भारत के प्राचीन ऋषि मनीषियों ने लम्बी साधना एवं गहन अध्ययन के द्वारा शरीर को स्वस्थ एवं दीर्घायु रखने के लिये विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों को विकसित किया। उनमें से ‘‘मुद्रा विज्ञान’’ एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमें हाथों की अँगुलियों व अँगूठे के उपयोग के द्वारा ही चिकित्सा का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। चिकित्सा पद्धति में हठ योग के आसन, प्राणायाम एवं बंध की कुछ जानकारी अधिकांश लोगों को है परन्तु मुद्राओं की जानकारी एवं उनके अद्भुत प्रभाव से अधिकांश जन अपरिचित हैं। आइए, कुछ मुद्राएँ और उनके प्रभाव से परिचित होते हैं
विभागश :
1. श्वास लेते हुए दोनों हाथ बाजू में उठाकर, बाहर की ओर श्वास छोड़ना।
2. कंधे से हाथ को घुमाते हुए हथेलियाँ आकाश की ओर करना।
3. दोनों हाथों को ऊपर ले जाकर हथेलियाँ आपस में मिलाकर, सिर के ऊपर नमस्कार की स्थिति बनाना। (चित्र क्रमांक 1)
4. अंगुलियाँ आपस में फँसाकर हथेलियाँ आकाश की ओर करके पूर्ण स्थिति में आना।
5. पुनः 3 की स्थिति में आना।
6. पुनः 2 की स्थिति में आना।
7. पुनः 1 की स्थिति में आना।
8. समस्थिति में आना।
विशेष –
पूर्व में, पूर्ण स्थिति विभागशः 3 तक ही थी। परन्तु इसमें पूर्ण स्थिति में रुकने पर हाथों में खिंचाव कम हो जाता था। इसलिए क्रमांक 4 की स्थिति को पूर्ण स्थिति में जोड़ा है। (चित्र क्रमांक 2)
परिणाम –
दोनों पैरां की एड़ियों व पंजों पर समान भार डालकर खड़े होने की उचित स्थिति का अभ्यास करने के लिए यह आसन उपयोगी है। ताड़ासन में नितम्ब संकुचित किये जाते हैं व पेट अंदर खींचा जाता है, जिससे शरीर में हल्केपन का अनुभव होता है व मन में स्फूर्ति प्रती है। सम्पूर्ण शरीर को तानने से मेरुदण्ड में मजबूती आती है और ऊँचाई बढ़ती है।
श्रीवर्धन
लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक हैं।
साथ ही योग, प्राणायाम, एक्यूप्रेशर एवं मुद्रा विज्ञान
के सिद्धहस्त एवं अभिनव शोधकर्ता भी हैं।