जापान की राजधानी टोक्यो में संपन्न हुए ओलंपिक खेलों में जैसे कि पहले से ही उम्मी
जताई जा रही थी कि भारत इस बार ओलंपिक इतिहास में सबसे बेहतर प्रदर्शन करेगा
हुआ भी वैसा ही। मेरीकाॅम और अमित पंघाल जैसे कई बड़े खिलाड़ियों के बाहर होने
के बाद भी भारत ने खेलों के इस महाकुंभ को अपना सबसे सफल ओलंपिक बना दिया।
ओलंपिक इतिहास की बात करें, तो भारत के नाम अब तक कुल 35 पदक हैं। इनमें 10 स्वर्ण, नौ रजत और 16 कांस्य पदक शामिल हैं। सबसे ज्यादा आठ स्वर्ण पदक भारत की हाॅकी टीम ने जीते हैं। देश के नाम व्यक्तिगत स्पर्धा में दो गोल्ड हैं, जो अभिनव बिंद्रा ने 2008 के बीजिंग ओलंपिक के दौरान शूटिंग और इसी साल नीरज चोपड़ा ने जैवलिन थ्रो में जीता है।
भारत ने 2012 लंदन आलंपिक को पीछे छोड़ते हुए टोक्यो ओलंपिक में 7 पदक अपने नाम किए हैं। इससे पहले लंदन में भारत के नाम कुल छह पदक थे। आइए जानते हैं टोक्यो में किन खिलाड़ियों ने भारत का नाम रोशन किया…
मीराबाई ने दिलाया पहला पदक
भारत को टोक्यो में पहला पदक मीराबाई चानू ने दिलाया। उन्होंने भारत्तोलन में देश के लिए रजत पदक जीता। स्नैच के बाद मीराबाई चानू दूसरे नंबर पर थीं। इसके बाद क्लीन एंड जर्क के पहले प्रयास में मीराबाई चानू 110 किग्रा उठाने में कामयाब रहीं। मीराबाई ने 49 किग्रा वर्ग में दूसरा स्थान हासिल किया। इस स्पर्धा का स्वर्ण चीन की जीहोई होउ ने जीता है।
पीवी सिंधु ने रचा इतिहास
बैडमिंटन में भारत के लिए पीवी सिंधु ने काँस्य पदक जीता। इसी के साथ सिंधु ओलंपिक में दो पदक जीतने वाली दूसरी भारतीय खिलाड़ी बन गई हैं। इससे पहले सुशील कुमार को कुश्ती में दो पदक मिले थे।
हाॅकीः काँस्य पदक जीता
इस बार भारत की पुरुष हाॅकी टीम ने स्य पदक अपने नाम किया। भारत ने 41 साल बाद ओलंपिक हाॅकी में पदक जीता। इससे पहले भारत ने 1980 में स्वर्ण पदक जीता था। टोक्यो में भारत की महिला हाॅकी टीम ने भी शानदार खेल दिखाया और पहली बार चैथे स्थान पर रही।
बाॅक्सिंगः काँस्य पदक से संतोष
पहली बार ओलंपिक में हिस्सा ले रही लवलीना बोरगोहेन को 69 किलोग्राम वेट कैटेगरी के सेमीफाइनल में हार का सामना करना पड़ा। हालाँकि, वे खाली हाथी देश नहीं लौटी। उन्होंने भारत की झोली में कांस्य पदक तो डाला ही। अगर वे सेमीफाइनल मुकाबला जीत जातीं, तो पहली बार कोई भारतीय बाॅक्सर ओलंपिक में स्वर्ण या रजत पदक की दावेदारी पेश करता।
कुश्तीः रवि को रजत, बजरंग ने काँस्य जीता
कुश्ती (फ्री स्टाइल) में रवि कुमार दहिया ने रजत पदक जीतकर भारत की झोली में एक और पदक डाला। इसके अलावा बजरंग पूनियो काँस्य पदक जीतकर कुश्ती में भारत का बोलबाला साबित किया। इसके अलावा दीपक पूनिया ने भी अच्छा प्रदर्शन किया। हालांकि, वे भारत के लिए कोई पदक नहीं जीत पाए।
एथलेटिक्सः टोक्यो में भारत को पहला गोल्ड मिला
भारत को सबसे बड़ी सफलता उम्मीद जैवलिन थ्रो में हासिल हुई। नीरज चोपड़ा ने ओलंपिक में 13 साल बाद भारत को स्वर्ण पदक दिलाया। यही नहीं, 121 साल में पहली बार भारत को ट्रैक एंड फील्ड में स्वर्ण पदक हासिल हुआ। नीरज ट्रैक एंड फील्ड में सोना जीतने वाले पहले भारतीय भी हैं।
टोक्यो ओलम्पिक में भारत के भाल पर नीरज के भाले से स्वर्ण तिलक
‘नीरज चोपड़ा’,
अब किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। 23 साल का वह भारतीय लड़का जो अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है। जी हाँ, भारतीय सेना के सूबेदार नीरज चोपड़ा अब ओलंपिक के फील्ड एंड ट्रैक स्पर्धा में गोल्ड जीतने वाले पहले भारतीय बन चुके हैं। उन्होंने टोक्यो से ओलंपिक में पदार्पण करते हुए पुरुषों की भाला फेंक स्पर्धा में गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिया है।
शांत स्वभाव के जुझारू नीरज ने अपने उस सपने को साकार कर दिया है जो उन्होंने वर्षों पहले देखा था। उन्होंने दुनिया के शीर्ष खिलाड़ियों को मात दी और खेलों के महाकुंभ में तिरंगा लहरा दिया। हालांकि नीरज के लिए यहाँ तक का सफर इतना आसान नहीं था। लाॅकडाउन, चोट और खेलों की अनिश्चितता के बीच उन्होंने खुद को तैयार किया और ओलंपिक के फाइनल में इतनी दूर भाला फेंक दिया जिसके नजदीक कोई भी प्रतियोगी नहीं पहुँच पाया।
पक्का इरादा
नीरज ने फाइनल मुकाबले के पहले ही प्रयास में अपना इरादा जाहिर कर दिया कि आज गोल्ड उनका है। उन्होंने 87. 03 मीटर की दूरी तक भाला फेंका और शीर्ष पर पहुँच गए। वह यहीं नहीं रुके और दूसरे प्रयास में अपनी पूरी ताकत झोंक दी और 87.58 मीटर की दूरी तक भाले को उछाल दिया। दूसरे स्थान पर रहने वाले चेक गणराज्य के वाडले जैकब भी 86.67 तक ही भाला फेंक पाए, वो भी पांचवें प्रयास में।
नीरज की ताकत
विशेषज्ञों का कहना है कि भाला फेंक के लिए तेजी और ताकत, दोनों की जरूरत होती है और यह दोनों ही नीरज के पास है। तेजी और बाजुओं में ताकत दोनों है और उन्होंने अपनी तकनीक पर भी जमकर काम किया, यही कारण था कि नीरज को उम्मीद थी कि वह दुनियाभर के खिलाड़ियों को मात दे सकते हैं और ओलंपिक में पदक जीत सकते हैं। उनका यह भरोसा और कभी हार ना मानने की जिद्द भी उनकी ताकत में शुमार है। इसका उदाहरण है कि जब उनके पहले पेशेवर कोच का निधन हुआ तो उन्होंने सदमे के बावजूद खुद को संभाला और फिनलैंड के एक टूर्नामेंट में 85 मीटर तक भाला फेंकने में कामयाब रहे।
उपलब्धियाँ
नीरज के अनुसार, वे 85-86 मीटर तक आराम से फेंक सकते हैं। यही नहीं नीरज 90 मीटर तक भाला फेंकने की इच्छा भी रखते हैं। उनका खुद का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन भी 88.06 मीटर का है जो उन्होंने 2018 में एशियाई खेलों में हासिल की थी। ओलंपिक से पहले नीरज जहाँ भी गए वहां रिकाॅर्ड बुक में अपना नाम दर्ज कराया। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने 2016 में जूनियर वल्र्ड चैंपियनशिप में विश्व रिकाॅर्ड के साथ गोल्ड, 2018 में राष्ट्रमंडल खेलों में गोल्ड, 2018 एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल अपने नाम किया।
आखिरकार भारत को वो मिल ही गया जिसके इंतजार में पूरा देश 23 जुलाई से नजरें गड़ाए अपने खिलाड़ियों के प्रदर्शन को देख रहा था। देशवासियोंकी अथाह उम्मीदों का बोझ अपने कंधे पर लादे नीरज चोपड़ा ने ऐसा भाला फेंका कि उनके सामने सब चित हो गए। 2008 के बाद देश को दूसरा ओलिंपिक गोल्ड मेडल मिला हैं नीरज चोपड़ा ने नीरज चोपड़ा ने गोल्ड मेडल अपने नाम करते हुए इतिहास रच दिया।
ओलंपिक गोल्ड का राज
बात करें ओलंपिक में नीरज के प्रदर्शन की तो उन्होंने हमेशा पहले मौके को ही भुनाने की कोशिश की। इसका उदाहरण है कि क्वाॅलिफिकेशन राउंड के ग्रुप ए में उन्होंने पहले ही प्रयास में 86.65 मीटर तक भाला फेंका और बिना किसी दूसरे मौके के सीधा फाइनल के लिए क्वालीफाई कर गए। उस समय भी 32 खिलाड़ियों वाले दोनों ग्रुप से कोई भी उनके नजदीक नहीं पहुंच पाया। यही हाल फाइनल में भी हुआ नीरज ने शुरू के दो प्रयास में ही दोनों बार 87 मीटर के आँकड़े को छुआ और इस बार भी कोई अन्य खिलाड़ी उनके करीब नहीं पहुँच पाया। कुल मिलाकर नीरज ने शुरुआत में ही मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल की और अपनी पूरी ताकत के साथ लक्ष्य को हासिल किया।
पहलवान रवि कुमार दहिया
भारत के पहलवान रवि कुमार दहिया ने टोक्यो ओलिंपिक में रजत पदक जीत कर इतिहास रच दिया। उन्होंने स्वर्ण पदक के खिताबी मुकाबले में वल्र्ड चैंपियन रूस के जावुर युगुऐव से उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस तरह वह सुशील कुमार के बाद कुश्ती में सिल्वर मेडल जीतने वाले भारत के दूसरे पहलवान बन गए हैं।
130 करोड़ भारतीयों की गोल्ड मेडल उम्मीद के साथ उतरे रवि ने वल्र्ड चैंपियन के आगे अपना शतप्रतिशत दिया। वह अंत तक लड़े, लेकिन 7-4 से हार गए। अब तक हुए ओलम्पिक्स में कुश्ती में भारत का यह दूसरा रजत पदक है। इससे पहले सुशील कुमार भी लंदन ओलिंपिक के फाइनल में पहुँचे थे, लेकिन उन्हें भी रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा था।
रवि ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया
रवि ने टोक्यो में शानदार शुरुआत करते हुए अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था। उन्होंने सेमीफाइनल में पीछे चल रहे होने के बावजूद कजाकिस्तान के नूर इस्लाम सनायेव को हराकर फाइनल में प्रवेश कर भारत के लिए पदक पक्का कर लिया था।
सेमीफाइनल में शानदार जीत दर्ज की उन्होंने कजाक पहलवान को चित करके मुकाबले से बाहर कर दिया था। रवि दहिया को विक्ट्री बाय फाॅल रूल से विजेता करार दिया गया। रवि फाइनल में पहुँच गए थे, जहां हार के बावजूद उनका सिल्वर मेडल पक्का हो गया। रवि दहिया ने 57 किलोग्राम कैटेगरी के सेमीफाइनल में कजाकिस्तान के नूर इस्लाम सनायेव को पटखनी दी थी। रवि ने नूर इस्लाम को जब चित किया उस समय में वे 2 -9 से पीछे थे और आधिकारिक स्कोर भी 2-9 ही रहा लेकिन विरोधी को चित करने की वजह से उन्हें जीत मिली।
भारतीय रेसलर रवि कुमार
दहिया का जन्म हरियाणा के
सोनीपत जिला के नाहरी गाँव में
सन 1998 में 12 दिसंबर को हुआ
था। रवि कुमार दहिया के घर की
आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं
थी परंतु रेसलिंग को लेकर इनके
अंदर काफी जुनून था और इसीलिए
इन्होंने कड़े संघर्षों को पार करते
हुए सफलता की गाथा लिखी।
रवि कुमार खेल जीवन
दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम से रवि कुमार दहिया ने रेसलिंग की ट्रेनिंग ली है। रवि कुमार दहिया ने अपना डेब्यू 22 साल की उम्र में किया था। उन्होंने अपना पहला मैच वल्र्ड चैंपियनशिप में खेला था और उस मैच में रवि कुमार दहिया ने ईरान के खिलाड़ी औरआयोजित हुई अंडर 23 वल्र्ड चैंपियनशिप में भी रवि कुमार दहिया ने सिल्वर मेडल अपने नाम किया।
इसके अलावा सीनियर नेशनल में भी रवि कुमार ने सेकंड पोजीशन हासिल की थी। इतनी मंजिल हासिल करने के बाद 57 किलोग्राम वर्ग में रवि कुमार दहिया ने अपने आप को एक खिलाड़ी के तौर पर सेटल कर लिया था। रवि कुमार दहिया ने सीनियर रेसलर खिलाड़ी उत्कर्ष काले और संदीप तोमर को भी मात दी थी, जिसके कारण उन्हें टोक्यो ओलंपिक में जाने का मौका मिला था।
पहलवान बजरंग पूनिया
बजरंग पूनिया टोक्यो ओलंपिक में 65 किलोवर्ग फ्री स्टाइल कुश्ती के सेमीफाइनल में भले हार गए हों लेकिन उम्मीद के मुताबिक ही वे ओलंपिक में मेडल हासिल करने में कामयाब रहे। काँस्य पदक के लिए हुए मैच में इन्होंने 8-0 से जीत हासिल की और कांस्य पदक अपने नाम कर भारत को गौरवान्वित किया।
हरियाणा के झज्जर जिले के कुडन गाँव में मिट्टी के अखाड़ों में पूनिया ने सात साल की उम्र में जाना शुरू कर दिया था
उनके पिता भी पहलवानी करते थे लिहाजा घर वालों ने रोक टोक नहीं की। कुश्ती खेल के प्रति उनकी प्रतिबद्धता तब बढ़ गई जब उनकी मुलाकात योगेश्वर दत्त से हुई। बजरंग पूनिया ने योगेश्वर दत्त को अपना माॅडल, गाइड और दोस्त सब बना लिया था। 2012 के लंदन ओलंपिक में योगेश्वर दत्त की कामयाबी ने उनमें भी यह भाव भरा कि वे ओलंपिक मेडल हासिल कर सकते हैं।
बजरंग का खेल जीवन
साल 2013 में एशियन रेसलिंग चैंपियनशिप में बजरंग पूनिया ने पार्टिसिपेट किया था। यह चैंपियनशिप ल्ली में हुई थी, इसमें बजरंग पूनिया सेमीफाइनल तक पहुँचने में सफल हुए
थे, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद साल 2013 में ही वल्र्ड कुश्ती चैंपियनशिप बुड़ा पेस्ट, हंगरी में बजरंग पूनिया ने 60 किलोग्राम वर्ग की कैटेगरी में अपने नाम कांस्य पदक हासिल किया था। इसके बाद आगे बढ़ते हुए साल 2014 में राष्ट्रमंडल खेल, ग्लास्गो जो कि स्काॅटलैंड में आयोजित हुआ था, वहाँ पर 61 किलोग्राम वर्ग की कैटेगरी में बजरंग पूनिया ने गोल्ड मेडल हासिल किया था।
दक्षिण कोरिया में आयोजित हुए एशियाई खेल में बजरंग पूनिया ने फिर से अपने नाम गोल्ड मेडल प्राप्त किया था, वहीं साल 2017 में दिल्ली में आयोजित हुए एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में बजरंग पूनिया ने एक बार फिर से गोल्ड मेडल पर हाथ साफ किया था। इसके बाद आगे बढ़ते हुए साल 2018 में राष्ट्रमंडल खेल में फिर से बजरंग पूनिया ने गोल्ड मेडल जीता। और इसी वर्ष 2021 में ही बजरंग पूनिया ने एक बार फिर से एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता। इस प्रकार पहलवान बजरंग पूनिया ने अभी तक 3 ब्राॅन्ज मेडल, 4 सिल्वर मेडल और 5 गोल्ड मेडल अलग-अलग गेम्स में जीते हैं।
स्टार शटलर पीवी सिंधु
पीवी सिंधु ने टोक्यो ओलंपिक 2020 में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया है। इससे पहले साल 2016 में रियो ओलंपिक में रजत पदक जीता था। इसके साथ ही पीवी सिंधु दो ओलंपिक पदक जीतने वाली एकमात्र भारतीय महिला एथलीट बन गई हैं।
पुसरला वेंकट सिंधु 21वीं सदी की सबसे प्रसिद्ध भारतीय बैडमिंटन स्टार हैं। पीवी सिंधु बीडब्ल्यूएफ विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक और ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। पीवी सिंधु का जन्म 5 जुलाई, 1995 को आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद में हुआ था। उनके माता-पिता राष्ट्रीय स्तर के वाॅलीबाॅल खिलाड़ी थे। उनके पिता पीवी रमाना ने 1986 के सिओल एशियाई खेलों में काँस्य पदक जीता था। भले ही उनके माता-पिता वाॅलीबाॅल खिलाड़ी रहे हों लेकिन बैडमिंटन में पुलेला गोपीचंद के प्रदर्शन
को देखकर पीवी सिंधु ने अपने हाथ में बैडमिंटन थाम लिया और आठ साल की उम्र में ही वो इस खेल को नियमित रूप से खेलने लगीं थी।
सम्मान
24 सितंबर 2013 को इनके बैटमिंटन में जबरदस्त प्रदर्शन के लिए भारत सरकार की तरफ से अर्जुन पुरस्कार दिया गया।
मार्च 2015 में सिंधु को भारत का चैथा सबसे बड़ा पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
सिंधु को 29 अगस्त 2016 को भारत का सबसे बड़ा खेल पुरस्कार राजीव गाँधी (अब मेजर ध्यान चन्द) खेल रत्न पुरस्कार प्राप्त हुआ।
जनवरी 2020 में भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान, पद्म भूषण पुरस्कार से सिंधु को सम्मानित किया गया।
बाॅक्सर लवलीना बोरगोहेन
असम के गोलाघाट के बाड़ो- मुखिया गाँव में जन्मीं लवलीना ने टोक्यो ओलंपिक्स मे 69 किलोग्राम वजन में काँस्यपदक जीता है। केवल तीसरी भारतीय बाॅक्सर, जो यह उपलब्धि हासिल कर सकीं। उनसे पहले विजेंदर सिंह और मैरीकाॅम को ओलंपिक्स के पोडियम पर चढ़ने का मौका मिला था।
24 साल की लवलीना बोरगोहेन भारत की पूर्वोत्तर राज्य असम की रहने वाली हैं। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1997 को असम के गोलाघाट में हुआ था। उनके पिता का नाम टिकेन बोरगोहेन माता का नाम ममोनी बोरगोहेन है। लवलीना की दो बड़ी बहन भी है, जो कि जुड़वां है।
उनकी बड़ी बहन ने किक बाॅक्सिंग मअपना करियर बनाना चाहा, लेकिन किसी कारण से वह उसे आगे नहीं बढ़ा सकी। वहीं लवलीना ने अपनी बड़ी बहन के नक्शेकदम पर चलते हुए किक बाॅक्सिंग की शुरुआत की, लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने मुक्केबाजी की ओर अपना रूख मोड़ लिया।
सम्मान
वर्ष 2006 में लवलीना बोरगोहेन को अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस पुरस्कार को हासिल करने वाली वे असम की छठी खिलाड़ी हैं।
फरवरी 2018 में हुए अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी चैंपियनशिप में वेल्टरवेट श्रेणी में स्वर्ण पदक जीता।
जून 2018 में उन्होंने मंगोलिया में रजत पदक जीता।
सितंबर 2018 में पोलैंड में कांस्य पदक अपने नाम किया।
एशिया ओलंपिक qualifier मुक्केबाजी टूर्नामेंट मार्च 2020 में इन्होंने मुफतुनाखोन मेलिएवा पर 5-0 से जीत हासिल की और 69 ज्ञहण् महिला श्रेणी में अपनी ओलंपिक बर्थ सुनिश्चित की।
वर्ष 2021 में दुबई में आयोजित की गई एशियाई चैंपियनशिप में उन्होंने कास्य पदक हासिल किया।
वेटलिफ्टर साईखोम मीराबाई चानू
मीराबाई ने स्नैच में 87 किलो, जबकि क्लीन एंड जर्क में 115 किलो का भार उठाया और कुल 202 किलोग्राम का भार उठाया। इसके साथ ही वह टोक्यो 2020 में पदक जीतने वाली पहली जबकि ओलंपिक के इतिहास में वेटलिफ्टिंग में मेडल जीतने वाली दूसरी भारतीय बन गई हैं।
इम्फाल के एक गाँव नोंगपोक काकचिंग में एक सामान्य परिवार में जन्मी छह भाई-बहनों में सबसे छोटी चानू को अपनी लिफ्टिंग की ताकत का पहली बार अंदाजा 12 साल की उम्र में हुआ। एक बार उनसे चार साल बड़ा भाई जलाने वाली लकड़ी का गट्ठर उठाने की कोशिश कर रहा था, जो कि भारी होने की वजह से उनसे नहीं उठा। तब उन्होंने कोशिश की और इसे आसानी से उठा लिया। इसी के बाद उन्हें अपनी शक्ति का अंदाजा हुआ।
हमेशा से खेलों में दिलचस्पी रखने वाली मीराबाई चानू वेटलिफ्टिंग को चुनने से पहले करियर की शुरुआत में इंफाल के एक स्थानीय स्पोर्ट्स हाॅल में तीरंदाजी करना सीखना चाहती थीं। लेकिन जलाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ी के गट्ठर को उठाने की क्षमता ने उनके करियर को एक नया मोड़ दे दिया। यह खेल मानो उनके खून में था। उन्होंने भारत की सबसे सफल महिला वेटलिफ्टर कुंजरानी देवी की उपलब्धियों से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना शुरू कर दिया।
अपने आदर्श को हराया मीराबाई चानू ने साल 2014 में हुए ग्लासगो काॅमनवेल्थ गेम्स में भारत के लिए सिल्वर मेडल जीता। इस कैटेगरी का गोल्ड भी भारत के खाते में ही आया था। 2016 के रियो ओलंपिक गेम्स के क्वालीफाई मैच में मीराबाई चानू ने अपनी आदर्श वेटलिफ्टर कुंजरानी को हराकर रियो ओलंपिक गेम्स में जगह बनाई थी।
यूएसए के अनाहेम में 2017 विश्व भारोत्तोलन चैंपियनशिप में मीराबाई चानू ने दो दशकों बाद गोल्ड मेडल पर कब्जा किया और वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय वेटलिफ्टर बन गईं। सिडनी 2000 की काँस्य पदक विजेता कर्णम मल्लेश्वरी की खिताबी जीत के बाद 1994 और 1995 के बाद 48 किग्रा वर्ग में उनका यह पहला प्रयास था।
इसके बाद उन्होंने 2018 काॅमनवेल्थ गेम्स में भी गोल्ड मेडल पर कब्जा किया। साथ ही इस इवेंट में उन्होंने ‘स्नैच’, ‘क्लीन एंड जर्क’ के अलावा ‘टोटल’ में भी रिकाॅर्ड दर्ज किया। लेकिन पीठ के निचले हिस्से में लगी चोट ने उनके इस शानदार सीजन पर विराम लगा दिया। इसकी वजह से चानू 2018 के एशियाई खेलों और विश्व चैंपियनशिप में नहीं शामिल हो पाईं। और फिर चोट से उबरने में उन्हे करीब एक साल लग गया। इसके बाद 2019 में चानू थाईलैंड में होने वाली विश्व चैंपियनशिप में प्रतिस्पर्धा करने के लिए वापसी की, जहाँ वह चैथे स्थान पर रहीं। लेकिन पटाया के इस इवेंट में उनका प्रदर्शन फिर भी यादगार बन गया, क्योंकि वह अपने करियर में पहली बार 200 किग्रा भार उठाने में सफल रहीं।
भारतीय पुरुष हाॅकी टीम
टोक्यो ओलंपिक मे भारतीय पुरुष हाॅकी टीम ने शानदार खेल दिखाते हुए कांस्य पदक केप्ले-ऑफ में जर्मनी को 5-4 से हरा दिया। भारतीय पुरुष हाॅकी टीम ने 41 साल के अंतराल के बाद ओलंपिक पदक जीता है। भारत के 8 ओलंपिक मेडल में आखिरी 1980 के मास्को खेलों में आया था।
इस ऐतिहासिक जीत के बाद मैदान पर मनप्रीत सिंह के नेतृत्व और ऑस्ट्रेलिआई ग्राहम रीड द्वारा प्रशिक्षित भारतीय टीम के खिलाड़ियों के आँखों में आँसू थे और एक दूसरे को गले लगा रहे थे। यह ओलंपिक के इतिहास में भारत का तीसरा हाॅकी काँस्य पदक है। अन्य दो 1968 मैक्सिको सिटी और 1972 म्यूनिख खेलों में आए थे। 1928 से 1956 तक भारत की पुरुष हाॅकी टीम ने खेल में लगातार छह ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते थे।