28 मई (उत्तर भारतीय पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण 6) वीर सावरकर का जन्म दिवस है। सन् 1883 में जन्में इस क्रान्ति कुमार का जीवन विविधताओं से परिपूर्ण रहा है, जिसने राष्ट्र के मानस में गम्भीर और श्रेष्ठ देश प्रेम की भावनाओं का आविर्भाव किया। एक तरफ जहां उनके ध्येय और आदर्शों के विरोधी उनकी निन्दा करते हैं, वहीं दूसरी ओेर वे ही उनकी लगन, ध्ययेनिष्ठा, क्रांतिप्रेम और उनके सर्व प्रभावी व्यक्तित्व को स्वीकार भी करते हैं। उनके नाम के पहले ‘वीर’ उपसर्ग का लग जाना इस बात का द्योतक है कि तत्कालीन इतिहास के पृष्ठांं से उनका नाम, चाहे उनके विरोधी कितना ही प्रयत्न करें, मिटाया नहीं जा सकेगा। अपितु लगता तो यह है कि वे आज की उदासीनता देखकर नये सशक्त रूप में पुनः अवतरित होंगे और आने वाली पीढ़ियां उन्हें एक हिंदू-हृदय-सम्राट के रूप में हमेशा याद करती रहेंगी, जिसने विदेशी दासता के आपत्काल में राष्ट्र का मार्ग-निर्देश किया था , अपने जीवन को तिल तिल जलाकर राष्ट्र की महानता में वृद्धि की थी।
पुनीत पावन वंश वल्लरी
महाराष्ट्र के चित्तपावन ब्राह्मण वंश में प्राचीनकाल से अब तक अनेक देशभक्त महापुरुषों का जन्म हुआ है। मराठा साम्राज्य के प्रथम पेशवा बालाजी विश्वनाथ, नाना फड़नवीस, प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी सेनापति नाना साहब पेशवा, प्रसिद्ध क्रान्तिकारी वासुदेव बलवंत फड़के, चाफेकर बन्धु, गोविन्द महादेव रानाडे, गोपालकृष्ण गोखले, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक आदि महापुरुष इसी चित्तपावन वंश की संतान थे। उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में इसी वंश के एक व्यक्ति विनायक दीक्षित नासिक जिले के भगूर नामक गांव में रहते थे, जिनके महादेव तथा दामोदर नामक दो पुत्र थे। दामोदर पंत सावरकर की शिक्षा मैट्रिक तक हुई थी और इस शिक्षा की समाप्ति पर वह पास के ही गांव की पाठशाला में अध्यापक हो गये थे। तत्कालीन परंपरा के अनुसार उनका विवाह अट्ठारह वर्ष की अल्पायु में ही हो गया था। उस समय उनकी जीवन संगिनी राधाबाई केवल दस वर्ष की अबोध बालिका थी। दोनों ही पति-पत्नी अपने जीवन में अत्यन्त धार्मिक प्रकृति के गृहस्थ थे। भगवान राम तथा कृष्ण उनके आराध्य थे और सिंहवाहिनी दुर्गा उनकी कुल देवी थीं। पारिवारिक वातावरण पूर्णतया हिन्दुत्व के विचारों से ओत-प्रोत था।