सम्पूर्ण देश में घूमता हुआ वह भ्रमणशील संन्यासी भारत के दक्षिणी अंतिम छोर पर पहुंचा जहाँ पर प्राचीनकाल से भगवती कन्याकुमारी का मंदिर स्थित है। संन्यासी माँ भगवती के चरणों में गिर पड़ा। वहीं समुद्र में दो चट्टानें हैं जो भूमि से अलग हो गई हैं। शिला तक पहुँचने का कोई दूसरा उपाय न देख संन्यासी ने समुद्र में छलांग लगा दी। कन्याकुमारी की उस चट्टान पर 1892 की 25, 26 और 27 दिसम्बर को माँ के श्रीचरणों में संन्यासी ने ध्यान किया। भारतभूमि का अतीत, वर्तमान और भविष्य संन्यासी के चित्त पर चित्रपट की तरह चल पड़ा, और उनको उद्घाटित हुआ भारत की दीनता का मूल कारण और उसका समाधान। ईश्वर द्वारा निर्दिष्ट ध्येय का उन्हें साक्षात्कार हुआ। चारों और समुद्र की उत्ताल प्रचण्ड तरंगों के बीच भारत की पीड़ा से क्लांत संन्यासी का व्यग्र मन शांत हो गया। वह थे स्वामी विवेकानंद और स्थान था विवेकानंद शिला, कन्याकुमारी। दक्षिणी छोर पर उन्मुक्त घोषणा करती वह शिला, ‘‘भारत हिन्दुओं का है’’, चार धामों के बाद हिन्दू जनमानस का पांचवां धाम बन गयी है।
कहावत है कश्मीर से कन्याकुमारी भारत एक है! यह कन्याकुमारी भारत के अंतिम छोर पर तमिलनाडु में केरल की सीमा के पास सागर तट पर स्थित है। यह धार्मिक पर्यटन स्थल तीन ओर से सागर जल से घिरा हुआ है यानि यहां तीन अलग-अलग समुद्रों का संगम देखने को मिलता है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर और दक्षिण में सुदूर दक्षिणी ध्रुव तक हिन्द महासागर फैला हुआ है। यहां स्थित विवेकानंद शिला से अरब सागर की पीले और बंगाल की खाड़ी की नीले रंग की लहरें साफ-साफ दिखाई देती हैं। इस शीला का नाम कन्याकुमारी इसलिए पड़ा कि यहां कहते हैं कि मां पार्वती ने शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की थी। वहां पर एक पैर का निशान बना हुआ भी है।
1963 में जब स्वामी विवेकानंद का जन्म शताब्दी वर्ष था, उस समय पर वहां पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों के प्रयास से विवेकानंद शिला स्मारक खड़ा हुआ। परम पूजनीय गुरु जी याने संघ के दूसरे सरसंघचालक की योजना से एकनाथ जी ने ना केवल वहां पर अति भव्य स्मारक खड़ा किया बल्कि विवेकानंद केंद्र के सैकड़ों वानप्रस्थी व ब्रह्मचारी विस्तारक निकाले! जिन्होंने पूर्वोत्तर राज्यों सहित देश समाज में शिक्षा, सेवा और आध्यात्मिक उत्थान में बहुत अहम भूमिका निभाई है!
आज स्थान पर प्रतिदिन 10,000 से अधिक पर्यटक जाते हैं! देश भर से ही नहीं दुनिया भर से आध्यात्मिक पर्यटन के लिए यहां पर लोग आते हैं! जिसके कारण से ना केवल हिंदुत्व और स्वामी विवेकानंद का संदेश सारी देश और दुनिया में फैल रहा है! बल्कि उस जिले की इकॉनॉमी में भी बहुत बड़ा विस्तार हुआ है, हजारों लोगों को रोजगार मिला है और भारत के इस तमिल प्रांत में हिंदुत्व का एक व्यापक केंद्र देश भक्ति का प्रसार भी कर रहा है!
कन्याकुमारी देवी का भव्य मंदिर
कन्याकुमारी देवी का मंदिर ऊंचे चौकोर व पथरीले स्थान पर स्थित है जिसके तीन ओर सागर की मदमस्त लहरें हरदम अठखेलियां करती रहती हैं। रामायण में भी इस पावन स्थान का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि जब माता सीता की खोज में भटकते हुए श्रीराम यहां पहुंचे थे तब कन्याकुमारी देवी ने ही उन्हें गंधनादन पर्वत यानि रामेश्वरम् की ओर जाने का संकेत दिया था।
इस मंदिर के चार दिशाओं की ओर चार द्वार हैं जिनमें तीन द्वार ही खुले रहते हैं। प्रस्तर खंडों से बने कलात्मक मंदिर के गर्भगृह में देवी कन्याकुमारी की आकर्षक सुंदर मूर्ति खड़ी है। पूर्व दिशा की ओर मुख किए कुमारी देवी के एक हाथ में माला है, जबकि उन्होनें कौमार्य के प्रतीक के रूप में नाक में हीरे की सीक तथा रत्नजड़ित नथ पहन रखी है।
कन्याकुमारी के मंदिर के पास ही भद्रकाली का मंदिर है। भद्रकाली को कुमारी देवी की मुख्य सहेली कहा जाता है। इस मंदिर की गणना 52 शक्तिपीठों में की जाती है।
गांधी मंडपम्
कन्याकुमारी मंदिर के पास में ही स्थित है गांधी मंडप। जहां सागर संगम में गांधी जी की अस्थियों को विसर्जित करने से पहले अस्थि कलश को दर्शन के लिए रखा गया था।
तीन मंजिला गांधी मंडप की खासियत यह है कि 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन सूर्य की किरणें झरोखों से होकर उसी स्थान पर पड़ती हैं जहां अस्थि कलश रखा गया था। यहां सूर्योदय और सूर्यास्त का मनमोहक दृश्य देखने को मिलता है।
कवि तिरुवल्लुवर की विशाल प्रतिमा
सिद्ध दार्शनिक और कवि तिरुवल्लुवर को समर्पित है, यह खूबसूरत प्रतिमा कन्याकुमारी के निकट एक छोटे से द्वीप पर स्थित है। तिरुवल्लुवर साहित्य की दुनिया में एक महान लेखक थे। विवेकानंद स्मारक के करीब इस भव्य प्रतिमा को स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी की तर्ज पर बनाया गया है। यह प्रतिमा 133 फीट ऊची है। जो 38 फीट के आसन पर स्थित है।
पानी से घिरी यह मूर्ति स्थल एक आदर्श स्थान पर बसा है, और छोटी नौका की सवारी से यहा आसानी से पहुचा जा सकता है। मूर्ति के परिसर में एक मंदिर भी है, जो ध्यान के लिए एक विचित्र स्थान है। इस मंदिर का शांत वातावरण मन को प्रफुल्लित करता है।
विनोद भट्ट