राज्य सरकार द्वारा संचालित कोरोना वार्ड में भर्ती एक अध्यापिका सीलिंग फैन को देखते हुए, पढ़ने के लिए किताब उठाने ही वाली थी, तभी उनके फोन की घंटी बजी। वह एक बिना नाम वाला नंबर था। आमतौर पर वह ऐसे काॅल से बचती थी पर अस्पताल में अकेले और कुछ करने के लिए नहीं था इसलिए उन्होंने इस फोन काॅल को जवाब देने का फैसला किया।
स्पष्ट स्वर में एक पुरुष ने अपना परिचय दिया, ”नमस्ते मैडम, मैं सत्येंद्र गोपाल कृष्ण दुबई से बात कर रहा हूँ। क्या मैं vसुश्री सीमा कनकंबरन से बात कर रहा हूँ?“ टीचर यह जानने के लिए उत्सुक थी कि वह कौन थे? उन्होंने कहा, ”हाँ, आप सीमा से बात कर रहे हैं।“
एक विराम के बाद वह बोले, ”कुछ साल पहले मैडम, जब मैं 10 वीं कक्षा vमें था, तब आप मेरी क्लास टीचर थीं।“ टीचर उन्हें नहीं पहचान पा रही थी। उन्होंने कहा ”मैं कोविड के कारण अस्पताल में भर्ती हूँ। अगर कोई जरूरी बात नहीं हो तो आप मुझे बाद में काॅल कर सकते हैं ?“
सत्येंद्र ने कहा, ”मैडम मुझे आपकी बीमारी के बारे में 1995 बैच के टाॅपर सुब्बू से पता चला।“ टीचर ने कहा, ”मैं सुब्बू को अच्छी तरह जानती हूँ, लेकिन मैं आपको नहीं पहचान पा रही हूँ।“
”मैडम,“ सत्येंद्र ने बीच में रोकते हुए कहा, ”आशा है कि आपको वह लंबा काला लड़का याद होगा जो आपका सबसे बड़ा सिरदर्द था। मैं पिछली बेंच पर बैठता था!“ टीचर उस बैक बेंचर्स के बारे में सोचने लगी!
”मैडम,“ सत्येंद्र ने बीच में रोकते हुए कहा, ”आशा है कि आपको वह लंबा काला लड़का याद होगा जो आपका सबसे बड़ा सिरदर्द था। मैं पिछली बेंच पर बैठता था!“ टीचर उस बैक बेंचर्स के बारे में सोचने लगी!
सत्येंद्र ने कहा, ”मैडम, जब मुझे पता चला कि आप अस्पताल में भर्ती हैं, तो मैंने 1995 की कक्षा के सभी उपलब्ध दोस्तों के साथ एक काॅन्फ्रेंस काॅल के बारे में सोचा। मैं, हम में से 7 को इस काॅल पर लाने में सफल रहा। वे हमारी बातचीत सुन रहे हैं, मैडम। हमने सिर्फ आपके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना के लिए फोन किया है।“
मैडम के शब्द अचानक लड़खड़ा गए, एक लंबे विराम के बाद उन्होंने पूछा, ”अब मुझे अपने बारे में बताओ। तुम कहाँ हो?“ सत्येंद्र ने जारी रखा, ”मैडम, मैं दुबई में हूँ, मैं अपना खुद का बिजनेस चलाता हूँ। पहले यहाँ नौकरी की तलाश में आया था पर अंत में एक उद्यमी के रूप में सफल हुआ। मेरी कंपनी में लगभग 2000 लोग हैं। जब हम 10वीं कक्षा में थे, तब अनुशासन के बारे में तो कक्षा में आपका आतंक था। लेकिन आप, हमेशा बड़े दिल से हमारे प्रति उदार भी रहीं और बैक बेंच पर सबसे अधिक शोर करने वाले मुझ जैसे अनुशासनहीन छात्रों पर विश्वास जताया। कक्षा में मैं बैक बेंचर्स का नेता था।
मैडम, मुझे सबसे ज्यादा सजा मिलती थी, अक्सर आप मुझे क्लास के बाहर और कभी क्लास के अंदर, बेंच पर खड़ा कर देती। क्लास के दिनों के इन सभी अनुभवों और कभी-कभी क्लास में सबसे ऊपर,
बेंच पर खड़े होने के अनुभवों ने मुझे जीवन में बहुत मदद की।
इन सजाओं ने वास्तव में मुझे पूरी कक्षा के बारे में एक व्यापक दृष्टिकोण विकसित करने में मदद की। मैं उन्हीं सीखों को अपने जीवन और व्यवसाय में लागू कर रहा हूँ। मैडम, आज मैं जो कुछ भी हूँ, उसके लिए मैं हमेशा आपका ऋणी रहूँगा।“ टीचर को बोलने में कठिनाई हो रही थी। जैसे ही सत्येंद्र ने अपनी कहानी जारी रखी, टीचर अपने विचारों में कुछ दशक पीछे 1995 की कक्षा में चली गई…
…1995 की कक्षा। हाँ कक्षा में सबसे लंबा काला लड़का, वह शैतान बच्चों का नेता था! क्लास में हमेशा देर से आता, क्लास से गायब रहता, पिक्चर देखने चले जाता! वह कभी होमवर्क करके नहीं लाता था। वह जो बार-बार टीचर्स रूम में अपनी सजा कम करने के लिए बात करने आ जाता था। वह शिक्षकों के लिए एक परेशानी बना हुआ था लेकिन कक्षा में बहुत लोकप्रिय था। उसके दोस्त उसे बहुत पसंद करते थे। और वह वहाँ दुबई कैसे पहुँच गया? अचानक टीचर के विचारों में बाधा आ गई थी…
दूसरे छोर से सत्येंद्र से पूछा, ”मैडम, क्या आप सुन पा रही हैं?“ मैडम ने कहाँ, ”हाँ मैं सुन रही हूँ!“ उन्होंने जारी रखा, ”सत्येंद्र, मैंने स्कूल के बाद, तुम्हारे बारे में कभी नहीं सुना। मैं इतनी हैरान और खुश हूँ कि तुमने मुझे फोन किया, वह भी अपने दोस्तों के साथ काॅन्फ्रेंस काॅल पर! मैं तुम सब के बारे में जानना चाहती हूँ।“
ग्रुप काॅल में अन्य छह में से तीन लोग अलग-अलग देशों में इंजीनियर थे। एक दिल्ली में डाॅक्टर, एक शिलांग में पुजारी और अंत में सुब्बू क्लास का टाॅपर था। सुब्बू ने कहा, ”मैडम मैं चार्टर्ड अकाउंटेंट हूँ। मैं सत्येंद्र का मुख्य वित्तीय प्रबंधक हूँ!“ टीचर को विश्वास नहीं हुआ, उसने पूछा ”तुम कैसे?“ उसने कहा, ”हाँ मैडम, सत्येंद्र के साथ जुड़ने से पहले मैं के पी एम जी (ज्ञच्डळ) कंपनी के साथ था। लेकिन, सत्येंद्र के साथ काम करके मैं एक संतुष्ट पेशेवर और एक खुशहाल पारिवारिक जीवन जी रहा हूँ।“
जब तक उनमें से प्रत्येक ने अपनी कहानी सुनाई, तब तक लगभग 40 मिनट हो चुके थे, सत्येंद्र ने लंबी बात के लिए माफी माँगी और अपनी प्रिय शिक्षिका के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की और केरल की अपनी अगली यात्रा के दौरान उनसे मिलने का वादा किया। उस कोविड आइसोलेशन वार्ड में अकेले बैठे हुए, शिक्षिका की आँखों से आँसू छलक पड़े। उनके दिल में खुशी की लहर दौड़ गई और उनकी आँखों से आँसू रुक ही नहीं रहे थे। इस बात ने उन्हें भावविभोर कर दिया था, कि उनके छात्र उन्हें अनुशासन सिखाने व दयावान होने के लिए याद रखते हैं।
वे यह सोच कर भी शुक्रगुजार व खुश थीं, कि उनके सभी छात्र जीवन में सफल एवं सुखी थे। और ना केवल वो छात्र जो स्कूल से ही अच्छा प्रदर्शन करते आए हैं, बल्कि वे बच्चे जो बहुत ही शैतान लगते थे, उन्होंने भी अपने जीवन से शिक्षाएँ लेकर बहुत तरक्की की है।
वे सत्येंद्र के बारे में सोचने लगीं, ”ये लड़का अपने पाठ्यक्रम के बाहर, किताबों से बाहर के, असल जीवन के ज्ञान का प्रयोग कर इतना आगे बढ़ रहा है। बार-बार दण्ड मिलने, आखिरी बेंचपर खड़े होने से, उसे चैकस होने व व्यापक दृष्टिकोण विकसित करने का मौका मिल गया। कक्षा से गायब रहने पर पकड़े जाने से, उसने बहुत कम उम्र में जोखिमों को कम करना और दूर करना सीख लिया। दोपहर के भोजन के समय शिक्षक कक्ष में आकर अपनी सजा को कम करने की बातचीत के दौरान उसने समझौते की कला हासिल की। जो रिश्ते उसने उस समय बनाए थे, वे आज भी इतने मजबूत हैं और लगता है कि उसने गणित में जो अंक गँवाए थे, वह उसने वास्तविक जीवन के अनुभव के लिए बचा रखे थे! और सुब्बू ने गणित में जो 100ः अंक प्राप्त किए थे, वह अब सत्येंद्र द्वारा बचाये गए नंबरों पर काम कर रहा है। अद्भुत!“
ज्ञान बोधः हमें और भी सत्येंद्र और सुब्बू जैसों की जरूरत है। तभी समाज का विकास होगा। तभी यह धारणा विकसित होगी, कि शिक्षा केवल कक्षा की चार दीवारी में, केवल किताबों से नहीं मिलती। शिक्षा एक प्रक्रिया है, जहाँ ‘10ः हम स्कूल में सीखते हैं, 20ः साथियों से, और 70ः जीवन की राह पर।’
केतन शर्मा