हमारी परंपरा शिवत्व की है, जिसे शक्ति का साथ मिले तो विश्व में हमें हमारी पहचान मिलेगी। चरित्र ही हमारी शक्ति है। शीलयुक्त शक्ति के बिना विश्व में कोई कीमत नही हैं। इस महत्तम उद्देश्य के लिए ही शिवशक्ति संगम अर्थात् सज्जनों की शक्ति के प्रदर्शन की आवश्यकता है। शिवाजी का राज्याभिषेक इसका जीवंत उदाहरण है।
अब से 345 साल पहले ज्येष्ठ मास की शुक्ल त्रयोदशी, वि.सं. 1731 तदनुसार दिनांक 6 जून 1674 को शिवाजी राजे का राज्याभिषेक हुआ था। आज के दिन से शिवाजी राजा ने शिवराज्याभिषेक शक प्रारम्भ किया तथा शिवराई चलन स्थापित किया । स्वाभिमान की साक्षात मूर्ति शिवाजी राजा आज के दिन छत्रपति हुए। सारी अनाथ हुई जनता को राजा मिला । वंश-उपार्जित छत्र के नीचे नहीं, तो स्वयं के सैनिकों की सहायता से उठाए गए छत्र के नीचे शिवाजी राजा बैठे तथा स्वयं घोषित नहीं, लोक घोषित छत्रपति बने ।
शिवाजी के राज्याभिषेक की पृष्ठभूमिः
सन् 1674 में शिवाजी का राज्याभिषेक हो गया। कुछ ऐसे कारण थे जिनकी वजह से शिवाजी का राज्याभिषेक आवश्यक हो गया था। इनमें से कुछ कारण निम्नलिखित हैंः
स्वतंत्र आधारभूत कानूनी राजत्व का अभाव :
शिवाजी ने अनेक प्रदेश जीत लिये थे, उन्होंने अनेक दुर्ग और विस्तृत क्षेत्र जीत लिये थे। दृढ़ थल-सेना और जलसेना का भी गठन कर लिया था। पुरन्दर की संधि में जो दुर्ग और क्षेत्र उन्होंने मुगलों को सौंप दिये थे, उन सबको सन् 1674 ई. तक शिवाजी ने मुगलों से संघर्ष व युद्ध करके पुनः प्राप्त कर लिये थे। उन्होंने मुगलों को सौंपे हुए समस्त इलाके उनके हाथों से छीन लिए थे तथा अपने सभी शत्रुओं को परास्त कर दिया था। बीजापुर राज्य की सेनाएं बुरी तरह परास्त हो चुकी थी। उन्होंने बहुत धन भी संग्रह कर अपनी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ कर ली थी। एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न स्वतंत्र शासक की भाँति वे राज्य भी करने लगे थे, पर शिवाजी का कोई स्वतंत्र आधारभूत अस्तित्व नहीं था। कानूनी या वैधानिक कोई राजत्व नहीं था। सिद्धांत रूप से उनकी स्थिति एक अधीनस्थ जागीरदार और सामान्य नागरिक की थी। उनकी राजनीतिक सत्ता के स्थायित्व के लिए आवश्यक था, कि वह एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न शासक के रूप में माने जाएँ।
हिन्दू पद पादशाही के व्यापक आदर्श की पूर्ति :
उस समय हिन्दू पद पादशाही के व्यापक आदर्श की पूर्ति के लिए राज्याभिषेक आवश्यक था। हिन्दू राष्ट्र के लिए प्रतिपादित प्राचीन शास्त्रोक्त विधि से अपना भव्य राज्याभिषेक करके शिवाजी ने प्राचीन प्रथा को पुनर्जीवित कर दिया और कम से कम भारत के एक भाग में पूर्ण हिन्दू राज्य की स्थापना कर दी। शिवाजी का राज्यारोहण जनसाधारण का ध्यान आकृष्ट करने और भारतीय ढंग से अपने आदर्श की पुष्टि करने के लिए सर्वोत्तम उपाय था। शिवाजी ने अपने राज्यारोहण के बाद स्वतंत्र राजा बनकर न केवल हिन्दू बल्कि मुसलमान तथा ईसाई सत्ताधारियों पर भी प्रभाव डाला और यह प्रकट किया कि मराठे अब वास्तव में अपनी भूमि के स्वामी हैं, और वे धार्मिक और राजनीतिक अत्याचार सहन नहीं कर सकेंगे। इसी भावना को प्रदर्शित करने के लिए शिवाजी ने ‘‘छत्रपति‘‘ की उपाधि धारण की। महाराष्ट्र में अनेक उत्साही देशभक्त अपने प्रदेश में स्वतंत्र और सशक्त हिन्दू राज्य के लिए अत्यधिक उत्सुक थे। शिवाजी ने राज्यारोहण से उनकी इच्छा पूर्ति की।
शिवाजी को क्षत्रिय होने की मान्यताः
शिवाजी ने अपने सभासदों और अपने परामर्शदाता कवि परमानंद और स्वामी रामदास जी से परामर्श किया। तत्पश्चात् अपने प्रतिनिधि गोविंद भट्ट खेड़कर को भेजा, कि वह गागा भट्ट को उचित सम्मान के साथ रायगढ़ ले आये। भट्ट यथा समय आ गये और शिवाजी के अभिषेक के विषय में विभिन्न विचार रखने वाले प्रमुख व्यक्तियों से परामर्श किया। उन्होंने अपने विरोधियों के हृदय में अपने प्रगाढ़ पांडित्य के तर्क के आधार पर शिवाजी को असंदिग्ध रूप से क्षत्रिय घोषित कर दिया। शिवाजी की वंशावली तैयार की गयी और उनका सम्बन्ध उदयपुर (मेवाड़) के महाराणा के क्षत्रिय सिसोदिया राजवंश से स्थापित किया गया। यह राजघराना सूर्यवंशी क्षत्रिय होने से शिवाजी भी सूर्यवंशी क्षत्रिय मान लिये गये।‘‘ सिसोदिया राजवंश भारत के गौरवशाली प्रसिद्ध एवं प्राचीनतम राजवंशों में से है।’’ गागा भट्ट ने शिवाजी को सिसोदिया राजवंश से सम्बन्धित होने की बात को मान्यता दे दी। भट्ट ने अपने इस मत के लिए महाराष्ट्र के अधिकांश पंडितों का समर्थन प्राप्त कर लिया।‘‘
शिवाजी के राज्याभिषेक का महत्वः
1674 में राजगढ़ में महान शिवाजी का राज्याभिषेक भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण क्रान्तिकारी घटना है। सदियों बाद महाराष्ट्र में शिवाजी के राज्याभिषेक की ऐसी घटना हुई जिससे कि उससे तत्कालीन राजनीतिक जीवन का प्रवाह ही बदल गया। एक नया राजवंश स्थापित हो गया, और एक स्वतंत्र राज्य निर्मित व स्थापित हो गया। सर्वशक्तिशाली मुगल साम्राज्य के अपार साधनों के अधिपति औरंगजेब के विरोध के बावजूद मराठे अपनी स्वतंत्रता स्थापित करने में सफल हुए, उत्तर भारत में मुगल साम्राज्य की विशालता, व्यापकता और दृढ़शक्ति के कारण कोई भी स्वतंत्र हिन्दू राजा और उसका राजवंश नहीं था, जो अपने नवीन राजा होने पर प्राचीन गौरवमयी शास्त्रों पर आधारित हिन्दू परम्पराओं के अनुरूप उसका राज्याभिषेक कराता। दक्षिण भारत में देवगिरी पर अलाउद्दीन के आक्रमण और विजय के बाद वहाँ की स्वतंत्र हिन्दू राजसत्ता नष्ट हो गयी थी। ‘‘वहाँ सन् 1296 के पूर्व स्वतंत्र राजा रामदेव यादव के राज्याषिभेक के बाद महाराष्ट्र में लगभग चार सौ वर्षों तक स्वतंत्र हिन्दू नरेश के राज्याभिषेक की कोई घटना नहीं हुई।‘‘
देवगिरी राज्य के दक्षिण में विजयनगर के सम्राटों के राज्याभिषेक हिन्दू परम्पराओं के अनुरूप होते रहे। ‘‘सन् 1565 में तालीकोट के युद्ध में पराजय के कारण विजयनगर साम्राज्य नष्ट हो गया। उसके पतन के बाद लगभग 110 वर्षों तक महाराष्ट्र में स्वतंत्र बलशाली हिन्दू राजा के राज्याभिषेक की कोई घटना नहीं हुई।’’ इसका परिणाम यह हुआ, कि राज्याभिषेक शब्द ही समाज में विस्मरित हो गया। संस्कार पूर्वक राज्य प्राप्त करने की प्रथा महाराष्ट्र में विलुप्त हो गयी। राज करने वाले केवल मुसलमान बादशाह और सुलतान ही हैं, ऐसी दूषित भावना समाज में घर कर गयी थी। दक्षिण में देवगिरी राज्य के पतन के बाद बहमनी सुल्तानों, कुतुबशाही, निजामशाही और आदिलशाही सुलतानों के विशाल राज्य स्थापित हो गये थे। ‘‘इन राजवंशों के अनेक सुलतान प्राचीन गौरवशाली राजवंशों के नहीं थे। विदेशों से आये अनेक मुसलमान किसी भी प्राचीन राजवंश से सम्बन्धित नहीं थे।’’ उनमें से अनेक सिद्धी सेवक, गुलाम, कर्मचारी आदि थे। राजसत्ता प्राप्त करने के अनेक साधन और मार्ग भी शुद्ध पवित्र और नैतिक नहीं थे। दक्षिण के हिन्दू मराठा सामन्तों और सरदारों ने अपने जीवन का लक्ष्य इन विधर्मी सुलतानों की सेवा में असीम राजनिष्ठा से नौकरी चाकरी करना बना लिया था। ‘‘अपनी सैनिक और असैनिक सेवा-चाकरी के लिए सुलतान से पुरस्कार में जागीर व वेतन प्राप्त करना उनका उद्देश्य था।’’
इसके लिए जाधव, घोरपड़े, भौंसले, मोरे आदि प्रतिष्ठित मराठा सरदारों के घराने बड़ा प्रयास करते थे। इसके लिए वे एक दूसरे का अहित करने में भी नहीं हिचकते थे। ‘‘इस प्रकार सुलतानों की नौकरी-चाकरी करना मराठा सरदारों के जीवन का लक्ष्य और कुल की प्रतिष्ठा बन गयी थी। साधारण लोगों में तो इस समय यह भावना आ गयी थी कि हिन्दुओं में तो स्वतंत्र राजा हो ही नहीं सकते। इस दूषित और भ्रमित विचारधारा को शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करके तथा स्वतंत्र राज्य स्थापित करके नष्ट कर दिया था।’’
शिवाजी महाराज एक महान, साहसी और वीर योद्धा थे और सभी धर्मों का आदर करते थे, यही नहीं उन्होंने मराठा साम्राज्य में जातिगत भेदभाव को खत्म कर दिया था और भारत में सबसे पहले नौ सेना के निर्माण का श्रेय भी इन्हीं को जाता है, उन्होंने और कई ऐसे नेक काम किए जिससे समाज का कल्याण हुआ, इसलिए शिवाजी महाराज को ‘छत्रपति’ की उपाधि भी दी गई। इस तरह वह मराठा (हिन्दू) साम्राज्य के एक ऐसे शासक बने, जिन्होंने अपने नाम का सिक्का पूरी दुनिया में चलाया। जिनसे आज के रणनीतिकार भी प्रेरणा लेते हैं ।
तरुण शर्मा