इस समारोह में कई सौ भारतीयों ने भाग लेकर 1857 के स्वाधीनता संग्राम के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। राष्ट्रीय गान के बाद वीर सावरकर का ओजस्वी भाषण हुआ, जिसमें उन्होंने सप्रमाण सिद्ध किया कि 1857 में ‘गदर’ नहीं अपितु भारत की स्वाधीनता का प्रथम महान् संग्राम हुआ था।
1907 में सावरकर ने अंग्रेजों के गढ़ लंदन में 1857 की अर्द्धशती मनाने का व्यापक कार्यक्रम बनाया। क्योंकि अंग्रेज इस प्रथम स्वातंत्र्य-समर को ‘गदर’ व लूट बताकर बदनाम करते आ रहे थे।
10 मई, 1907 को ‘इंडिया हाउस’ में 1857 की क्रांति की स्वर्ण जयंती का आयोजन किया गया। भवन को तोरण द्वारों से सजाया गया। मंच पर मंगल पांडे, लक्ष्मीबाई, वीर कुँवरसिंह, तात्या टोपे, बहादुर शाह जफर, नाना साहब पेशवा आदि भारतीय शहीदों के चित्र थे।
भारतीय युवक छाती व बाँहों पर शहीदों के चित्रों के बिल्ले लगाए हुए थे। उन पर अंकित था ‘1857 के वीर अमर रहें।’
भारतीय देशभक्त युवक जब इन बिल्लों को लगाकर ऑक्सफोर्ड तथा कैंब्रिज विश्वविद्यालयों में अपनी कक्षाओं में गए तो उनकी अंग्रेज शिक्षकों व छात्रों से झड़पें भी हुईं। 1857 की स्वर्ण जयंती मनाए जाने की घटना ने पूरे इंग्लैण्ड को झकझोर कर रख दिया।