बचपन के नटखट गोपाल, गोपियों के संग प्रेम लुटाने वाले श्याम, अर्जुन को राजनीति का पाठ पढ़ाने वाले श्रीकृष्ण, यानी प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में किसी न किसी रूप में मनमोहन कृष्ण समाए हुए हैं। अपनी प्रत्येक जीवन लीला के माध्यम से वे अपने भक्त ों को कुछ न कुछ सिखाते रहते हैं। तभी तो वे प्रत्येक व्यक्ति , के प्रेरणास्त्रोत हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व प्रतिवर्ष हमें भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अग्रसर होने की प्रेरणा देता है।
यह सच है कि यदि हम उनके आदर्शों को आत्मसात कर लें, तो हमारे जीवन की अनेकानेक समस्याएं स्वतः समाप्त हो जाएंगी। उन्होंने अधर्म को सहन न करने का संदेश सभी को दिया, जो कि आज के समय की भी प्रबल आवश्यकता है। उन्होंने हमें सहज रूप से यह बताया कि इस संसार में किसी के लिए चिंता करना तथा किसी से डरना व्यर्थ है। हम इस जगत में अपने साथ न कुछ लेकर आए हैं और न ही अपने साथ कुछ लेकर जा सकते हैं। हमें इस संसार में रह कर सिर्फ अपना कर्तव्य अच्छे तरीके से निभाना है, लेकिन कर्म के परिणाम की चिंता नहीं करनी है। देना तो परम पिता परमेश्वर का कार्य है।
उन्होंने महाभारत के समय अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता के रूप में जो संदेश दिया वह आज भी हम सभी का मार्ग दर्शन करता है। इस ग्रंथ में प्रत्येक व्यक्ति की समस्या का समाधान है। यह ग्रंथ व्यक्ति को कर्म के माध्यम से जीवन का प्रबंधन करना सिखाता है। संशय और विषाद से ग्रस्त लोगों के लिए यह संजीवनी का कार्य करती है। सच तो यह है कि भगवान श्रीकृष्ण प्रत्येक व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास का सृजन करते हैं। वे कहते भी हैं कि मैं सभी में व्याप्त आत्मा हूँ।
विष्णु के अवतारों में सबसे लोकप्रिय दो अवतार हैं- कृष्ण और राम। भारतीय परंपरा में राम को बारह कलाओं से परिपूर्ण माना गया है, जबकि कृष्ण को सोलह कलाओं से। इसीलिए सिर्फ राम और कृष्ण के नाम के साथ ही ‘चंद्र’ लगाया जाता है। मानव व्यक्तित्व के जितने आयाम कृष्णावतार में हैं, उतने और किसी अवतार में नहीं हैं।
शरणागत वत्सल श्रीकृष्ण
श्रीकृष्ण पर जो लोग भरोसा रखते हैं, वे उन्हें संरक्षण प्रदान करते हैं। जब देवराज इंद्र संपूर्ण ब्रजवासियों पर क्रोधित हुए और मूसलाधार वर्षा करने लगे, तो बालक श्रीकृष्ण तनिक भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने गोधन और ब्रजवासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को ही ढ़ाल बना लिया। उन्होंने गोप-गोपिकाओं व ग्वालों को अपने साथ लिया और इंद्र के आतंक को रोक कर उनका घमंड चूर कर दिया। इसके माध्यम से लोगों को यह बतलाया कि संगठन में ही शक्ति है। ठीक इसी तरह दुर्वासा के शाप से पांडवों को बचाया। एक घटनाक्रम में वे द्रौपदी की भी लाज बचाते हैं। महाभारत युद्ध को रोकने के लिए वे शांतिदूत बन कर हस्तिनापुर गए। द्वारिका का राजा बनने के बावजूद वे अपने बचपन के मित्र सुदामा को नहीं भूले और उन्हें अपना प्रेम और आदर दोनों प्रदान किया।
आज के समय में कृ ष्ण के व्यक्ति त्व को समझने के लिए हमें नहीं भूलना चाहिए कि कृ ष्ण जन्म से ही विस्थापित हैं।
वे पैदा तो होते हैं देवकी के गर्भ से पर उनका पालन-पोषण होता है यशोदा के यहां। वह जन्म लेते हैं क्षत्रिय कुल में, लेकिन पलते हैं आभीर कुल में। फिर उनका जन्म जेल में होता है। स्वाधीनता आंदोलन के दिनों में जब क्रांतिकारी लोग जेल जाते थे, तो कहा जाता था कि कृष्ण मंदिर जा रहे हैं। स्वाधीनता सेनानियों को जेल कृष्णयात्रा की प्रेरणा देता था।
कृष्ण बचपन से ही विघ्न-बाधाओं को पार करते हैं। कंस कृष्ण को मारने की लगातार कोशिश करता है। वह कृष्ण का सगा मामा है। आज के नजरिये से देखें, तो हमें यह संदेश मिलता है कि कोई व्यक्ति भले ही आपका रिश्तेदार हो, अगर वह अत्याचारी और अन्यायी है, तो उसका विरोध करना चाहिए। आजकल जो भाई-भतीजावाद, वंशवाद फैला हुआ है, कृष्ण का जीवन इसका विरोध करता है।
जब कृष्ण ने खेल-खेल में किया यमुना को प्रदूषण मुक्त
एक बार श्रीकृष्ण मित्रों के साथ यमुना नदी के किनारे गेंद से खेल रहे थे। कृष्ण ने जोर से गेंद फेंकी और वो यमुना में जा गिरी। मित्रों ने कृष्ण को कोसना शुरू किया। कहने लगे कि तुमने गेंद को यमुना में फेंका है, तुम ही बाहर लेकर आओ। समस्या यह थी कि उस समय यमुना में कालिया नाग रहता था। पांच फनों वाला नाग बहुत खतरनाक और विषधर था। उसके विष से यमुना काली (प्रदूषित) हो रही थी और उसी जहर के कारण गोकुल के पशु यमुना का पानी पीकर मर रहे थे। कालिया नाग गरूड़ के डर से यमुना में छिपा था।
कृष्ण बहुत छोटे थे, लेकिन मित्रों के आग्रह के कारण उन्होंने तय किया कि गेंद वो ही निकाल कर लाएंगे। कृष्ण ने यमुना में छलांग लगा दी। सीधे तल में पहुंच गए। वहां कालिया नाग अपनी पत्नियों के साथ रह रहा था। कृष्ण ने उसे यमुना छोड़कर सागर में जाने के लिए कहा, लेकिन वो नहीं माना और अपने विष से उन पर प्रहार करने लगा। कृष्ण ने कालिया नाग की पूंछ पकड़कर उसे मारना शुरू कर दिया। बहुत देर हो गई तो बाहर मित्रों को चिंता होने लगी।
उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और वे रोने-चिल्लाने लगे। कुछ दौड़ कर नंद-यशोदा और अन्य गोकुलवासियों
को बुला लाए। यमुना के किनारे यशोदा सहित सभी महिलाएं रोने लगीं। इधर, कृष्ण और कालिया नाग का युद्ध जारी था। भगवान ने उसके फन पर चढ़कर उसका सारा विष निकाल दिया। विषहीन होने और थक जाने पर कालिया नाग ने भगवान से हार मानकर उनसे माफी मांगी। श्रीकृष्ण ने उसे पत्नियों सहित सागर में जाने का आदेश दिया। खुद कालिया नाग भगवान को अपने फन पर सवार करके यमुना के तल से ऊपर लेकर आया।
उतार-चढ़ाव से ओतप्रोत है श्रीकृष्ण का जीवन
भगवान श्रीकृष्ण का जीवन उतार-चढ़ाव से ओतप्रोत है। वे कारागार में पैदा हुए। महल में जीये और जंगल से विदा हुए। उन्होंने अपने जीवन के उदाहरणों से लोगों को यह समझाने का प्रयास किया कि व्यक्ति जन्म से नहीं, कर्म से महान बनता है। भारतीय संस्कृति के पूजित दशावतारों में षोडश कलायुक्त भगवान विष्णु के आठवें अवतार लीला पुरुषोत्तम योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण जन-जन के देवता हैं। श्रीकृष्ण के माता-पिता देवकी-वासुदेव कारागार में बंद थे। उन्होंने सिर्फ अपने पराक्रम के बल पर छोटी उम्र में ही कंस को पराजित कर जन-जन को बुराई पर भलाई की जीत का संदेश दिया।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को मनाया जाना तभी सार्थक है, जब हमारे हृदय में भगवान श्रीकृष्ण का उदय हो। इस दिन हम सभी को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोपियों को दिए गए संदेश को आत्मसात करने का संकल्प जरूर करना चाहिए अर्थात् ’श्रीकृष्णः शरणम् ममः’ मंत्र को अपने जीवन का मूल आधार बनाना आज की आध्यात्मिक आवश्यकता है।
हरिदत्त शर्मा