एक व्यक्ति अपने गुरु के पास गया और बोला, गुरुदेव, दुख से छूटने का कोई उपाय बताइए। शिष्य ने थोड़े शब्दों में बहुत बड़ा प्रश्न किया था। दुखों की दुनिया में जीना लेकिन उसी से मुक्ति का उपाय भी ढूँढ़ना! बहुत मुश्किल प्रश्न था।
गुरु ने कहा, एक काम करो, जो आदमी सबसे सुखी है, उसके पहने हुए जूते लेकर आओ। फिर मैं तुझे दुख से छूटने का उपाय बता दूँगा।
शिष्य चला गया। एक घर में जाकर पूछा, भाई, तुम तो बहुत सुखी लगते हो। अपने जूते सिर्फ आज के लिए मुझे दे दो।
उसने कहा, कमाल करते हो भाई! मेरा पड़ोसी इतना बदमाश है कि क्या कहूँ? ऐसी स्थिति में मैं सुखी कैसे रह सकता हूँ? मैं तो बहुत दुखी इंसान हूँ।
वह दूसरे घर गया। दूसरा बोला, अब क्या कहूँ भाई? सुख की तो बात ही मत करो। मैं तो पत्नी की वजह से बहुत परेशान हूँ। ऐसी जिंदगी बिताने से तो अच्छा है कि कहीं जाकर साधु बन जाऊँ। सुखी आदमी देखना चाहते हो तो किसी और घर जाओ।
वह तीसरे घर गया, चौथे घर गया। किसी की पत्नी के पास गया तो वह पति को क्रूर बताती, पति के पास गया तो वह पत्नी को दोषी कहता। पिता के पास गया तो वह पुत्र को बदमाश बताता। पुत्र के पास गया तो पिता की वजह से खुद को दुखी बताता। सैकड़ों- हजारों घरों के चक्कर लगा आया।
शाम को वह गुरु के पास आया और बोला, मैं तो घूमते-घूमते परेशान हो गया। न तो कोई सुखी मिला और न सुखी आदमी के जूते।
गुरु ने पूछा, लोग क्यों दुखी हैं? उन्हें किस बात का दुख है?
उसने कहा, किसी का पड़ोसी खराब है। कोई पत्नी से परेशान, कोई पति से दुखी तो कोई पुत्र से परेशान है। आज हर आदमी दूसरे आदमी के कारण दुख भोग रहा है।
गुरु ने बताया, सुख का सूत्र है- दूसरे की ओर नहीं, बल्कि अपनी ओर देखो। खुद में झाँको। खुद की काबिलियत पर गौर करो। प्रतिस्पर्द्धा करनी है तो खुद से करो, दूसरों से नहीं। जीवन तुम्हारी यात्रा है। दूसरों को देखकर अपने रास्ते मत बदलो। खुद को सुनो, खुद को देखो। यही सुख का सूत्र है।
शिष्य बोला, महाराज, बात तो आपकी सत्य है लेकिन यही आप मुझे सुबह भी बता सकते थे। फिर इतनी परिक्रमा क्यों करवाई ?
गुरु ने कहा, वत्स, सत्य दुष्पाच्य होता है। वह सीधा नहीं पचता। अगर यह बात मैं सुबह बता देता तो तू हर्गिज नहीं मानता। जब स्वयं ने अनुभव कर लिया, सबकी परिक्रमा कर ली, सबके चक्कर लगा लिए, तो बात समझ में आ गई। अब ये बात तुम पूरे जीवन में नहीं भूलोगे।
ज्ञान बोधः जीवन तुम्हारी यात्रा है। दूसरों को देखकर अपने रास्ते मत बदलो।
ज्योत्सना मेहता