मनुष्य को वास्तव में मनुष्य तभी कहा जाता है जब वह प्रत्येक कार्य को मनन अर्थात् विचार करके करे । विचार करके कार्य करने वाला बहुत-से दुखो, मुसीबतों से बचा रहता है । बिना विचारे अर्थात् उतावलापन में कार्य करने वाले को पछताना पड़ता है। एक किसान का घर जंगल में था । उसने सांप आदि से रक्षा के लिए एक नेवला पाल रखा था । नेवला बड़ा स्वामिभक्त था । एक दिन किसान को कहीं बाहर जाना पड़ा । घर में किसान की पत्नी अकेली थी । उसका एक छोटा बच्चा था । वह बच्चे को दूध पिलाकर, धरती पर एक चद्दर बिछा उस पर उसे सुलाकर कुँए पर पानी भरने चली गयी ।पीछे से घर में काला सांप निकल आया ।
वह नीचे सोये बच्चे की और बढ़ ही रहा था कि नेवला उस पर टूट गया । उसने सांप को काट-काट कर टुकड़े कर डाले । जहरीला सांप मारा गया, बच्चा सुरक्षित बच गया । इस खुशी को प्रकट करने के लिए नेवला बाहरी द्वार पर बैठ कर मालकिन की प्रतीक्षा करने लगा । कुछ देर बाद किसान की पत्नी पानी का घड़ा लेकर लौटी । नेवला उसके चरणों में लोटकर अपनी विजय की प्रसन्नता करने लगा । नेवले के मुंह पर लगे खून को देखकर किसान की पत्नी घबरा गयी । उसने सोचा कि अवश्य ही इसने मेरे बच्चे को खा लिया है । उतावलेपन में आकर उसने नवेले पर पानी का घड़ा पटक दिया और दौड़कर कमरे में सोये बालक को देखा । देखा तो बालक बिलकुल ठीक सो रहा था और पास में एक काला सांप टुकड़े-टुकड़े हुआ पड़ा था । स्त्री समझ गयी कि नेवले ने सांप को मारकर बालक की रक्षा की और मैने नेवले पर मटका पटककर भारी भूल की है । वह दौड़कर नेवले को सँभालने आयी । बेचारा स्वामीभक्त नेवला कुचल कर मर चुका था । अब वह नेवले को उठाकर रोने लगी पर अब रोने का कोई लाभ नहीं था । बिना विचारे की गयी भूल का परिणाम नेवले की मौत के रूप में सामने था ।
शिक्षा दृ मनुष्य को प्रत्येक कार्य भलीभांति विचार कर उसके पश्चात् करना चाहिए। करने से पहले उसके अच्छे-बुरे परिणाम का भी विचार लेना चाहिए। उतावलेपन में आकर किये गए कार्य पर पछताना पड़ता है ।
किसी कवि ने ठीक ही कहा है –
बिना विचारे सो करें सो पाछे पछताय ।
काम बिगारे आपनो, जग में होत हंसाय ।।
रिया शर्मा