आखिरकार चीन को वही करना पड़ा जो उसे बहुत पहले कर लेना चाहिए था। गलवान घाटी में ड्रैगन ने न सिर्फ अपने तंबू उखाड़े बल्कि सैनिकों को भी पीछे भेजने पर मजबूर होना पड़ा। दुनियाभर के सामरिक विशेषज्ञों का कहना है कि 15 जून की घटना के बाद लद्दाख में एलएसी पर मजबूत सैन्य तैनाती और लगातार अडिग खड़ा भारत उसे करारा जवाब दे रहा था। साथ ही विस्तार वादी रूप और कोरोना के कारण दुनिया भर में हो रही की किरकिरी से भी चीन भारी दबाव में आ गया है।
5 मई से 5 जुलाई की दो महीने की लंबी अवधि तक तमाम तरह के हथकंडे अपनाकर भी भारत पर दबाव बनाने में बुरी तरह नाकाम रहा चीन अब शांति का राग अलापने लगा है। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर धौंस दिखाकर भारतीय क्षेत्र पर कब्जा करने का सपना देख रहे चीन को भारत से तो मुंहतोड़ जवाब मिला ही, विश्व बिरादरी में भी उसके खिलाफ जबर्दस्त माहौल बन गया। अब चीन समझ चुका है कि वो अपने ही फेंके जाल में बुरी तरह फँस गया तो सीमा पर शांति और संयम की दुहाई देने लगा। यही वजह है कि उसने भारत के साथ दोबारा अमन की बहाली की प्रक्रिया तेज कर दी है।
मगर इसके बावजूद वह सीमा पर भारत से उलझ कर अपना शक्ति प्रदर्शन कर रहा था। लेकिन इस बार उसका यह दाव उल्टा पड़ गया। साउथ चाइना माॅर्निंग पोस्ट के आकलन के अनुसार, 1962 का जख्म हरा करके चीन ने खुद का ही नुकसान कराया है। उसकी वजह से न केवल अमेरिका-भारत की दोस्ती बढ़ी बल्कि भारत के साथ तनाव उसे और महंगा पड़ सकता है।
नहीं चली धोंस तो पकड़ी बातचीत की राह
इसी सिलसिले में चीन ने भारत के साथ पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद पर राजनयिक स्तर की वार्ता की और वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर शांति पूरी तरह बहाल करने के लिए क्षेत्र से सैनिकों के पूरी तरह पीछे हटने पर सहमति जताई। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए कार्य प्रणाली (WMCC) की रूपरेखा के तहत वार्ता आयोजित की गई।
अमन-चैन बहाल करने की कोशिश
मंत्रालय ने बताया कि दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय समझौतों तथा प्रोटोकाॅल के अनुरूप सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन-चैन पूरी तरह बहाल करने के लिए एलएसी के आसपास सैनिकों के पूरी तरह पीछे हटने की बात दोहराई। विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘उन्होंने इस बात पर भी सहमति जताई कि द्विपक्षीय संबंधों के समग्र विकास के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में दीर्घकालिक अमन-चैन बनाए रखना जरूरी है।’
खुद को सुपरपावर साबित करने की कोशिश में चीन
साउथ चाइना माॅर्निंग पोस्ट अखबार में चीन के पूर्व कूटनीतिज्ञ शी जिंगताओ ने प्रोफेसर ग्राहक एलिसन के हवाले से लिखा है कि अब तक चीन अमेरिका के साथ ही सैन्य टकराव पैदा करके खुद को सुपर पावर साबित करना चाहता था। लेकिन भारत के साथ तनाव पैदा करना समझ से परे है। बीजिंग को भारत पर दबाव बनाना महंगा पड़ सकता है। वहीं कुछ अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही दोनों देश फिलहाल सीमा पर पीछे हटने को राजी हो गए हों। लेकिन भरोसे के अभाव में तनाव जल्दी खत्म होने के आसार नहीं है। दोनों ही देश सीमावर्ती इलाकों में अपने सैनिकों की तैनाती में इजाफा कर रहे हैं।
वर्षों के भरोसे को किया चूर-चूर
जिंकताओ ने अपने लेख में कहा कि चीन ने भारत की सामरिक शक्ति को हल्के में लेने की गलती की। इस हरकत ने भारत में 1962 के जख्मों की यादें ताजा कराकर तनावपूर्ण स्थिति पैदा कर दी है। उसने न सिर्फ वर्षों की आपसी बातचीत से पैदा हुए भरोसे को चूर-चूर कर दिया है बल्कि अपना आर्थिक नुकसान भी कराया। इसके अलावा दुनिया में भी वह पहले के मुकाबले ज्यादा अलग-थलग हो गया है।
भारत-अमेरिका की नजदीकी की वजह खुद ड्रैगन
ओशन यूनिवर्सिटी आफ चाइना की विश्लेषक पैंग झोगयिंग का कहना है कि भारत ने पिछले दो दशक में खुद को एशियाई शक्ति के रूप में स्थापित किया है। वहीं, भारत और अमेरिका अपने सामरिक सहयोग तेजी से बढ़ा रहे हैं। इससे चीन खतरा महसूस कर रहा है। हालाँकि अगर चीन ने सीमा पर तनाव नहीं बढ़ाया होता तो भारत अमेरिका इतनी तेजी से नजदीक नहीं आए होते। भारत और चीन सीमा विवाद सुलझाकर ही आगे शांति से रह सकते हैं। बदली स्थिति में भारत एशिया में ताकत बनकर उभर रहा है और चीन आर्थिक तौर पर अव्वल मानते हुए अपनी प्रतिस्पर्धा अमेरिका से ही करता रहा है। लेकिन अमेरिका से भारत के सैन्य सहयोग के चलते उसकी प्राथमिकता बदली है। अब वह अपनी दक्षिणी सीमा और हिंद महासागर में भारतीय सेना में अमेरिका को संयुक्त तौर पर देखने लगा है।