सिख पंथ के संस्थापक प्रथम पातशाह साहिब श्री गुरु नानक देव जी महान् आध्यात्मिक चिंतक व समाज सुधारक थे। अपनी चार उदासियों के दौरान आप विश्व के अनेक भागों में गए और मानवता के धर्म का प्रचार किया। इस अन्तराल में आपके चरण जहां-जहां पड़े वहां आज ऐतिहासिक गुरुद्वारे सुशोभित हैं, जिनकी संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत है…
गुरुद्वारा श्री ननकाना साहिब
पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित शहर ननकाना साहिब का नाम ही गुरु नानक देव जी के नाम पर पड़ा है। इसका पुराना नाम ‘राय भोए दी तलवंडी’ था। यह लाहौर से 80 किमी दक्षिण-पश्चिम में स्थित है और भारत में गुरदासपुर स्थित डेरा बाबा नानक से भी दिखाई देता है। गुरु नानक देव जी का जन्म स्थान होने के कारण यह विश्व भर के सिखों का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। महाराजा रणजीत सिंह ने गुरु नानक देव के जन्म स्थान पर गुरुद्वारे का निर्माण करवाया था।
यहां गुरु ग्रंथ साहिब के प्रकाश स्थान के चारों ओर लंबी चौड़ी परिक्रमा है, जहां गुरु नानक देव जी से संबंधित कई सुन्दर पेंटिग्स लगी हुई हैं। रंग-बिरंगी रोशनियों से जगमग करता ननकाना साहिब एक स्वर्गिक नजारा प्रस्तुत करता है। दुनियाभर से हजारों हिन्दू, सिख गुरु पर्व से कुछ दिन पहले ननकाना साहिब पहुंचते हैं और दस दिन यहां रहकर विभिन्न समारोहों में भाग लेते हैं।
गुरु नानक देव के जन्म के समय इस जगह को ‘रायपुर’ के नाम से भी जाना जाता था। उस समय राय बुलार भट्टी इस इलाके का शासक था और बाबा नानक के पिता उसके कर्मचारी थे। गुरु नानक देव की आध्यात्मिक रुचियों को सबसे पहले उनकी बहन नानकी और राय बुलार भट्टी ने ही पहचाना। राय बुलार ने तलवंडी शहर के आसपास की 20 हजार एकड़ जमीन गुरु नानक देव को उपहार में दी थी, जिसे कालान्तर में ‘ननकाना साहिब’ कहा जाने लगा। ननकाना साहिब के आसपास ‘गुरुद्वारा जन्मस्थान’ सहित नौ गुरुद्वारे हैं। ये सभी गुरु नानक देव जी के जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं से संबंधित हैं।
जिस स्थान पर नानकजी को पढ़ने के लिए पाठशाला भेजा गया, वहां आज पट्टी साहिब गुरुद्वारा शोभायमान है। गुरु जी करतारपुर साहिब (अब पाकिस्तान में) में आकर बस गए और लगभग 17 साल यहीं रहे।
बटाला में श्री कंध साहिब
बटाला स्थित श्री कंध साहिब में गुरु जी की बारात का ठहराव हुआ था। इतिहासकारों के अनुसार सम्वत् 1544 यानी 1487 ईस्वी में गुरु जी की बारात जहां ठहरी थी वह एक कच्चा घर था। जिसकी एक दीवार का हिस्सा आज भी शीशे के फ्रेम में गुरुद्वारा श्री कंध साहिब में सुरक्षित है। इसके अलावा आज यहां गुरुद्वारा डेरा साहिब है, जहां श्री मूल राज खत्री जी की बेटी सुलक्खनी देवी को गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर लोधी से बारात लेकर ब्याहने आए थे।
गुरुद्वारा डेरा साहिब में आज भी एक थड़ा साहिब है, जिस पर माता सुलक्खनी देवी जी तथा श्री गुरुनानक देव जी की शादी की रस्में पूरी हुई थीं। हर साल उनके विवाह की सालगिरह पर सुल्तानपुर लोधी से नगर कीर्तन यहां पहुंचता है।
लुधियाना में गुरुद्वारा गऊ घाट
गुरु नानक देव साहिब 1515 ईस्वी में इस स्थान पर विराजमान हुए थे। उस समय यह सतलुज दरिया के किनारे पर स्थित था। उस समय लुधियाना के नवाब जलाल खां लोधी अपने दरबारियों सहित गुरु जी के शरण में आए व गुरु चरणों में आग्रह किया- हे सच्चे पातशाह, यह शहर सतलुज दरियां किनारे स्थित है, इसके तूफान से शहरवासियों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। आप इस पर कृपा करें। उनके जबाव में गुरु महाराज ने कहा कि आप सभी सच्चे मन से पूजा अर्चना करें।
एक समय ऐसा आएगा, सतलुज दरिया यहां से 7 कोस दूर हो जाएगा। वह इसी जगह से बुड्ढा होकर चलेगा। इसके साथ ही जैसे जैसे समय बीतेगा, दुनिया में लुधियाना नाम का डंका बजेगा। गुरु साहिब के कहे अनुसार लुधियाना शहर घनी आबादी में बसा है और सतलुज दरिया यहां से 7 कोस दूर है। इसी कारण उनका गुरुद्वारा, जो पहले दरिया घाट पर बना हुआ था, उसका नाम गऊ घाट पड़ गया। यह जीवा राम घाटी, डिवीजन नं. 3 के नजदीक है।
संगरूर में गुरुद्वारा नानकियाना साहिब
संगरूर से 4 किलोमीटर दूर गुरुद्वारा नानकियाना साहिब को गुरु नानक देव और गुरु हरगोबिंद जी की चरण छाप प्राप्त है। सोलहवीं शताब्दी की शुरुआत में श्री गुरु नानक देव जी यहां आए थे। उस समय मंगवाल गांव में वर्तमान गुरुद्वारा साहिब के करीब एक तालाब था, जहां गुरु जी ने ग्रामीणों को उपदेश दिया था।
करीब एक सदी बाद जब 1616 में गुरु हरगोबिन्द साहिब ने गांव का दौरा किया, तब गुरु नानक देव जी द्वारा पवित्र किए गए सरोवर की पवित्रता बनाए रखने के लिए यहां गुरुद्वारा साहिब का निर्माण कर दिया। यहां बीचों बीच मंजी साहिब तथा थड़ा साहिब हैं। यहां एक पवित्र हथियार भी संरक्षित है, जिसे 1724 के साथ फारसी अंकों में गुर्जिताबार नाम दिया गया है।
फाजिल्का में गुरु द्वारा बड़ तीर्थ
श्री गुरु नानक देव जी उदासियों के दौरान फाजिल्का के गांव हरिपुरा में रुके थे। उनके वहां आगमन के दौरान उनके पैरों की छाप आज भी यहां मौजूद है। जहां गुरुनानक देव जी ठहरे थे, वहां आज एक भव्य गुरुद्वारा बड़ साहिब बना हुआ है। देश के विभाजन से पूर्व बने इस गुरुद्वारे में हर अमावस्या और गुरुनानक देव जी के जन्मोत्सव व अन्य गुरुपर्व श्रद्धा व हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते हैं।
इतिहासकारों से मिली जानकारी के अनुसार गुरुनानक देव जी अपनी उदासियों के दौरान मथुरा से पाकपटन जाते हुए वृंदावन, गोकुल, रिवाड़ी, हिसार, सिरसा से होते हुए फाजिल्का तहसील के गांव हरिपुरा में पहुंऐ थे। यहां गांव के बाहरी इलाके में एक बड़ वृक्ष के नीचे बैठकर ईश्वर भक्ति में लीन हो गए। उनके साथ उनके शिष्य भाई बाला जी और मरदाना जी भी थे।
ग्रामीणों को गुरु जी के आगमण का पता चला तो उन्होंने गुरु जी के चरणों में शीश झुकाया। ग्रामीणों का दुख सुनने के बाद गुरु जी ने फरमाया कि तुम परमपिता परमात्मा के सिख (शिष्य) बनो, सत्नाम का जाप जपो। गुरु जी ने उन्हें एक सुंदर धर्मशाला बनाने और यहां पहुंचने वाले प्रत्येक भक्त को लंगर छकाने, सुबह-शाम सतनाम का जाप करने, सच्ची किरत करने और बांटकर छकने का आग्रह किया। वरदान देने के बाद गुरु जी, बाला और मरदाना के साथ तलवंडी की ओर रवाना हो गए।
सुल्तानपुर लोधी में श्री बेर साहिब
गुरु नानक देव जी ने अपने भक्ति काल का सबसे अधिक समय सुल्तानपुर लोधी में बिताया। यहां उनसे संबंधित अनेक गुरुद्वारे सुशोभित हैं। इनमें से प्रमुख हैं श्री बेर साहिब। गुरु जी ने यहां 14 साल 9 महीने 13 दिन तक भक्ति की। यहीं उनके बैठने के स्थल को ‘भोरा साहिब’ कहते हैं। भोरा साहिब के निकट ही बेरी का एक पेड़ है जिसके बारे में मान्यता है कि गुरु जी ने अपने भक्त खरबूजे शाह के निवेदन पर उसे यहां लगाया था। 550 साल बाद भी यह हरी भरी है और अब काफी बड़े क्षेत्र में फैल गई है।
गुरु का बाग : गुरु जी अपने विवाह के बाद परिवार के साथ इस स्थान पर रहे। इस स्थान पर ही गुरु साहिब जी के पुत्र बाबा श्री चंद एवं बाबा लख्मी दास का जन्म हुआ। इसी वजह से इस स्थान को गुरु का बाग कहते हैं।
गुरुद्वारा संत घाटः बेर साहिब से तीन किलोमीटर क दूरी पर है गुरुद्वारा संत घाट। गुरु जी यहां प्रतिदिन स्नान करने आते थे और एक दिन डुबकी लगा कर 72 घंटे के लिए अन्तर्ध्यान हो गए। कहा जाता है कि इसी दौरान उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई और उन्होंने एक ओंकार के मूल मंत्र का उच्चारण किया।
श्री हट्ट साहिबः यह सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) में स्थित है। सुल्तानपुर लोधी में अपने ठहरकाव के दौरान नवाब दौलत खान लोधी के मोदी खाने में नौकरी की और लोगों को राशन की बिक्री करते समय इसी स्थान पर उन्होंने ‘तेरा-तेरा’ का उच्चारण किया था।
श्री कोठड़ी साहिबः सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) नवाब दौलतखाँ लोधी ने हिसाब-किताब में गड़बड़ी की आशंका के बहकावे में नानक देव जी को जेल भिजवा दिया। लेकिन जैसे ही नवाब को अपनी गलती का पता चला तो उन्होंने नानक देव जी को छोड़ कर माफी ही नहीं माँगी, बल्कि प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव भी रखा, लेकिन गुरु नानक ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
श्री अंतरयाम्ता साहिबः यह वह स्थान है जहां मस्जिद में श्री गुरु नानक देव जी ने नवाब दौलत खान व उसके मौलवी को नमाज की असलियत बताई थी और उनसे कहा था कि भक्ति में तन के साथ मन का शामिल होना भी जरूरी है।
गुरुद्वारा अचल साहिबः गुरुदासपुर अपनी यात्राओं के दौरान नानक देव जी यहाँ रुके और नाथपंथी योगियों के प्रमुख योगी भांगर नाथ के साथ उनका धार्मिक वाद-विवाद यहाँ पर हुआ। योगी सभी प्रकार से परास्त होने पर जादुई प्रदर्शन करने लगे। नानक देव जी ने उन्हें ईश्वर तक प्रेम के माध्यम से ही पहुँचा जा सकता है, ऐसा बताया।
गुरुद्वारा डेरा बाबा नानकः (गुरुदासपुर) जीवनभर धार्मिक यात्राओं के माध्यम से बहुत से लोगों को सिख धर्म का अनुयायी बनाने के बाद नानक देव जी रावी नदी के तट पर स्थित अपने खेत पर ही अपना डेरा जमाया और 70 वर्ष की साधना के पश्चात सन् 1539 ई. में परम ज्योति में विलीन हुए।
गुरुद्वारा ज्ञान गोदड़ी साहिबः हरकी पौढ़ी पर श्री गुरु नानक देव महाराज का साढ़े चार सौ साल पुराना प्राचीन गुरुद्वारा ज्ञान गोदड़ी है। गंगा किनारे हर की पौढी, हरिद्वार वर्तमान उत्तराखण्ड में श्री गुरु नानक देव जी 1504-05 (पहली धर्मं प्रसार यात्रा) में आए थे और यहां तप किया था, उपदेश भी दिए थे और यहीं ज्ञान गोदड़ी मैदान पर आध्यात्मिक जप किया और लंगर बांटा था। जिस जगह पर गुरू नानक देव जी ने तप किया था, वहां गुरुद्वारा साहिब का निर्माण हुआ।