राम जन्मभूमि विवाद पर पांच जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से जो फैसला दिया है, वह आजाद भारत के एक बहुत पुराने मुकदमे का निपटारा भर नहीं है, बल्कि एक देश के रूप में हमारी मजबूती की राह की बड़ी बाधा का अंत भी है। हम एक मजबूत राष्ट्र कभी नहीं बन सकते, अगर धर्म और आस्था के मुद्दे पर हमारे नागरिक आपस में ही झगड़ते रहें। माननीय अदालत ने न सिर्फ हिंदुओं की आस्था का ख्याल रखते हुए सबूतों के आधार पर राम मंदिर के पक्ष में फैसला दिया है, बल्कि उसी अयोध्या में मुस्लिमों को भी इबादत की जगह देने का हुक्म भी सुनाया है। यह एक बेहद संतुलित फैसला है, इसीलिए इस मामले से जुड़े लगभग सभी पक्षों ने इसका स्वागत किया है।
राम मंदिर पर अदालती फैसले का दिन 9 नवम्बर अपने आपको इतिहास में दर्ज करा गया। यह दिन डेढ़ सदी से पुराने राम जन्म स्थान मंदिर के विवाद के स्थायी समाधान के दिन के साथ साथ अल्लामा इकबाल का जन्मदिन भी है। इस महान् कवि ने प्रभु श्रीराम को ‘इमाम-ए-हिंद’ की पदवी से नवाजा था। बाद में वह भले ही पाकिस्तान का समर्थक हो गया हो, पर आज भी उनकी कृति- ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’, हम सबको कंठस्थ है। अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सबसे अहम् बात यह है कि यह एक सर्वसम्मत और पूर्ण निर्णय है। शीर्ष अदालत ने सिर्फ विवादित भूमि के मालिकाना हक का फैसला नहीं किया है कि यह अधिकार हिंदू पक्ष को जाएगा, वहां मंदिर सरकार बनाएगी, तीन महीने के अंदर इसका प्रारूप तैयार किया जाएगा और मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही पांच एकड़ भूमि दी जाएगी, बल्कि कोर्ट ने इस मामले के बाकी वादियों के बारे में भी निर्देश दिए हैं। अदालती फैसले के मुताबिक, निर्मोही अखाड़ा मंदिर निर्माण से जुडे ट्रस्ट का हिस्सा होगा, तो इस मुकदमे के एक अन्य वादी सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद की भूमि दी जाएगी। इस तरह, सबको कुछ न कुछ देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने अंतिम फैसला कर दिया है।
पिछली करीब डेढ़ सदी से यह मामला कोर्ट में था, लेकिन अस्सी के दशक से इस मुद्दे ने देश की राजनीति और समाज को विभाजित किया। कुल मिलाकर पूरे देश की राजनीति राम मंदिर के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। निश्चित रूप से भारतीय जनता पार्टी को इससे बहुत ज्यादा फायदा हुआ और कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
स्वाभाविक है, शीर्ष अदालत के इस फैसले से हिंदू पक्ष को खुशी हुई है, लेकिन मुस्लिम तबके ने भी अब तक बड़े संयम और जिम्मेदारी के साथ अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं। इस मुकदमे में मुस्लिम पक्ष की पैरोकारी करने वाले मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने फैसले के कुछ बिंदुओं पर असंतोष जताते हुए भी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के प्रति अपना सम्मान जताया है।
दरअसल, इस फैसले से जुड़ी अहम् बात यह है कि सभी पक्षों ने पहले ही कहा था कि अदालत के जरिए जो अंतिम फैसला आएगा, वे उसे कबूल करेंगे और सबने अब तक उसी के अनुरूप आचरण किया है।
अयोध्या का मतलब है कि जिसे जीता न जा सके। इस फैसले से साबित भी हुआ कि उसे जीता नहीं जा सकता। इसके साथ ही कुछ जटिल प्रश्न भी हमेशा के लिए हल हो गए। सबसे बड़ी बात यह तय हो गई कि राम की जन्मभूमि वहीं है। उसका बंटवारा नहीं हो सकता। अयोध्या ने मंदिर और मस्जिद, दोनों को स्वीकार किया। सरयू ने माना कि उसका पानी पूजा और वजू, दोनों के लिए है। अब यह जरूरी है कि न खुशी का इजहार हो, न नफरत का मातम। खुराफाती कारगुजारियाँ खत्म। अब भूख, शिक्षा और विकास के बुनियादी मुद्दे पर आइए। राम की मर्यादा रामराज्य में है और रामराज्य की वास्तविक तस्वीर समाज के सबसे निचले सोपान पर जीवन को तलाश रहे आखिरी आदमी की आंखों में खुशी की चमक लाने पर ही साकार हो सकती है