भारत में योग का इतिहास लगभग 5000 साल पुराना है और मानसिक, शारीरिक एवं आध्यात्म के रूप में लोग प्राचीन काल से ही इसका अभ्यास करते आ रहे हैं। योग की उत्पत्ति सर्वप्रथम भारत में ही हुई इसके बाद यह दुनिया के अन्य देशों में लोकप्रिय हुआ। प्राचीन काल में यहां लोग मस्तिष्क की शांति के लिए ध्यान करते थे। योग की उत्पत्ति भगवान शिव से हुई है जिन्हें आदि योगी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव को दुनियाभर के योगियों का गुरू माना जाता है। इसके बाद ऋषि-मुनियों से योग को लोकप्रिय बनाया और योग ने दुनिया भर में ख्याति अर्जित की। आज सूर्य नमस्कार , अनुलोम-विलोम सहित कई योगासन एवं ध्यान का अभ्यास तन को स्वस्थ रखने एवं मस्तिष्क को शांत रखने के लिए किया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून को मनाया जाता है। यह दिन वर्ष का सबसे लंबा दिन होता है और योग भी मनुष्य को दीर्घ जीवन प्रदान करता है। पहली बार यह दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया, जिसकी पहल भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण से की थी जिसमें उन्होंने कहा :-
“योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है; मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है; विचार, संयम और पूर्णता प्रदान करने वाला है तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को भी प्रदान करने वाला है। यह व्यायाम के बारे में नहीं है, लेकिन अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति की खोज के विषय में है। हमारी बदलती जीवन-शैली में यह चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकता है। तो आएँ एक अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को गोद लेने की दिशा में काम करते हैं।“
-नरेंद्र मोदी, संयुक्त राष्ट्र महासभा
जिसके बाद 21 जून को ‘‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’’ घोषित किया गया। 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र में 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को “ अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस“ को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली। प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रस्ताव को 90 दिन के अंदर पूर्ण बहुमत से पारित किया गया, जो संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है। प्रथम बार विश्व योग दिवस के अवसर पर 192 देशों में योग का आयोजन किया गया जिसमें 47 मुस्लिम देश भी शामिल थे।
योग दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य :
युवाओं के बीच योग एवं ध्यान को विकसित करना है जिससे वे जागरूक होकर योग एवं ध्यान के जरिए मानसिक शांति हासिल कर सकें। ध्यान तनाव को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है एवं योग तन और मन को स्वस्थ रखता है।
योग शरीर के आंतरिक अंगों में ऑक्सीजन एवं रक्त प्रवाह को बढ़ाकर शरीर की क्रियाओं को बेहतर बनाता है। शरीर के सभी अंगों में सही तरीके से खून का संचार होने से हृदय, फेफड़े, किडनी एवं अन्य अंगों से जुड़ी बीमारियों की संभावना कम हो जाती है।
योग दिवस का उद्देश्य लोगों को योग के बारे में जागरूक करना है ताकि बिना किसी दवा के लोग अपने तनाव से प्राकृतिक तरीके से छुटकारा पा सकें।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने का उद्देश्य विभिन्न जाति, भाषा, धर्म एवं पृष्ठभूमि के लोगों के बीच भेदभाव को खत्म कर उन्हें एक मंच पर लाकर विश्व शांति कायम करना है।
योग की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करना, योग से होने वाले फायदों के बारे में बताना, लोगों को प्रकृति से जोड़ना आदि योग दिवस के मुख्य उद्देश्य हैं।
क्या है योग ?
योग शब्द संस्कृत भाषा के युज से लिया गया है जिसका अर्थ है एक साथ जुड़ना। मन-मस्तिष्क एवं शरीर पर नियंत्रण रखने एवं खुशहाल जीवन के लिए योग काफी लोकप्रिय है। मन के नियंत्रण से ही योग मार्ग में आगे बढ़ा जा सकता है। मन क्या है? इसके विषय में दार्शनिकों ने अपने-अपने मत दिए हैं तथा मन को अन्तःकरण के अंतर्गत स्थान दिया है। मन को नियंत्रण करने की विभिन्न योग प्रणालियां विभिन्न दार्शनिकों ने बतलाई हैं।
महर्षि पतंजलि के अनुसार – ‘अभ्यास-वैराग्य द्वारा चित्त की वृत्तियों पर नियंत्रण करना ही योग है।’
‘जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग; अद्वेतानुभूति योग कहलाता है।’ – विष्णु पुराण
सांख्य के अनुसार- ‘पुरुष एवं प्रकृति के पार्थक्य को स्थापित कर पुरुष का स्वतः के शुद्ध रूप में अवस्थित होना ही योग है।
मनुष्य की सभी मानसिक बुराइयों को दूर करना का एक मात्र उपाय अष्टांग योग है। राजयोग के अंतर्गत महर्षि पतंजलि ने अष्टांग को इस प्रकार बताया है।
यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टाङ्गानि।
1. यम (पांच ’परिहार’) : अहिंसा, झूठ नहीं बोलना, गैर लोभ, गैर विषयासक्ति और गैर स्वामिगत।
2. नियम (पांच ’धार्मिक क्रिया’): पवित्रता, संतुष्टि, तपस्या, अध्ययन और भगवान को आत्मसमर्पण।
3. आसनः मूलार्थक अर्थ ’बैठने का आसन’ और पतंजलि सूत्र में ध्यान।
4. प्राणायाम (’सांस को स्थगित रखना’): प्राण, सांस, ‘अयामा’, को नियंत्रित करना या बंद करना। साथ ही जीवन शक्ति को नियंत्रण करने की व्याख्या की गई है।
5. प्रत्याहार (’अमूर्त’): बाहरी वस्तुओं से भावना अंगों के प्रत्याहार।
6. धारणा (’एकाग्रता’): एक ही लक्ष्य पर ध्यान लगाना।
7. ध्यान (’ध्यान’): ध्यान की वस्तु की प्रकृति गहन चिंतन।
8. समाधि (’विमुक्ति’): ध्यान के वस्तु को चैतन्य के साथ विलय करना। इसके दो प्रकार है – सविकल्प और अविकल्प। अविकल्प समाधि में संसार में वापस आने का कोई मार्ग या व्यवस्था नहीं होती। यह योग पद्धति की चरम अवस्था है।)
योग से आप बहुत कुछ प्राप्त करेंगे! सुंदर काया, चमकदार त्वचा, अच्छा निरामय लचीला शरीर, विनियमित वजन, तंदरुस्त स्वास्थ्य और शांत मन – योग के लाभों में यह सब शामिल है। हालांकि अधिकतर योग अक्सर आसन तक ही सीमित नहीं होते। इसका लाभ केवल शारीरिक स्तर पर ही पहचाना जाता है और यही कारण है कि हम अपने बड़े लाभों की अनदेखी करते हैं जैसे योग शरीर और मन को एक साथ लाने में कार्य करता है। जब आपके शरीर और मन दोनों एक-दूसरे के साथ तुल्य हैं तो जीवन पहले से भी अधिक संतुष्ट और खुश हो जाता है।
इसलिए हर किसी को योग का अभ्यास करना चाहिए और इसे मजबूत, लचीला और कोमल शरीर प्राप्त करने के लिए दैनिक दिनचर्या का एक हिस्सा बनाना चाहिए। जब आप चलते, बैठते या सोते हैं तो इसका नियमित अभ्यास आपके शरीर के आसन को बेहतर बनाने में मदद करता है। यह अनुचित आसन आपके शरीर में शुरू हुए दर्द को फिर से बदलने में आपकी सहायता करेगा।
योग के साथ ध्यान लगाने को यदि संयोजित किया जाए तो यह आपके ज्ञान युक्त कौशल को और बेहतर बनाने में मदद कर सकता है ताकि आप जल्दी से पता लगा सकें कि कब क्या करना आवश्यक है जिससे आपको सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सके। यह काम चमत्कार करता है और इसे आप केवल तभी अनुभव कर सकते हैं जब आप बिना रुके नियमित तरीके से इसका अभ्यास करते रहे। याद रखें योग कभी समाप्त होने वाली प्रक्रिया नहीं है। जितने गहराई में आप इसमें जायेंगे उतना अधिक उपयोगी परिणाम आपको हासिल होगा।
प्रतिमा सामर
प्रधानाचार्य