भारतीय नव वर्ष इस बार मंगलवार से आरंभ हो रहा है, इसलिए नए सम्वत् के स्वामी मंगल होंगे। इस संवत्सर का नाम क्रोधी है और वर्ष 2081 है। हिंदू नव वर्ष के पहले दिन से ही चैत्र नवरात्रि पर्व शुरू होता है। साथ ही इस दिन गुड़ी पड़वा, झूलेलाल जयन्ती और युगादी पर्व भी मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा का पर्व मुख्यतः महाराष्ट्र में हिन्दू नववर्ष के आरंभ की खुशी में मनाया जाता है। तमिलनाडु में हिंदू नव वर्ष को पुथंडु, असम में बिहू, पंजाब में वैसाखी, उड़ीसा में पना संक्रांति और पश्चिम बंगाल में नबा बरसा के नाम से जाना जाता है।
भारत में हजारों सालों से हिन्दू समुदाय द्वारा विक्रम संवत् पर आधारित कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को नए साल की शुरुआत के रूप में मनाया जा रहा है। विक्रम संवत् पर आधारित कैलेंडर के अनुसार मनाया जाने वाले हिन्दू नववर्ष को हिंदू नव संवत्सर या नया संवत् के नाम से भी जाना जाता है। विक्रमादित्य संवत् को हिन्दू नववर्ष इसलिए बोला जाता है क्योंकि यह प्राचीन हिन्दू पंचांग और कैलेण्डर पर आधारित है। 58 ईसा पूर्व राजा विक्रमादित्य ने खगोलविदों की गणनाओं को व्यवस्थित करके प्रचलित किया था। इसे नव संवत्सर भी कहते हैं।
हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा गुड़ी पड़वा से होता है। इस नववर्ष को प्रत्येक राज्य में अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है परंतु है यह नव संवत्सर। गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, उगाडी, कश्मीरी नवरेह, चेटीचंड, चित्रैय, तिरुविजा आदि सभी की तिथि इस नव संवत्सर के आस-पास ही आती है। हिंदू नव वर्ष के दिन विभिन्न राज्य में भी नव वर्ष मनाया जाता है वो भी अलग अलग नामों से। आइए जानते हैं इसके बारे में। सिंधी समाज के लोग इस दिन को चेटी चंड के नाम से पुकारते हैं। महाराष्ट्र में मराठी नववर्ष के रूप में गुड़ी पड़वा के नाम से मनाया जाता है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में उगादी के नाम से पहचाना जाता है। गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय के लोग संवत्सर पड़वो के नाम से बुलाते हैं। कश्मीरी नववर्ष के रूप में इसे नवरेह के नाम से जानते हैं और मणिपुर में सजिबु नोंगमा पानबा के पर्व के रूप में मनाया जाता है।
हिन्दू नववर्ष की शुरुआत चैत्र माह की प्रतिपदा से हिंदू नववर्ष की शुरुआत हो जाती है। हिंदी कैलेंडर में चैत्र महीना साल का पहला महीना होता है और फाल्गुन साल का आखिरी महीना होता है। हिंदी पंचांग में आने वाले सभी महीनों के नाम इस प्रकार हैं- चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन।
क्यों कहते हैं नव संवत्सर : जैसे बारह माह होते हैं उसी तरह 60 संवत्सर होते हैं। संवत्सर अर्थात् बारह महीने का कालविशेष। सूर्यसिद्धान्त अनुसार संवत्सर बृहस्पति ग्रह के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं। 60 संवत्सरों में 20-20-20 के तीन हिस्से हैं जिनको ब्रह्माविंशति (1-20), विष्णुविंशति (21-40) और शिवविंशति (41-60) कहते हैं।
बृहस्पति की गति के अनुसार साठ वर्षों में बारह युग होते हैं तथा प्रत्येक युग में पाँच-पाँच वत्सर होते हैं। बारह युगों के नाम हैं- प्रजापति, धाता, वृष, व्यय, खर, दुर्मुख, प्लव, पराभव, रोधकृत, अनल, दुर्मति और क्षय। प्रत्येक युग के जो पाँच वत्सर हैं, उनमें से प्रथम का नाम संवत्सर है। दूसरा परिवत्सर, तीसरा इद्वत्सर, चौथा अनुवत्सर और पाँचवा युगवत्सर है। 12 वर्ष को बृहस्पति का एक वर्ष माना गया है। बृहस्पति के उदय और अस्त के क्रम से इस वर्ष की गणना की जाती है। इसमें 60 विभिन्न नामों के 361 दिन के वर्ष माने गए हैं। बृहस्पति के राशि बदलने से इसका आरंभ माना जाता है।
60 संवत्सर : संवत्सर को वर्ष कहते हैं। प्रत्येक वर्ष का अलग नाम होता है। कुल 60 वर्ष होते हैं तो एक चक्र पूरा हो जाता है। इनके नाम इस प्रकार हैंः- प्रभव, विभव, शुक्ल, प्रमोद, प्रजापति, अंगिरा, श्रीमुख, भाव, युवा, धाता, ईश्वर, बहुधान्य, प्रमाथी, विक्रम, वृषप्रजा, चित्रभानु, सुभानु, तारण, पार्थिव, अव्यय, सर्वजीत, सर्वधारी, विरोधी, विकृति, खर, नंदन, विजय, जय, मन्मथ, दुर्मुख, हेमलम्बी, विलम्बी, विकारी, शार्वरी, प्लव, शुभकृत, शोभकृत, क्रोधी, विश्वावसु, पराभव, प्लवंग, किलक, सौम्य, साधारण, विरोधकृत, परिधावी, प्रमादी, आनन्द, राक्षस, नल, पिंगल, काल, सिद्धार्थ, रौद्रि, दुर्मति, दुन्दुभी, रूधिरोद्गारी, रक्ताक्षी, क्रोधन और अक्षय।
चैत्र महीने में ही क्यों मनाया जाता है नववर्ष
1. ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि इसी दिन यानी चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को ही ब्रह्मा जी ने संसार की रचना की थी। अनुमान के अनुसार लगभग 1 अरब 96 करोड़ 08 लाख 53 हजार 125 साल पहले चैत्र माह की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन संसार का निर्माण हुआ था। यह कारण भी है कि इस दिन हिंदू नववर्ष मनाया जाता है।
2. इसके अलावा विक्रमादित्य ने अपने नाम से संवत्सर की शुरुआत भी चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को ही की थी। एक कारण ये भी है हिंदू नववर्ष को विक्रमी संवत्सर भी कहा जाता है। इस साल विक्रम संवत को 2080 वर्ष पूरे हो रहे हैं और विक्रम संवत 2081 लग रहा है।
3. चैत्र महीने में नववर्ष मनाए जाने का एक कारण ये भी है कि यह महीना प्रकृति की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस समय पेड़ों, लताएँ और फूल बढ़ने के लिए लगे होते हैं।
4. हिंदू धर्म में चाँद और सूरज को भी देवता की तरह पूजा जाता है और चैत्र महीने में ही चँद्रमा की कला का प्रथम दिन होता है। ये कारण भी है कि इसी दिन नववर्ष मनाया जाता है। ऋषियों-मुनियों ने नववर्ष के लिए चैत्र महीने को एकदम उपयुक्त माना है।
5. चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को श्रीराम ने जन्म लिया था। रामभक्त इसी दिन को रामनवमी के रूप में भी मनाते हैं। वहीं राम जी के इसी महीने जन्म लेने की
वजह से भी इस महीने का महत्व और बढ़ जाता है। इसके अलावा शक्ति और भक्ति के नौ दिन यानी नवरात्र का पहला दिन चैत्र महिने की शुक्ल पक्ष से ही शुरू होता है।
नव संवत्सर पर क्या करें –
हिंदू मान्यता के अनुसार घर में शुभता और सौभाग्य का आगमन मुख्य द्वार से होता है, ऐसे में नव संवत्सर पर घर की साफ-सफाई करने के बाद मुख्य द्वार पर स्वास्तिक और रंगोली आदि बनाकर दरवाजे पर बंदनवार लगाना चाहिए। इस दिन दरवाजे पर एक पात्र में पीली हल्दी घोलकर दरवाजे के दोनों कोनों पर छिड़कना चाहिए।
नव संवत्सर वाले दिन धर्म ध्वजा को विधि-विधान से पूजा करके लगाना चाहिए। धर्म ध्वजा को आप किसी मंदिर अथवा अपने घर की छत या घर के मुख्य द्वार आदि पर लगा सकते हैं। नव संवत्सर वाले दिन नीम की पत्तियों का विशेष रूप से सेवन किया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने पर पूरे साल आरोग्य बना रहता है।
संदीप आमेटा