” भारतीयता संस्कृति की दिग्विजय का शंखनाद है नव संवत्सर “
उदयपुर,11 मार्च। समुत्कर्ष समिति द्वारा मासिक विचार गोष्ठी के क्रम में ” भारतीयता संस्कृति की दिग्विजय का शंखनाद है नव संवत्सर “ विषयक 48 वीं मासिक विचार गोष्ठी का आयोजन फतह स्कूल में किया गया । इस अवसर पर समुत्कर्ष पत्रिका के नव संवत्सर अंक का विमोचन भी किया गया ।
विषय प्रवर्तन करते हुए समुत्कर्ष पत्रिका के परामर्श दाता तरुण शर्मा ने कहा कि विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक कालगणना का नववर्ष है वर्षप्रतिपदा । वर्ष प्रतिपदा, गुढ़ीपाड़वा, नवसंवत्सर, संवत्सरी, चेत्रीचंद आदि नामों से मनाया जाने वाला यह वर्ष के स्वागत का पर्व, काल के माहात्म्य का पर्व है। इसका एक नाम युगादी है जिसे उगादी भी कहा जाता है। युग का आदि अर्थात प्रारम्भ का दिन। सृजन के साथ ही समय का प्रारम्भ हुआ। शर्मा ने बताया कि 18 मार्च 2018 से हिन्दूनववर्ष विक्रम संवत् 2075 एवं राष्ट्रीय शक संवत 1940 का प्रारंभ होगा। इस नवीन संवत्सर का नाम विरोधकृत होगा। जो रुद्रविंशति का का 5 वां संवत्सर है।
सेवा निवृत प्रधानाचार्य जयन्ती लाल पंचाल ने इस अवसर पर अपने विचार रखते हुए कहा कि काल को समग्रता से हिन्दू ॠषियों ने ही समझा। इसके चक्रीय स्वरूप को समझकर उन्होंने चतुर्युगी के शास्त्रीय तत्व का विवेचन किया। आजआधुनिक भौतिक विज्ञान जिन बातों को प्रायोगिक रूप से समझने में उलझ रहा है उसे अत्यंत वैज्ञानिक विधि से भारत में साक्षात् किया गया। आज भी हमारे मंदिरों में प्रतिदिन 192 करोड़ वर्ष की कालगणना का स्मरण किया जाता है।
संदीप आमेटा ने सञ्चालन करते हुए कहा कि काल के बारे में विचार का सीधा परिणाम हमारी जीवनशैली पर होता है। आज सारा विश्व पर्यावरण की त्रासदी से चिंतित है। हम यदि इस समस्या की जड़ में जाकर देखेंगे तो पायेंगे किइसका मूल कारण काल की पश्चिमी धारणा में है। स्पर्धात्मक भोगवाद के कारण सारा विश्व विनाश की कगार पर आ खड़ा हुआ। इसलिये वर्ष मनाने की विधि में भी हम यह अंतर देखते हैं। पश्चिमी सभ्यता में नववर्ष को मनाने में अधिक सेअधिक भोग का भाव रहता है। नशे को आनन्द का पर्याय समझा जाता है। इसलिए जश्न रात को मनाया जाता है। दूसरी ओर भारतीय नववर्ष को हम सुबह के पवित्र वातावरण में अत्यन्त शालीनता से मनाते हैं। यह सोच का अंतर है। धार्मिकअनुष्ठान, परस्पर स्नेहाभिव्यक्ति के लिए कलात्मक अनुरंजन, सृष्टि का स्वागत, स्वास्थ्यवद्र्धक खानपान ऐसे वैज्ञानिक परम्पराओं का निर्माण इस पर्व के लिए भारत में हुआ।
हरिदत्त शर्मा ने अपना विश्लेषण रखते हुए कहा कि यह दिन सृष्टि की रचना का पहला दिन है, एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 119 वर्ष पूर्व इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने जगत की रचना प्रारंभ की थी यह विक्रमी संवत का पहला दिन है ,सम्राट विक्रमादित्य ने 2075 वर्ष पहले इसी दिन राज्य स्थापित किया था प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक भी इसी दिवस हुआ था , सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणवतार संत झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए थे , स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को आर्य समाज स्थापना दिवस के रूप में चुना था , विक्रमादित्य की भांति शालिनवाहन ने हूणों को परास्त कर भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना था , 5120 वर्ष पूर्व युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ था । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ केशव राव हेडगेवार का जन्म भी 129 वर्ष पूर्व इसी पुनीत दिन हुआ था ।
तरुण कुमार दाधीच ने आव्हान किया कि अपने-अपने घरों में ध्वज लगावें (गुडी लगावें) ध्वज पूजन करें घरों को दीप और विद्युत्सज्जा से आलोकित करें । नवसंवत्सर आरंभ के दिन नूतन वर्ष के पंचांग की पूजन, पंचांग का फल श्रवण, पंचांग वाचन और पंचांग का दान करने का उल्लेख धर्मशास्त्र में लिखा है। नीम के कोमल पत्ते, पुष्प, काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा मिश्री और अजवाइन मिलाकर चूर्ण बनाकर सेवन करने से संपूर्ण वर्ष रोग से मुक्त रहते हैं । इष्टदेव की आरती पूजन करके मन्त्र पुष्पांजली और प्रसाद वितरण के पश्चात् नववर्ष का अभिनन्दन और परस्पर शुभकामना, मंगलकामना, नववर्ष मधुर मिलन आदि व्यवहारिक पक्ष के साथ पंचांग का फल श्रवण करना चाहिए । यह परंपरा आज भी गाँव-गाँव में प्रचलित है।
गोष्ठी में जसवन्त राय , श्याम सुंदर चौबीसा ने भी अपने विचार व्यक्त किये । समुत्कर्ष के सहसम्पादक गोविन्द शर्मा ने आभार व्यक्त किया ।
इस अवसर पर ललित जैन, गिरीश चौबीसा, संगीत भावसार , राकेश शर्मा, मुकेश जैन, गोपाल माली, पुष्कर माली , पप्पूलाल कुम्हार आदि उपस्थित थे ।
लोकेश जोशी
94147 32617
विचार गोष्ठी संयोजक