हँसता हूँ – मुस्कुराता हूँ, चलता जाता हूँ
ना थकता और न घबराता, रंग दिखाता हूँ।।
ना दिल दुखाता हूँ और ना रोब जमाता हूँ
अपने कर्म और दम पर, मैं खून बहाता हूँ
बाधाओं अड़चनों को मैं, मसलता जाता हूँ
ना थकता और न घबराता, रंग दिखाता हूँ।।
भटकता हूँ अटकता हूँ, कहीं लटक जाता हूँ
बरस जाता हूँ या बिजली सा तड़क जाता हूँ
अपने हौसलों के दम पर, निकलता जाता हूँ
ना थकता और न घबराता, रंग दिखाता हूँ।।
सीखता हूँ सीखाता हूँ, मार्ग दिखाता हूँ
जितना मुझे आता है, उतना मैं बताता हूँ
बुरे कर्मों से बचता दूर निकलता जाता हूँ
ना थकता और न घबराता, रंग दिखाता हूँ।।
ना छल करता न गुमराह, न छलावा करता हूँ
सत्य परम धर्मो से, अपना बचावा करता हूँ
खंडहर पहाड़ों पर ऐसे, चढ़ता जाता हूँ
ना थकता और न घबराता, रंग दिखाता हूँ।।
– बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘‘बिन्दु’’