गांधीजी का कहना था कि मेरी अहिंसा वह अहिंसा है जहां सिर्फ एक मार्ग होता है-अहिंसा का मार्ग। उनका विचार था कि अहिंसा के मार्ग का प्रथम कदम यह है कि हम अपने दैनिक जीवन में सत्यता, सहिष्णुता, सच्चाई, विनम्रता, प्रेम और दयालुता का व्यवहार करें । उन्होंने कहा था कि अंग्रेजी में एक कहावत है कि ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है। नीतियां तो बदल सकती हैं और बदलती हैं । परन्तु सत्य और अहिंसा का पंथ अपरिवर्तित है ।
सत्य, अहिंसा, शांति और सद्भाव के उपासक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की 150 वीं जयंती तथा विश्व अहिंसा दिवस पर समुत्कर्ष के पाठकों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। बापू ने प्रत्येक भारतवासी को जाति-धर्म एवं ऊंच-नीच की संकीर्णताओं से ऊपर उठ कर सामाजिक समरसता के मार्ग पर चलना सिखाया। उनका जीवन-दर्शन एवं आदर्श सदियों तक मानव जाति का पथ आलोकित करते हुए हमें मुश्किल समय में सदैव राह दिखाते रहेंगे।
गांधीजी मानते थे कि सत्य और अहिंसा की बात सभी धर्मों में है। उन्होंने कहा कि अहिंसा हिंदू धर्म में है, ईसाई धर्म में है, और इस्लाम में भी है। उनका कहना था कि पवित्र कुरान में सत्याग्रह का पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध है। उन्होंने इस्लाम शब्द का अर्थ ‘शांति’ बताया जिसका तात्पर्य है अहिंसा। उन्होंने कहा कि अहिंसा का ढृढ़ता से आचरण अवश्य हमें सत्य तक ले जाता है जो हिंसा के व्यवहार से संभव नहीं है, इसलिए अहिंसा पर मेरा दृढ़ विश्वास है।
अप्रासंगिकता के इस दौर में, पल-पल बदलने वाली दुनिया में, अगर वाकई कुछ प्रासंगिक है, तो वह सिर्फ और सिर्फ गांधी के विचार हैं। किंतु अपने यहां मूर्ति पूजा की संस्कृति है, हम किसी व्यक्ति और भगवान की पूजा तो कर लेते हैं, लेकिन आदर्शों और विचारों का अनुसरण नहीं करते। इसलिए कई कार्यक्रमों में मंचों से विद्वज्जनों के मुंह से यह प्रश्न सुना जाता है कि यदि गांधी जी आज होते, तो उनके विचार कितने प्रासंगिक होते? उनसे एक स्वाभाविक सवाल है कि क्या इस संसार को सत्य की जरूरत नहीं? क्या हमारी आत्मा में सत्य नहीं बसता? क्या इंसानियत को बचाए-बनाए रखना जरूरी नहीं है? अगर इन सबका जवाब ‘नहीं’ में आता है, तो यह मान लेना होगा कि गांधी के विचार अप्रासंगिक हो गए हैं। लेकिन यदि आज भी इंसानियत है, आज भी अच्छे और बुरे के बीच फर्क है, तो यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि महात्मा गांधी के विचार अमिट और शाश्वत हैं।
यों तो महात्मा गांधी कहा करते थे कि हालात के साथ विचारों में बदलाव जरूरी है। लेकिन उनका यह भी कहना था कि ‘जो आखिर में लिखा है, वही सत्य है।’ आखिर में तो यही है कि खुद महात्मा गांधी अपने जीवन-काल में सत्य और अहिंसा से नहीं डिगे, परोपकार के रास्ते पर चलते रहे। दक्षिण अफ्रीका में जिस आजादी की नींव उन्होंने रखी, उसको उन्होंने भारत में सींचा और आंखों के सामने फलीभूत भी किया। जब यह सब हो रहा था, तब दुनिया दूसरे विश्व युद्ध के दंश झेल रहा था। जरा फर्क देखिए, उस दूसरे विश्व युद्ध में हथियारों द्वारा मची भीषण तबाही का और हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में हिंसा के हथियार का।
बापू ने कहा था- एक व्यक्ति को परिवार की भलाई के लिए, एक परिवार को समाज की भलाई के लिए, एक समाज को नगर की भलाई के लिए, एक नगर को राज्य की भलाई के लिए और एक राज्य को देश की भलाई के लिए उत्सर्ग हो जाना चाहिए। अगर जरूरत पड़े, तो एक देश को दुनिया की भलाई के लिए उत्सर्ग हो जाना चाहिए। ऐसे थे महात्मा गांधी के विचार। समय के साथ नई-नई विचारधाराएं पनपीं और उन सबने समाज की सोच-समझ को नए मतलब भी दिए। इनसे देश और दुनिया में कई बड़े बदलाव हुए, सार्थक और निरर्थक, दोनों। लेकिन कुछ नहीं बदला, तो वह सत्य है, वह गांधी के विचार का महत्व है। विश्व शांति की स्थापना के लिए आज इसी सत्य एवं विचार की आवश्यकता है।
आजादी के आंदोलन के दौरान गांधी ने लोगों को संघर्ष के तीन मंत्र दिए सत्याग्रह, असहयोग और बलिदान। उन्होंने खुद इसे समय की कसौटी पर कसा भी। सत्याग्रह को सत्य के प्रति आग्रह बताया। यानी आदमी को जो सत्य दिखे उस पर पूरी शक्ति और निष्ठा से डटा रहे। बुराई, अन्याय और अत्याचार का किन्हीं भी परिस्थितियों में समर्थन न करे। सत्य और न्याय के लिए प्राणोत्सर्ग करने को बलिदान कहा। अहिंसा के बारे में उनके विचार सनातन भारतीय संस्कृति की प्रतिध्वनि हैं। गांधी पर गीता के उपदेशों का व्यापक असर रहा। वे कहते थे कि हिंसा और कायरता पूर्ण लड़ाई में मैं कायरता की बजाए हिंसा को पसंद करूंगा। मैं किसी कायर को अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ा सकता वैसे ही जैसे किसी अंधे को लुभावने दृश्यों की ओर प्रलोभित नहीं किया जा सकता। उन्होंने अहिंसा को शौर्य का शिखर माना। उन्होंने अहिंसा की स्पष्ट व्याख्या करते हुए कहा कि अहिंसा का अर्थ है ज्ञानपूर्वक कष्ट सहना। उसका अर्थ अन्यायी की इच्छा के आगे दबकर घुटने टेक देना नहीं। उसका अर्थ यह है कि अत्याचारी की इच्छा के विरुद्ध अपनी आत्मा की सारी शक्ति लगा देना। अहिंसा के माध्यम से गांधी ने विश्व को यह भी संदेश दिया कि जीवन के इस नियम के अनुसार चलकर एक अकेला आदमी भी अपने सम्मान, धर्म और आत्मा की रक्षा के लिए साम्राज्य के सम्पूर्ण बल को चुनौती दे सकता है। गांधी के इन विचारों से विश्व की महान विभूतियों ने स्वयं को प्रभावित बताया। आज भी उनके विचार विश्व को उत्प्रेरित कर रहे हैं। लोगों द्वारा उनके अहिंसा और सविनय अवज्ञा जैसे अहिंसात्मक हथियारों को आजमाया जा रहा है।
महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि आने वाली पीढिंयों को इस बात पर यकीन नहीं होगा कि हाड़- मांस का एक ऐसा जीवित पुतला इस धरती पर था, जिसने अहिंसा को ही अपना अस्त्र बनाया । आइंस्टीन यह समझ गए थे कि आने वाली पीढिंयों में इतना धैर्य और साहस नहीं होगा कि वे महात्मा गांधी के विचारों पर चल सकें ।
सचमुच, बापू के परोपकार की विशालता के सामने व्यक्ति, परिवार, समाज, देश, सब छोटे पड़ जाते हैं और विश्व की भलाई की बात मुखर हो आती है। मौजूदा दुनिया को आज इसी की सबसे अधिक जरूरत है और यह तभी हो पाएगा, जब आज की पीढ़ी उनके मूल्यों को सही अर्थों में ले। एक उदाहरण देखिए, आज दुनिया भर में गांधी जी से जुड़ी चीजों की नीलामी की होड़-सी लग जाती है। ऐसा क्यों? क्योंकि आज की पीढ़ी को उनके मूल्यों का सही अंदाजा नहीं है। यह पीढ़ी किसी भी सामग्री का आर्थिक मतलब ही निकाल पाती है, जबकि पुरानी पीढ़ी के लिए ये पूजनीय सामग्रियां थीं। अब इन नीलामियों को रोकना किसी सरकार या संस्थान के बस की बात नहीं है, बल्कि वे इनको रोकने की याचना ही कर सकते हैं। ये नीलामियां तभी बंद होंगी, जब महात्मा गांधी के विचारों को वे अपनाएंगे।
यह बात महत्वपूर्ण है कि कैसे उनके विचारों का प्रचार-प्रसार सही तरीके से सभी जगह हो। मुश्किलें इसमें हजार हैं और खुद महात्मा गांधी कहा करते थे कि हर भले काम के रास्ते में कई रुकावटें आती हैं, पर उनसे घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उनका डटकर अहिंसात्मक तरीके से सत्य के साथ सामना करना चाहिए। उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि रोशनी के लिए सूरज का होना ही जरूरी है। उनका मानना था कि अगर आप एक दीया भी जलाएंगे, तो वह अंधेरे में प्रकाश कर देगा। आइए, गांधी के विचारों से सीख लेकर विश्व शांति के मार्ग में हम सब दीये की तरह झिलमिलाएं और उजाला करें।