कवि प्रदीप महान् कवि एवं गीतकार थे जो देशभक्ति गीत ऐ मेरे वतन के लोगों की रचना के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों की श्रद्धांजलि में ये गीत लिखा था। लता मंगेशकर द्वारा गाए इस गीत का तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में 26 जनवरी 1963 को दिल्ली के रामलीला मैदान से सीधा प्रसारण किया गया था। गीत सुनकर जवाहरलाल नेहरू कर आँखें भर आई थी। कवि प्रदीप ने इस गीत का राजस्व युद्ध विधवा कोष में जमा करने की अपील की। मुंबई उच्च न्यायालय ने 25 अगस्त 2005 को संगीत कंपनी एचएमवी को इस कोष में अग्रिम रूप से रुपया10 लाख जमा करने का आदेश दिया था। कवि प्रदीप का मूल नाम ‘रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी’ था। उनका जन्म मध्य प्रदेश प्रांत के उज्जैन में बदनगर नामक स्थान पर हुआ। कवि प्रदीप की पहचान 1940 में रिलीज हुई फिल्म बंधन से बनी। हालांकि 1943 की स्वर्ण जयंती हिट फिल्म किस्मत के गीत ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है’ ने उन्हें देशभक्ति गीतों के रचनाकारों में अमर कर दिया। गीत के अर्थ से क्रोधित तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के आदेश दिए। इससे बचने के लिए कवि प्रदीप को भूमिगत होना पड़ा था।
प्रारंभिक जीवन :
कवि प्रदीप का जन्म 6 फरवरी 1915 को मध्यप्रदेश के छोटे से शहर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ। आपका वास्तविक नाम रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी था। आपको बचपन से ही हिन्दी कविता लिखने में रुचि थी. आपने 1939 में लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक तक की पढ़ाई करने के पश्चात शिक्षक बनने का प्रयत्न किया लेकिन इसी समय उन्हें मुंबई में हो रहे एक कवि सम्मेलन का निमंत्रण मिला। 1943 में आपका लिखा ‘किस्मत’ फिल्म का गीतबहुत प्रसिद्ध हुआ था –
‘आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है।
दूर हटो… दूर हटो ऐ दुनियावालों हिंदोस्तान हमारा है।।’
प्रदीप हिंदी साहित्य जगत और हिंदी फिल्म जगत के एक अति सुदृढ़ रचनाकार रहे। कवि प्रदीप ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ सरीखे देशभक्ति गीतों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने 1962 के ‘भारत-चीन युद्ध’ के दौरान शहीद हुए सैनिकों की श्रद्धांजलि में ये गीत लिखा था। ‘भारत रत्न’ से सम्मानित स्वर कोकिला लता मंगेशकर द्वारा गाए इस गीत का तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में 26 जनवरी 1963 को दिल्ली के रामलीला मैदान से सीधा प्रसारण किया गया था। यूँ तो कवि प्रदीप ने प्रेम के हर रूप और हर रस को शब्दों में उतारा, लेकिन वीर रस और देश भक्ति के उनके गीतों की बात ही कुछ अनोखी थी। कवि प्रदीप की शुरुआती शिक्षा इंदौर के ‘शिवाजी राव हाईस्कूल’ में हुई, जहाँ वे सातवीं कक्षा तक पढ़े। इसके बाद की शिक्षा इलाहाबाद के दारागंज हाईस्कूल में संपन्न हुई। इसके बाद इण्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। दारागंज उन दिनों साहित्य का गढ़ हुआ करता था। वर्ष 1933 से 1935 तक का इलाहाबाद का काल प्रदीप जी के लिए साहित्यिक दृष्टिकोण से बहुत अच्छा रहा। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की एवं अध्यापक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया। विद्यार्थी जीवन में ही हिन्दी काव्य लेखन एवं हिन्दी काव्य वाचन में उनकी गहरी रुचि थी।
संयोगवश रामचंद्र द्विवेदी (कवि प्रदीप) को एक कवि सम्मेलन में जाने का अवसर मिला, जिसके लिए उन्हें बंबई आना पड़ा। वहाँ पर उनका परिचय बांबे टॉकीज में नौकरी करने वाले एक व्यक्ति से हुआ। वह रामचंद्र द्विवेदी के कविता पाठ से प्रभावित हुआ तो उसने इस बारे में हिमांशु राय को बताया। उसके बाद हिमांशु राय ने उन्हें बुलावा भेजा। वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने 200 रुपए प्रति माह की नौकरी दे दी। कवि प्रदीप ने यह बात स्वयं बीबीसी के एक साक्षात्कार में बताई थी। हिमांशु राय का ही सुझाव था कि रामचंद्र द्विवेदी अपना नाम बदल लें। उन्होंने कहा कि यह रेलगाड़ी जैसा लंबा नाम ठीक नहीं है, तभी से रामचंद्र द्विवेदी ने अपना नाम प्रदीप रख लिया।
प्रदीप से ‘‘कवि प्रदीप’’ बनने की कहानी यह भी एक रोचक कहानी है। उन दिनों अभिनेता प्रदीप कुमार भी काफी प्रसिद्ध थे। अब फिल्म नगरी में दो प्रदीप हो गए थे एक कवि और दूसरा अभिनेता। दोनों का नाम प्रदीप होने से डाकिया प्रायः डाक देने में गलती कर बैठता था। एक की डाक दूसरे को जा पहुँचती थी। बड़ी दुविधा पैदा हो गई थी। इसी दुविधा को दूर करने के लिए अब प्रदीप अपना नाम ‘‘कवि प्रदीप’’ लिखने लगे थे। अब चिट्ठियाँ सही जगह पहुँचनें लगी थीं।
जिस समय कवि प्रदीप की प्रतिभा उत्तरोत्तर मुखर हो रही थी, तब उन्हें तत्कालीन कवि सम्राट पं. गया प्रसाद शुक्ल का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। प्रदीप जी भी उनके स्नेही मंडल के अभिन्न अंग बन गये। प्रदीप जी का जीवन बहुरंगी, संर्घषभरा, रोचक तथा प्रेरणा दायक रहा। माता-पिता उन्हें शिक्षक बनाना चाहते थे किन्तु तकदीर में तो कुछ और ही लिखा था। बम्बई की एक छोटी सी कवि गोष्ठी ने उन्हें सिनेजगत का गीतकार बना दिया। उनकी पहली फिल्म थी कंगन जो हिट रही। उनके द्वारा बंधन फिल्म में रचित गीत, ‘चल चल रे नौजवान’ राष्ट्रीय गीत बन गया। सिंध और पंजाब की विधान सभा ने इस गीत को राष्ट्रीय गीत की मान्यता दी और ये गीत विधान सभा में गाया जाने लगा। बलराज साहनी उस समय लंदन में थे, उन्होने इस गीत को लंदन बी.बी.सी. से प्रसारित कर दिया। अहमदाबाद में महादेव भाई ने इसकी तुलना उपनिषद् के मंत्र ‘चरैवेति- चरैवेति’ से की। जब भी ये गीत सिनेमा घर में बजता, लोग वन्स मोर-वन्स मोर कहते थे और ये गीत फिर से दिखाना पड़ता था। उनका फिल्मी जीवन बाम्बे टॉकिज से शुरू हुआ था, जिसके संस्थापक हिमांशु राय थे। यहीं से प्रदीप जी को बहुत यश मिला। कवि प्रदीप गाँधी विचारधारा के कवि थे। प्रदीप जी ने जीवन मूल्यों की कीमत पर धन-दौलत को कभी महत्व नही दिया। कठोर संघर्षों के बावजूद उनके निवास स्थान ‘पंचामृत’ पर सोने के कंगुरे भले ही न मिलें परन्तु वैश्विक ख्याति का कलश जरूर दिखेगा। प्रदीप जी के लिखे गीत भारत में ही नही वरन अफ्रिका, यूरोप, और अमेरिका में भी सुने जाते हैं। पं. प्रदीप जी ने कमर्शियल लाइन में रहते हुए, कभी भी अपने गीतों से कोई समझौता नहीं किया।
‘ऊपर गगन विशाल’ गीत सुनाते समय कवि प्रदीप अपने हाथ को ऊपर-नीचे हिला-हिलाकर तन्मयता दिखाते थे। एक संत पुरुष, सीधे-सादे, किसी भी प्रकार के दिखावे से दूर रहने वाले कवि प्रदीप के लिए मैं केवल इतना ही कह सकता हूँ कि हिंदी फिल्म जगत में भावनापूर्ण साहित्यिक तथा उच्च स्तरीय गीत लिखकर कलम के धनी कवि प्रदीप ने सच किया कमाल।
आज एक ऐसे महान् कवि-गीतकार का जिक्र कर रहा हूँ, जो भले ही शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं है, परंतु अपनी अलौकिक रचनाओं के रूप में विश्व भर के हिंदी प्रेमियों, राष्ट्र प्रेमियों के हृदयों में आज भी विराजमान हैं और आने वाले अनंत समय तक विराजित रहेंगे। पं. रामचंद्र द्विवेदी, जिन्हें सभी लोग कवि प्रदीप के नाम से जानते हैं, हिंदी साहित्य जगत और हिंदी फिल्म जगत के एक अति सुदृढ़ रचनाकार रहे हैं। मध्य प्रदेश के बड़नगर (उज्जैन) में जन्में रामचंद्र द्विवेदी ने शायद स्वयं यह कल्पना भी कभी नहीं की होगी कि सारे हिंदुस्तानी उनके सामने आदर और श्रद्धा से नमन करते हुए उनका आशीर्वाद प्राप्त करके अपने आपको भाग्यशाली समझेंगे।
कविता तो आमतौर पर हर व्यक्ति जीवन में कभी न कभी करता ही है, परंतु रामचंद्र द्विवेदी की कविता केवल कुछ क्षणों का शौक या समय बिताने का साधन नहीं थी, वह उनकी साँस-साँस में बसी थी, उनका जीवन थी। इसीलिए अध्यापन छोड़कर वे कविता की सरंचना में व्यस्त हो गए।
कवि प्रदीप को ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ का ही गीतकार समझते हैं ऐसा लगने लगता है जैसे कवि प्रदीप ने अपने जीवन में इसके अतिरिक्त कोई अन्य महत्वपूर्ण गीत लिखा ही नहीं। कवि प्रदीप को हिंदुस्तान में तथा विदेश में भी यूँ तो अनगिनत बड़े-बड़े पुरस्कार मिले।
कवि प्रदीप की अमर रचनाएँः
कभी कभी खुद से बात करो।
आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ।
ऐ मेरे वतन के लोगों।
साबरमती के सन्त।
पिंजरे के पंछी रे।
हम लाये हैं तूफान से किश्ती निकाल के।
कभी धूप कभी छाँव।
आज हिमालय की चोटी से।
गा रही है जिंदगी हर तरफ।
मेरे जीवन के पथ पर।
हम तो अलबेले मजदूर।
न जाने आज किधर।
धीरे धीरे आ रे बादल।
ऊपर गगन विशाल।
मेरे मन हँसते हुए चल।
देख तेरे संसार की हालत।
तुमको तो करोड़ों साल हुए।
किस बाग में मैं जन्मा खेला।
हमने जग की अजब तस्वीर देखी।
चल अकेला चल अकेला चल अकेला।
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम।
अमृत और जहर दोनों हैं सागर में एक साथ।
होने लगा है मुझ पे जवानी का अब असर।
चलो चलें मन सपनो के गाँव में।
मैं एक नन्हा सा मैं एक छोटासा बच्चा हूँ।
चरागों का लगा मेला ये झाँकी खूबसूरत है।
अपनी माँ की किस्मत पर मेरे बेटे तू मत रो।
खिलौना माटी का।
मृत्युः 11 दिसम्बर 1998 को 83 वर्ष के उम्र में इस महान् कवि का मुम्बई में देहांत हो गया। बाद में उनके पुत्र – पुत्रियों ने कवि प्रदीप फाउंडेशन की स्थापना की। कवि प्रदीप की याद में एक अवार्ड ‘‘कवि प्रदीप सम्मान’’ भी दिया जाता है।
तरुण कुमार दाधीच