महात्मा सरयूदास का जन्म गुजरात के पारडी नामक गाँव में हुआ था। उनका बचपन का नाम ‘भोगीलाल’ था। बचपन में उन्हें अपने पड़ोसी ‘बजा भगत’ का सत्संग मिला। सरयूदास जी की शिक्षा-दीक्षा बहुत थोड़ी थी। सरयूदास अपने मामा के ही घर पर रहकर उनके व्यापार का कार्य संभालते थे। कुछ दिनों के बाद सरयूदास का विवाह हो गया। पर उनकी पत्नी अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह सकी। एक बार की बात है, सरयूदास रेलगाड़ी से कहीं जा रहे थे। गाड़ी में भारी भीड़ थी। कहीं तिल रखने का स्थान भी नहीं था। संतजी के पास ही एक मजबूत कद काठी का व्यक्ति बैठा था। वह बार-बार संत की ओर पैर बढ़ाकर ठोकर मार देता था। संत सरयूदास ने बड़े दयाभाव से कहा, ‘भाई संकोच मत करना। लगता है तुम्हारे पैर में कहीं पीड़ा है और उस पीड़ा को दिखाने के लिए तुम बार-बार अपना पैर मेरी ओर बढ़ाते हो, मगर फिर वापस खींच लेते हो, मुझे कम से कम सेवा का मौका तो दो। मुझे तुम अपना ही समझो।’
संत ने उसका पैर उठाकर अपनी गोद में रख लिए और उसे सहलाने लगे। वह यात्री शर्मिन्दा हुआ और क्षमा याचना करते हुए कहने लगा, ‘महाराज मेरा अपराध क्षमा करें। आप महात्मा हैं। यह बात मुझे अब पता चली है।’
शिक्षा : सहनशीलता ऐसा गुण है, जिसे हमें अपने अंदर विकसित करना चाहिए। क्योंकि व्यक्ति का सहनशील होना उसे इस दुनिया में आगे ले जाता है।
प्रथु भट्ट