उदयपुर। समुत्कर्ष समिति द्वारा ” कश्मीरी विस्थापितों की घर वापसी ” विषय पर 71 वीं समुत्कर्ष विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में अपने विचार रखते हुए वक्ताओं का स्पष्ट मत था कि 1980 के दशक में पाक पोषित जेकेएलएफ और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे कई उग्रवादी आतंकी संगठनों ने कश्मीर में अपनी गतिविधियां बढ़ाना शुरू कर दिया था और 1990 आते-आते तो हालात इस कदर बिगड़ गए कि रातों-रात हजारों कश्मीरी पंडितों को अपने घर परिवार छोड़कर जम्मू समेत देश के विभिन्न हिस्सों में शरणार्थी बनकर शरण लेनी पड़ी। अपने ही देश में शरणार्थी होने की त्रासदी झेल कर शरणार्थी केंपों में रह रहे लोगों के साथ इतिहास में हुए अन्याय व अत्याचार की कालिख पोंछने का समय आ गया है l पीढ़ियों से कश्मीर में रहने वाले आज विस्थापित हुए लोगों का असली घर कश्मीर ही है। आज पूरे देश में इस विश्वास का वातावरण बन रहा है कि परिस्थितिवश विस्थापित हुए कश्मीरी भाई बहन सम्मानित और सुरक्षित होकर शीघ्र ही अपने घर वापस लौट सकेंगे।
हरिदत्त शर्मा शर्मा ने कहा कि आतंकी संगठन उस समय इश्तिहारों के ज़रिये कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ने के लिए धमकाते थे l उन्होंने बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाया गया, जिससे लोगों में डर पैदा हो गया था l अपनी आन और जान बचाने को मजबूर कश्मीर से विस्थापन के बाद ये परिवार जम्मू, दिल्ली समेत देश के अन्य शहरों में जाकर बस गए l स्वतंत्र भारत में कश्मीर से चार लाख हिंदू विस्थापित हो गये। अपने घर सम्मान के साथ वापस जाना उनका संवैधानिक अधिकार है l
तरुण कुमार दाधीच ने इस अवसर पर कहा कि कश्मीरी पंडित कश्मीरी संस्कृति का हिस्सा हैं। उनके घर और समाज में उनकी वापसी को हर हाल में सुनिश्चित बनाया जाना चाहिये l 1990 के दशक में कश्मीर घाटी से विस्थापित हुए कश्मीरी विस्थापितों की अनुच्छेद 370 को हटाये जाने और उसके बाद के काश्मीर की सुधरती सेहत से काफी उम्मीद जगी है l उनका मानना है कि इससे क्षेत्र में शांति का माहौल स्थापित होगा तो मूल स्थान पर सम्मान एवं गरिमा के साथ उनकी वापसी का मार्ग भी शीघ्र प्रशस्त होगा l
प्रदीप उपाध्याय ने स्पष्ट किया कि कश्मीर बदल रहा है l पिछले साल ही वहां के राज्यपाल ने कश्मीरी विस्थापितों की घर वापसी का समर्थन करते हुए कहा था कि जिन लोगों ने पंडितों के घरों पर अवैध रूप से कब्जा किया हुआ है उन्हें खुद उनको वापस कर देना चाहिए इससे आपसी विश्वास व भाईचारा बढ़ेगा। इधर अभाव एवं असहायता की स्थिति में जीवन यापन कर रहे कश्मीरी विस्थापितों की लम्बे समय से मांग रही है कि अब तक हुई कश्मीरी पंडितों की हत्याओं की एसआईटी जांच हो तथा केंद्र सरकार सम्मान और सुरक्षा के साथ उनका पुनर्वास करवाए ।
सञ्चालन करते हुए शिवशंकर खण्डेलवाल ने कहा कि कश्मीर घाटी में आतंकवाद के चलते कश्मीरी पंडित विस्थापितों के अलावा सिख और मुस्लिम समुदाय के भी कई परिवारों का पलायन हो गया था। आज तक ये परिवार विस्थापन का दंश झेल रहे है। इनमें 4 लाख से
अधिक विस्थापित जम्मू में पंजीकृत हैं जबकि 21333 विस्थापितों के परिवार देश के विभिन्न 12 राज्यों में रह रहे है। शरणार्थी शिविरों में रह रहे कश्मीरियों का कहना है की ये केम्प तो रैन बसेरा है, घर नहीं। हमारा सिर्फ कत्ल ही नहीं हुआ, हमारा हरसंभव वजूद मिटाया गया है। हमें अपनी माटी प्यारी है इसलिए हम अपनी जड़ों (कश्मीर) में लौटना चाहते हैं।
वक्ताओ का कहना था कि कश्मीरी विस्थापितों की सुरक्षित और सम्मानजनक वापसी के लिए कई प्रकार के सुझाव प्रस्तुत किए जा रहे हैं, परंतु मुख्य सुझाव यही है कि वहां इस प्रकार की परिस्थितियों का निर्माण किया जाए जिनमें पाक पोषित आतंकी हिंसा, एकतरफा अनियंत्रित मजहबी जुनून, धार्मिक तानाशाही और क्षेत्रीय भेदभाव का कोई स्थान न हो, तभी कश्मीरी विस्थापितों की घर वापसी सुरक्षित हो सकेगी। इसके लिए मुस्लिम समाज को भी आगे आकर अपने पंडित भाइयों को सुरक्षा की गारंटी देनी होगी। तभी देश का यह नंदन वन लहलहाती केसर की क्यारियों के दौर को पुनः जी सकेगा l
सेवानिवृत्त एवम् पत्रकारिता से जुड़े दर्शन सिंह, उषा किरण ने भी अपने विचार व्यक्त किये l विषय का प्रवर्तन तरुण शर्मा ने किया।
इस अवसर पर लोकेश जोशी, विनोद भट्ट, विद्यासागर, कविता शर्मा, राकेश कुमार शर्मा, माही भट्ट भी उपस्थित थे।