महात्मा गांधी को धार्मिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक मामलों में सामान्यतया परंपरावादी तथा अनुदार माना जाता है। किंतु जहां तक हिंदू समाज में महिलाओं की स्थिति का प्रश्न है, गांधीजी ने जो दृष्टि बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में न केवल अपने भीतर विकसित की, बल्कि उसे अपने आचरण में भी उतारा, वह इक्कीसवीं शताब्दी के इस चरण में भी काफी क्रांतिकारी लग सकती है। कभी-कभी यह बात बहुत अचरज-भरी लगती है कि अन्य अनेक सामाजिक मामलों में परंपरावादी रीति-नीति का समर्थन करने वाले गांधी जी महिलाओं से जुडे प्रश्नों पर इतनी गहरी उदारतावादी और समतावादी दृष्टि कैसे अपना पाए? परंतु उनका आचरण तथा उनके लेख, भाषण, पत्र आदि इस तथ्य के जीवंत प्रमाण हैं कि वे नारी को पुरुष से किसी भी बात में कम नहीं आंकते थे और सहिष्णुता जैसे मामलों में तो औरतों को पुरुषों से अधिक समर्थ और सक्षम मानते थे। यही कारण है कि उन्होंने कांग्रेस में महिलाओं को नेतृत्व का पूरा अवसर दिया। विभिन्न आंदोलनों में औरतों को सम्मिलित करने के साथ-साथ उनके सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और राजनीतिक उत्थान के कार्यक्रम भी चलाए। उल्लेखनीय बात यह है कि नारी-मुक्ति का शोर मचाने की बजाय उन्होंने महिलाओं को एकदम सहज ढंग से स्वतंत्रता आंदोलन का अभिन्न अंग बनाया।
गांधी जी यों तो समूची मानव जाति का सम्मान करते थे, परंतु महिलाओं के लिए उनके हृदय में अत्यंत गहरी सहानुभूति और आदर का भाव मौजूद था। समूचे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्होंने अनेक महिलाओं को न केवल स्वतंत्रता संघर्ष में कूदने के लिए प्रेरित किया, बल्कि उन्हें नेतृत्व करने का भी अवसर दिया। स्वाधीनता संघर्ष के इतिहास में सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपालानी, सुशीला नैयर, विजय लक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली तथा कई अन्य महिला नेताओं ने कांग्रेस को सशक्त बनाने में योगदान दिया। इसके अलावा बहुत-सी महिलाओं ने महात्मा गांधी की प्रेरणा से सामाजिक उत्थान तथा अन्य रचनात्मक कार्यों को अपनाया। यही नहीं, गांधी जी ने कुछ विदेशी महिलाओं को भी अपने व्यवहार व स्नेह से इतना प्रभावित किया कि वे अपना देश छोड़कर न केवल भारत में बस गई, बल्कि भारतीय नाम और जीवन-पद्धति भी अपनाई और रचनात्मक कार्यो में सक्रिय सहयोग दिया। इनमें सरला बेन तथा मीरा बेन जैसे नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
भारतीय समाज में आज भी पुत्रियों से ज्यादा पुत्रों को महत्व दिया जाता है। आज भी कन्या – शिशु की गर्भ में ही हत्या कर दी जाती है। यह सामाजिक विषमता महात्मा गांधी को बहुत कष्ट पहुँचाती थी। उनके अनुसार ‘पारिवारिक संपत्ति में बेटा और बेटी दोनों का एक समान हक होना चाहिए।’ उसी प्रकार, पति की आमदनी को पति और पत्नी की सामूहिक संपत्ति समझा जाना क्योंकि इस आमदनी के अर्जन में स्त्री का भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से योगदान रहता है। भारतीय समाज में विवाह के समय लड़कियों का कन्यादान किया जाता है। गांधी ने इस विचारधारा की काफी आलोचना की है। उनके अनुसार एक बेटी को किसी की संपत्ति समझा जाना सही नहीं है।
गांधी जी शिक्षा के माध्यम से महिलाओं कि मुक्ति में विश्वास रखते थे और उन्होंने भारतीय समाज के कायाकल्प की दिशा में चलायी गयी राजनीतिक सामाजिक अथवा विकास सम्बन्धी गतिविधियों में महिलाओं के प्रति कोई भेदभाव नहीं रखा। सामाजिक निरंकुशता और पुरुष प्रधानता की वजह से महिलाओं की जो दुर्दशा हुई, उसका गांधीजी को भलीभाँति ज्ञान था। गांधी जी ने महिलाओं की शिक्षा को पर्याप्त महत्त्व दिया, किन्तु वे जानते थे कि अकेले शिक्षा से ही राष्ट्र निर्धारित लक्ष्य प्राप्त नहीं किये जा सकते। वे सिर्फ महिलाओं की ही नहीं, पुरुषों की भी मुक्ति के लिए समुचित कार्यवाही के पक्षधर थे।
शिक्षा के बारे में उनके विचार अनेक समकालीनों से भिन्न थे और शिक्षा उनके ग्राम पुननिर्माण तथा उसके माध्यम से राष्ट्र पुनर्निर्माण का मात्र एक हिस्सा, एक प्रमुख घटना थी। उन्होंने कहा था कि महिलाओं की शिक्षा मात्र ही दोषी नहीं है, हमारी समूची शिक्षा-प्रणाली विगलित है। वे शहरों और कस्बों में रहने वालों की आलोचना करते थे जो जनसंख्या का कुल 10-15 प्रतिशत हैं, और प्रत्येक चीज में लिंग सम्बन्धी भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। यंग इन्डिया में 23 मई, 1929 को लिखे गांधीजी के एक लेख से पता चलता है कि उन्हें निरक्षरता, स्कूल सुविधाओं का अभाव, भू-स्वामियों के शोषण का शिकार होने और ऐसी ही अन्य सामाजिक आर्थिक अक्षमताओं की कितनी जानकारी थी, जिनका सामना ग्रामीण महिलाओं को करना पड़ता है। उन्होंने लिखा था ‘जरूरी यह है कि शिक्षा प्रणाली को दुरुस्त किया जाये और उसे व्यापक जनसमुदाय को ध्यान में रखकर तय किया जाये। उनके अनुसार शिक्षा प्रणाली में बच्चों के साथ प्रौढ़ शिक्षा पर ही बल नहीं दिया जा सके।“
गांधी जी दहेज – प्रथा के खिलाफ थे। दहेज – प्रथा एक ऐसी सामाजिक बुराई है जिसने भारतीय – महिलाओं के जीवन के पददलित बना दिया। गांधी इसे ‘खरीद – बिक्री’ का कारोबार मानते हैं। उनके अनुसार ‘कोई भी युवक, जो दहेज को विवाह की शर्त रखता है, अपनी शिक्षा को कलंकित करता है, अपने देश को कलंकित करता है और नारी – जाति का अपमान करता है।’
बच्चों के साथ प्रौढ़ शिक्षा पर उनके अनुसार जिस शिक्षा प्रणाली में बल नहीं दिया जायेगा, तो वह उपयुक्त नहीं हो सकती। भारत में जो गिनी-चुनी शिक्षित महिलाएँ हैं, उन्हें पश्चिमी ऊँचाइयों से नीचे उतरकर देश के मैदानों में आना होगा। उनकी उपेक्षा के लिए निश्चय ही पुरुष जिम्मेदार है, उन्होंने महिलाओं का अनुचित इस्तेमाल किया है किन्तु जो महिलाएँ अन्धविश्वासों से ऊपर उठ चुकी हैं, उन्हें सुधार के लिए रचनात्मक कार्य करने होंगे।
गांधी जी के अनुसार शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो लड़के-लड़कियों को स्वयं के प्रति अधिक उत्तरदायी बना सके और एक-दूसरे के प्रति अधिक सम्मान की भावना पैदा कर सके। महिलाओं के लिए ऐसा कोई कारण नहीं है कि वे अपने को पुरुषों का गुलाम अथवा पुरुषों से घटिया समझें, उनकी अलग पहचान नहीं है बल्कि एक ही सत्ता है। अतः महिलाओं को सलाह है कि वे सभी अवांछित और अनुचित दबावों के खिलाफ विद्रोह करें। इस तरह के विद्रोह से कोई क्षति होने की आशा नहीं है। इससे तर्कसंगत प्रतिरोध होगा और पवित्रता आयेगी।
भारतीय स्वाधीनता संग्राम में महात्मा गांधी का योगदान तो अतुलनीय रहा ही, इसके साथ ही आजाद भारत में हर तरह के भेदभाव से मुक्त समाज का निर्माण हो, विशेष कर महिलाओं को समाज में उचित सम्मान और महत्व मिले, वे भयमुक्त, आत्मनिर्भर और सषक्त बनें, इसके लिए भी उन्होंने भरपूर प्रयत्न किए। आज भी उनकी विचारधारा, महिलाओं के सशक्ती करण की दिशा में हमारी मार्गदर्शक बनी हुई है।
नारी सुरक्षा को महत्त्व
गांधी जी के विचार स्त्री के सम्मान और सुरक्षा को लेकर आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उनके समय में थे। आज नगरों से लेकर महानगरों तक स्त्री असुरक्षित हैं। गाँव से लेकर कस्बों तक में कई जगहों पर उसे सार्वजनिक रूप से लूटा-खसोटा और अपमानित किया जा रहा है। गांधी जी कहा करते थे कि ‘जब तक एक भी ऐसी स्त्री मौजूद है जिसे हम अपनी लम्पटता का शिकार बनाते हैं, तब तक हम सब पुरुषों का सिर शर्म के मारे नीचा रहेगा।’
महिलाओं को ‘परदे के भीतर’ कैद कर देने पर भी गांधी जी आक्रोशित थें। उनका मानना था कि परदे के भीतर किसी भी पवित्रता को सुरक्षित कैद रखा जा सकता है। वे कहते थे कि- ‘पवित्रता परदे को आड़ में रखने से नहीं पनपती। बाहर से यह लादी नहीं जा सकती। परदे की दीवार से उसकी रक्षा नहीं की जा सकती। उसे तो भीतर से ही पैदा होना होगा।’
आत्मनिर्भर होने का दिया मंत्र
आज भी महिलाओं का एक बड़ा वर्ग परावलंबी है। उसे घर के पुरुषों के सामने हाथ फैलाने पड़ते हैं। इसी कारण महात्मा गांधी ने आजादी से पूर्व ही महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके लिए उन्होंने चरखे को माध्यम बनाया। वे चाहते थे कि घर-घर में चरखा पहुंचे और महिलाएं बड़ी संख्या में चरखे पर सूत कताई का काम करें, इससे दो पैसे उनके हाथ में आएंगे और वे स्वावलंबी बनकर अपने जीवन को बेहतर बना पाएंगी।
महात्मा गांधी ने अपने सहयोगियों के प्रयास से कई गरीब महिलाओं को चरखा चलाने का प्रशिक्षण दिया। उस समय इस प्रयास के कारण गरीब महिलाओं को एक छोटी राशि आय के रूप में मिलने लगी। तब उन महिलाओं के लिए यही बहुत बड़ी बात थी।
महात्मा गांधी का कहना था कि जिन महिलाओं के हाथ में एक पैसा भी नहीं था, वहां अगर थोड़ा पैसा आ रहा है तो यह निश्चित ही बहुत बड़ी बात है। इस तरह गांधी जी ने आज से बहुत पहले ही महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने की राह दिखाई थी। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में गांधी जी का चरखा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने में सहायक बना हुआ है।
आत्मरक्षा को माना सर्वोपरि
महात्मा गांधी ने सदैव महिलाओं को ऊंचा दर्जा दिया। वह अपने सहयोगियों और देशवासियों से भी यही आशा करते थे कि वे महिलाओं को सम्मान दें, उनका महत्व स्वीकारें। उस समय भी आज के समय की तरह समाज में महिलाओं का शोषण होता था, दुराचार की घटनाएं होती थीं।
एक बार एक महिला ने गांधी जी को पत्र लिखा, जिसमें आत्मरक्षा और अहिंसा को लेकर सवाल किए गए थे। इस पर महात्मा गांधी का जवाब था- ‘जब भी स्त्री के साथ दुर्व्यवहार की घटना हो तो हिंसा-अहिंसा का विचार न करें। ईश्वर ने जो नाखून, दांत दिए हैं, जो बल दिया है, उसका उपयोग करें, क्योंकि उस समय आत्मरक्षा ही उसका परम धर्म है। इस उत्तर के माध्यम से महात्मा गांधी ने महिलाओं को उनकी आत्मरक्षा का महत्व समझाया।
उनका यह विचार, आज जब महिलाएं असुरक्षा के माहौल में जी रही हैं, बहुत मायने रखता है। महिलाएं इस विचार को आत्मरक्षा का हथियार बनाकर सबल, सशक्त बन सकती हैं।
महिला क्रान्तिकारियों को दी प्रेरणा
महात्मा गांधी के द्वारा चलाए गए आंदोलनों के दौरान जो महिलाएं उनके संपर्क में आईं, वे भी बापू से बहुत प्रभावित रहीं। सरोजिनी नायडू ने गांधी जी के साथ सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो जैसे आंदोलनों में बहुत ही सक्रिय भूमिका निभाई। वे कई बार जेल भी गईं। महात्मा गांधी ने भी उन्हें आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभाने का हमेशा अवसर दिया।
इसी प्रकार मधुबेन, सुशीला नायर, आभाबेन, मीराबेन, सरलादेवी चौधरानी जैसी महिलाएं भी गांधी जी के दर्शन और विचारों से गहरे तक प्रभावित थीं। इन सभी महिलाओं ने भी महात्मा गांधी के द्वारा चलाए गए आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महात्मा गांधी के ज्यादातर आंदोलन सफल हुए, क्योंकि उनमें महिलाओं यानी देश की आधी आबादी ने सक्रिय भागीदारी निभाई।
स्वच्छता अभियान में समझा महिलाओं का महत्व
सबसे पहले महिलाओं को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने का महात्मा गांधी का लक्ष्य यही था कि यदि वे स्वथ्य रहेंगी, तभी घर-परिवार और समाज में अपनी असीम क्षमता के साथ योगदान दे पाएंगी। जब आधी आबादी का योगदान मिलेगा, तो किसी भी प्रकार का बदलाव संभव है। 1917 में बिहार के चंपारण जिले से गांधी जी ने पहले सत्याग्रह की शुरुआत की थी। उस समय गरीबी, अशिक्षा के कारण महिलाओं और पुरुषों को स्वच्छता का बहुत अधिक भान नहीं था, जिस कारण रोगों का प्रकोप हमेशा बना रहता था। बच्चे भी अक्सर बीमार रहते थे। गंदगी इसका सबसे प्रमुख कारण थी।
ऐसे में गांधी जी ने स्वच्छता के प्रति सबसे पहले महिलाओं को जागरूक करने का विचार किया, क्योंकि वही घर को संभालने वाली होती हैं। इसके लिए अपने सहयोगियों और बा के साथ मिलकर महिलाओं को जागरूक किया। धीरे-धीरे महिलाएं गांधी जी के इस स्वच्छता अभियान से जुड़ गईं। चंपारण की तस्वीर बदलने लगी। घर-आंगन से लेकर कुओं तक में साफ-सफाई का ध्यान रखा जाने लगा। बाद में महिलाओं ने अपने घर की देहरी लांघकर बापू के सत्याग्रह में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
नारी की समाज में स्थिति
महात्मा गांधी स्त्रियों के सामाजिक उत्थान के लिए भी बहुत चिंतित थे। महिलाओं के जीवन को प्रभावित करने वाली सामाजिक कुरीतियों के बारे में उनके मन में काफी कड़वाहट थी। वे मानते थे कि बाल-विवाह, पर्दा प्रथा, सती प्रथा और विधवा-विवाह-निषेध जैसी कुरीतियों के कारण ही महिलाएं उन्नति नहीं कर पातीं और शोषण, अन्याय तथा अत्याचार झेलने को विवश होती हैं। उन्होंने यद्यपि इन कुप्रथाओं के उन्मूलन के लिए कोई संगठित आंदोलन नहीं चलाया, किंतु विभिन्न मंचों पर अपने व्याख्यानों और लेखों के माध्यम से वे इन सामाजिक कुरीतियों पर कठोर प्रहार करते रहे।
निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि महात्मा गांधी स्त्री – पुरुष के आपसी संबंधों, समानता पर सूक्ष्म दृष्टि रखते थे। उन्होंने महिलाओं की राजनीतिक, सामाजिक स्वतंत्रता पर अपने विचार खुलकर प्रकट किए थे। गांधी जी ने महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए जो प्रयास किए थे, उनका कभी महत्व कम नहीं हो सकता। उन्होंने भारत में महिलाओं को एक नई दिशा दिखाई। हमें उसी दिशा में चलते हुए बदलते समय में उनके विचारों को अपनाना और समझना होगा।