एवं अन्य अंगों का दर्द ठीक होता है।
रक्त संचार सुचारु होकर रक्त शोधन होता है। रक्त वाहिनियों की रूकावटें (ठसवबांहम) दूर होती हैं।
लकवे (च्ंतंसलेपे) की कमजोरी दूर होती है।
प्राण मुद्रा से भूख प्यास पर भी नियन्त्रण किया जा सकता है उपवास में इसका उपयोग लाभकारी है। ;षि मुनि लम्बी साधना में इसका उपयोग करते थे।
कैंसर, मधुमेह, अस्थमा, श्वास रोगों, ब्रोंकाइटिस में भी लाभकारी है। मधुमेह में इसके साथ अपानमुद्रा भी करें तो अधिक लाभ होगा।
सभी प्रकार के फ्लू (स्वाईन), डेंगू आदि में यह मुद्रा लाभदायक है।
श्रीवर्द्धन लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक हैं।
साथ ही योग, प्राणायाम, एक्यूप्रेशर एवं मुद्रा विज्ञान
के सिद्धहस्त एवं अभिनव शोधकर्ता भी हैं।