इस बार हिन्दू नव वर्ष विक्रमी सम्वत् का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा बुधवार दिनांक 25 मार्च 2020 को प्रथम नवरात्रि से प्रारम्भ हो रहा है। इस संवत्सर का नाम प्रमादी है तथा वर्ष 2077 है, श्री शालीवाहन शक संवत् 1942 है और इस शक संवत् का नाम शार्वरी है।
भारत में ईस्वी संवत् का प्रचलन अग्रेजी शासकों ने १७५२ में किया। १७५२ से पहले ईस्वी सन् २५ मार्च से शुरू होता था किन्तु २०वीं शताब्दी इसकी शुरूआत एक जनवरी से होने लगी। जनवरी से जून रोमन के नामकरण रोमन जोनस, मार्स व मया इत्यादि के नाम पर हैं। जुलाई और अगस्त रोम के सम्राट जूलियस सीजर तथा उसके पौत्र आगस्टन के नाम पर तथा सितम्बर से सितम्बर तक रोमन संवत् के मासों के आधार पर रखे गये हैं। आखिर क्या आधार है इस काल गणना का? यह तो ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति पर आधारित होनी चाहिए।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात नवम्बर १९५२ में वैज्ञानिकों और औद्योगिक परिषद के द्वारा पंचांग सुधार समिति की स्थापना की गयी। समिति ने १९५५ में सौंपी अपनी रिपोर्ट में विक्रम संवत् को भी स्वीकार करने की सिफारिश की। किन्तु तत्कालिन प्रधानमंत्री पं. नेहरू के आग्रह पर ग्रेगोरियन कै लेण्डऱ को ही राष्ट्रीय कै लेण्डऱ के रूप में स्वीकार लिया गया।
भारतीय काल गणना की प्राचीनता
ग्रेगोरियन कै लेण्डऱ की काल गणना मात्र दो हजार वर्षों के अति अल्प समय को दर्शाती है। जबकि यूनान की काल गणना १५८२ वर्ष, रोम की २७५७ वर्ष, यहूदी ५७६८, मिस्त्र की २८६९१, पारसी १९८८७५ तथा चीन की ९६००२३०५ वर्ष पुरानी है। इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो हमारे ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब ९७ करोड़ ३९ लाख ४९ हजार ११0 वर्ष है। जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में एक एक पल की गणना की गई है। जिस प्रकार ईस्वी संवत् का सम्बन्ध ईसा से है उसी प्रकार हिजरी संवत् का सम्बन्ध मुस्लिम जगत और हजरत मोहमद से है। किन्तु विक्रम संवत् का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न होकर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल-सिद्धांत व ब्रह्माण्ड़ के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओ को दर्शाती है।
धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्त्व की है हमारी काल गणना
इतना ही नहीं, ब्रह्माण्ड़ के सबसे पुरातन ग्रंथों वेदों में भी इसका वर्णन है। नव संवत् यानि संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के २७ वें व ३० वें अध्याय के मंत्र क्रमांक क्रमश: ४५ व १५ में विस्तार से दिया गया है। सौर मण्ड़ल के ग्रहों व नक्षत्रों की चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग पर हमारी काल गणना आधारित है। इसी वैज्ञानिक आधार के कारण ही पाश्चात्य देशों के अंधानुकरण के बावजूद चाहे बच्चे के गर्भाधान की बात हो, जन्म की बात हो, नामकरण की बात हो, गृह प्रवेश या व्यापार प्रारंभ करने की बात हो हम एक कुशल पंडि़त के पास जाकर शुभ मुहूर्त पूछते हैं और तो और देश के बड़े से बड़े राजनेता भी स8ाासीन होने के लिए सबसे पहले एक अच्छे मुहूर्त का इंतज़ार करते हैं जो कि विशुद्ध रूप से विक्रमी संवत् के पंचाग पर आधारित होता है।
भारतीय दृष्टिकोण में कोई भी काम शुभ मुहूर्त में किया जाए तो उसकी सफलता में चार चाँद लग जाते हैं। चैत्र मास के शुक्ला पक्ष की प्रतिपदा वर्ष प्रतिपदा कहलाती है। इस दिन से ही नया वर्ष प्रारंभ होता है। ‘युग’ और ‘आदि’ शब्दों की संधि से बना है ‘युगादि’। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि’ और महाराष्ट्र में यह पर्व ‘ग़ुड़ी पड़वा’ के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसमें मुख्यत ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है।
चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि (प्रतिपद या प्रतिपदा) को सृष्टि का आरंभ हुआ था। हमारा नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शुरू होता है। इस दिन ग्रह और नक्षत्र मे परिवर्तन होता है। हिन्दी महीने की शुरूआत इसी दिन से होती है। पेड़-पौधों में फूल, मंजर, कली इसी समय आना शुरू होते हैं। वातावरण मे एक नया उल्लास होता है जो मन को आह्लादित कर देता है। जीवों में धर्म के प्रति आस्था बढ़ जाती है। इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। भगवान विष्णु जी का प्रथम अवतार भी इसी दिन हुआ था। नवरात्र की शुरुआत इसी दिन से होती है। जिसमे हमलोग उपवास एवं पवित्र रह कर नव वर्ष की शुरूआत करते है।
परम पुरु ष अपनी प्रकृति से मिलने जब आता है तो सदा चैत्र में ही आता है। इसीलिए सारी सृष्टि सबसे ज्यादा चैत्र में ही महक रही होती है। वैष्णव दर्शन में चैत्र मास भगवान नारायण का ही रूप है। चैत्र का आध्यात्मिक स्वरूप इतना उन्नत है कि इसने वैकुंठ में बसने वाले ईश्वर को भी धरती पर उतार दिया।
न शीत न ग्रीष्म। पूरा पावन काल। ऐसे समय में सूर्य की चमकती किरणों की साक्षी में चरित्र और धर्म धरती पर स्वयं श्रीराम रूप धारण कर उतर आए, श्रीराम का अवतार चैत्र शुक्ल नवमी को होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि के ठीक नवे दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। आर्यसमाज की स्थापना इसी दिन हुई थी। यह दिन कल्प, सृष्टि, युगादि का प्रारंभिक दिन है। संसारव्यापी निर्मलता और कोमलता के बीच प्रकट होता है हमारा अपना नया साल विक्रम संवत्सर। विक्रम संवत का संबंध हमारे कालचक्र से ही नहीं, बल्कि हमारे सुदीर्घ साहित्य और जीवन जीने की विविधता से भी है।
भारत में सर्वस्वीकार्य नव वर्ष
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन से नया संवत्सर शुरू होता है। अत: इस तिथि को ‘नवसंवत्सर’ भी कहते हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है। इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में सारे घरों को आम के पेड़ की प8िायों के बंदनवार से सजाया जाता है। सुखद जीवन की अभिलाषा के साथ-साथ यह बंदनवार समृद्धि, व अच्छी फसल के भी परिचायक हैं। ‘उगादि’ के दिन ही पंचांग तैयार होता है। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग’ की रचना की थी। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को महाराष्ट्र में गुड़ीपड़वा कहा जाता है। वर्ष के साढ़े तीन मुहूर्तों में गुड़ीपड़वा की गिनती होती है।
इस अवसर पर आंध्र प्रदेश में घरों में ‘पच्चड़ी/प्रसादम्’ के रूप में बांटा जाता है। कहा जाता है कि इसका निराहार सेवन करने से मानव निरोगी बना रहता है। चर्म रोग भी दूर होता है। इस पेय में मिली वस्तुएं स्वादिष्ट होने के साथ-साथ आरोग्यप्रद भी होती हैं। महाराष्ट्र में पूरन पोली या मीठी रोटी बनाई जाती है। इसमें- गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली और कच्चा आम मिलाया जाता है। गुड़ मिठास के लिए, नीम के फूल कड़वाहट मिटाने के लिए और इमली व आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक के रूप में होते हैं। भारतीय परंपरा में घरों में इसी दिन से आम खाने की आम का रस बनाने की और आम के रस की मिठाई बनाने की शुरुआत होती है।
एक कथा यह भी है कि इसी दिन भगवान राम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई थी। बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (ग़ुडिय़ां) फहराए थे। आज भी घर के आंगन में ग़ुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है। इसीलिए इस दिन को गुड़ीपड़वा नाम दिया गया। गुड़ी पड़वा के साथ ही नौ दिन की चैत्र की नवरात्रि शुरु हो जाती है। नौ दिन तक चलने वाली यह नवरात्रि दुर्गा पूजा के साथ-साथ, रामनवमी को जन्मोत्सव के साथ संपन्न होती है।
संसार की कालगणनाओं में श्रेष्ठतम है भारतीय नववर्ष
जब सूर्य मेष राशि से ही अपनी वार्षिक यात्रा तय करता है, संवत कहलाता है, चैत्र शु1ल प्रतिपदा के प्रात: सूर्योदय की प्रथम रश्मि के दर्शन के साथ नववर्ष का आरंभ होता है। ”मधौ सितादेर्दिन मासवर्ष युगादिकानां युगपत्प्रवृति:” महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने प्रतिपादित किया है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से दिन-मास-वर्ष और युगादि का आरंभ हुआ है। युगों में प्रथम सतयुग का आरंभ भी इसी दिन से हुआ है। कल्पादि-सृष्ट्यादि-युगादि आरंभ को लेकर इस दिवस के साथ अति प्राचीनता जुड़ी हुई है। सृष्टि की रचना को लेकर इसी दिवस से गणना की गई है, लिखा है-
चैत्रे-मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि ।
शुक्लपक्षे समग्रे तु तदा सूर्योदये सति ।।
अर्थात् चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि के सूर्योदय के समय से नवसंवत्सर का आरंभ होता है, यह अत्यंत पवित्र तिथि है। इसी दिवस से पितामह ब्रह्मा ने सृष्टि का सृजन किया था। इस तिथि को रेवती नक्षत्र में, विष्कुंभ योग में दिन के समय भगवान का प्रथम अवतार मत्स्यरूप का प्रादुर्भाव भी माना जाता है-
कृते च प्रभवे चैत्रे प्रतिपच्छुक्लपक्षगा ।
रेवत्यां योग-विष्कुम्भ दिवा द्वादश-नाडी काः।।
मत्स्यरूपकुमार्यांच अवतीर्णो हरिः स्वयम् ।।
प्रकृति खुद स्वागत करती है इस दिन का। चैत्र शुक्ल पक्ष आरंभ होने के पूर्व ही प्रकृति नववर्ष आगमन का संदेश देने लगती है। प्रकृति की पुकार, दस्तक, गंध, दर्शन आदि को देखने, सुनने, समझने का प्रयास करें तो हमें लगेगा कि प्रकृति पुकार-पुकार कर कह रही है कि पुरातन का समापन हो रहा है और नवीन बदलाव आ रहा है, नववर्ष दस्तक दे रहा है। वृक्ष-पौधे अपने जीर्ण वस्त्रों को त्याग रहे हैं, जीर्ण-शीर्ण पत्ते पतझड़ के साथ वृक्ष शाखाओं से पृथक हो रहे हैं, वायु के द्वारा सफाई अभियान चल रहा है, प्रकृति के रचयिता इन्हें अंकुरित-पल्लवित-पुष्पित कर बोराने की ओर ले जा रहे हैं, मानो पुरातन वस्त्रों का त्याग कर नूतन वस्त्र धारण कर रहे हैं। पलाश खिल रहे हैं, वृक्ष पुष्पित हो रहे हैं, आम बौरा रहे हैं, सरसों नृत्य कर रही है, वायु में सुगंध और मादकता की मस्ती अनुभव हो रही है। सोचिये और जवाब दीजिये। क्यों न हम सब मिलकर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के प्रात: सूर्योदय पर नववर्ष का महोत्सव मनाएँ और इसके लिये अन्य लोगों को भी प्रेरित करें?
हमारे वर्ष के आरंभ दिवस का प्रकृति खुद स्वागत करती है,उत्सव मनाती है और हम साधारण-मनुष्य ठंडक के देह-विरोधी प्रतिकूल, अप्राकृतिक मौसम में एक अवैज्ञानिक कैलेण्डर को पूजने में लग जाते हैं। इस बार नव-वर्ष चैत्र-प्रतिपदा का स्वागत हम धूम-धड़ाके से कर मानसिक गुलामी से आजाद होने की उद्घोषणा करें।
३१ दिसम्बर के नजदीक आते ही जगह-जगह जश्न मनाने की तैयारियाँ प्रारम्भ हो जाती हैं। ‘हैप्पी न्यू ईयर’ के बैनर, होर्डिंग, पोस्टर व कार्डों के साथ शराब, शबाब और कबाब की दुकानों में रौनक हो जाती है और जाम से जाम इतने टकराते हैं कि घटनाएं दुर्घटनाओं में बदल जाती हैं-
रात भर जागकर नया साल मनाने से ऐसा प्रतीत होता है मानो सारी खुशियाँ एक साथ आज ही मिल जायेंगी।
हम भारतीय भी पश्चिमी अंधानुकरण में इतने सराबोर हो जाते हैं कि उचित अनुचित का बोध त्याग अपनी सभी सांस्कृतिक मर्यादाओं को तिलांजलि दे बैठते हैं। पता ही नहीं लगता कि कौन अपना है और कौन पराया।
भारतीय मान्यतानुसार कोई भी काम यदि शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ किया जाये तो उसकी सफलता में चार चाँद लग जाते हैं। वैसे भी भारतीय संस्कृति श्रेष्ठता की उपासक है। जो प्रसंग समाज में हर्ष व उल्लास जगाते हुए एक सही दिशा प्रदान करते हैं उन सभी को हम उत्सव के रूप में मनाते हैं। राष्ट्र के स्वाभिमान व देश प्रेम को जगाने वाले अनेक प्रसंग चैत्र मास के शु1ल पक्ष की प्रतिपदा से जुड़े हुए हैं। यह वह दिन है जिस दिन से भारतीय नव वर्ष प्रारम्भ होता है।
ऐतिहासिक महत्त्व
1 इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्मा जी ने जगत की रचना प्रारंभ की।
1 प्रभु श्री राम, चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य व धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था।
1 शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात, नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है।
1 प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन का श्री राम महोत्सव मनाने का प्रथम दिन।
1 युधिष्ठिर संवत की शुरुआत, विक्रमादित्य का दिग्विजय का दिन और विक्रमी संवत प्रारम्भ।
1 आर्य समाज स्थापना का दिवस।
1 सिख परंपरा के द्वितीय गुरू अंगददेव जी, संत झूलेलाल व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा. केशव राव बलीराम हेडगेवार का जन्मदिवस।
प्राकृतिक महत्त्वः
वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है। फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये शुभ मुहूर्त होता है।
क्या एक जनवरी के साथ ऐसा एक भी प्रसंग जुड़ा है जिससे राष्ट्र प्रेम जाग सके, स्वाभिमान जाग सके या श्रेष्ठ होने का भाव जाग सके? आइये! विदेशी को फैंक स्वदेशी अपनाएँ और गर्व के साथ भारतीय नव वर्ष यानि विक्रमी संवत् को ही मनाएँ तथा इसका अधिक से अधिक प्रचार करें।
जन-मन के लिए विचारणीय पक्ष
भारत देश में समस्त त्योहार विशेष महत्व रखते हैं, हर त्योहार के पीछे गहरा संदेश रहता है। हम जानते हैं कि हमारे सभी अच्छे कार्य भारतीय दर्शन पर आधारित होते हैं जिसका प्राकृतिक सामंजस्य भी होता है। हमारे देश में शुभ घड़ी देखने की परम्परा है, हम यह भी जानते हैं वो शुभ घड़ी भारतीय पंचांग से ही निकाली जाती है! आज तक के इतिहास में ऐसा कभी भी सुनने को नहीं मिला है कि शुभ घड़ी देखने के लिए अग्रेजी कैलेंडर का प्रयोग किया गया हों, वास्तविकता यह है कि अंग्रेजी महीना घड़ी मुहूर्त के मिलान के अनुसार नहीं चलते! वे कैसे चलते है इस बात पर गज़ब का विरोधाभास है!
भारत में हर दिन त्यौहार का दिन होता है लेकिन यह सारे त्यौहार भारतीय पंचांग पर आधारित होते हैं! यह सारा खेल गृह नक्षत्रों पर मिलान के आधार पर होता है, भारत के सारे पर्वों का प्रकृति साथ देती है! जो त्यौहार प्राकृतिक तालमेल के साथ मनाये जाते हैं उनके साथ परिणाम बेहतर होते है!
एक जनवरी वाले नव वर्ष में ऐसा कोई भी प्राकृतिक संदेश नहीं होता जिससे समाज को खुशी का अहसास होता हो, वातावरण में कड़ाके की ठंड, रंगीन मौसम का परिचायक नहीं है। इसके विपरीत
हमारे भारत के नव वर्ष पर बसंत का सुहावना मौसम होता है।
किसानों के चेहरे पर उल्लास होता है, ग्रह नक्षत्र अनुकूल हो जाते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि जनवरी वाले नव वर्ष पर समाज किस प्रकार की कार्यशैली अपनाता है? कहीं शराब के दौर चलते हैं तो कहीं युवा वर्ग पूरी मस्ती के साथ झूमते हैं, क्या यही भारत है क्या यह भारत की संस्कृति है। हम नव वर्ष मनाते समय अपने देश की परिपाटी का भी ध्यान रखें तो अच्छा है।
हम भारतवासी आज भी अंग्रेजों द्वारा प्रवाहित की गयी धारा में जीवन यापन कर रहे हैं। 1या हमारे देश में सांस्कृतिक धारा का अभाव है? वास्तव में हमारी सांस्कृतिक विरासत विश्व की महान्
विरासत है पूरे विश्व में हमारी संस्कृति का कोइ मुकाबला नहीं ….
लेकिन हम अन्धानुकरण की आंधी में ऐसे दौड़ रहे हैं कि हम अपना वजूद ही भूल रहे हैं।
जनवरी की पहली तारीख को मनाया जाने वाला नव वर्ष भारत का नव वर्ष नहीं है…… यह अंग्रेजों द्वारा थोपा गया नया साल है। आज भी हम मानसिक रूप से उसी विचार के साथ जी रहे हैं जो विचार गुलामी में दिया गया था… हालाँकि यह बात सही है कि लम्बे समय तक एक धारा में जीने का मतलब है उसी को अंगीकार करना, लेकिन आज हमारे ऊपर ऐसी कौन सी मजबूरी है कि हम आज भी उसी नव वर्ष को मनाने को बाध्य हो रहे हैं जो गुलामी का प्रतीक है……. हमारे देश के सारे त्यौहार हम भारतीय काल पद्धति से मनाते आ रहे हैं और आज भी मनाते हैं।
भारत का कोई भी पर्व अंग्रेजी महीने से नहीं होता, क्योंकि प्रकृति इसका साथ नहीं देती। हम प्रकृति का साथ देंगे तो प्रकृति भी हमारा साथ देगी। इसलिए सभी भारतीयों का यह स्वभाव एवं आग्रह होना चाहिये कि हम अपना भारतीय नव वर्ष मनाएँ। आप सभी का नववर्ष मंगलमय हो… सूर्य की प्रथम किरण के साथ अपने अपने घरों में और मंदिरों में नव वर्ष का स्वागत करें।
तरुण शर्मा