समुत्कर्ष समिति द्वारा ‘‘असत्य पर सत्य की विजय का पर्वः विजयादशमी’’ विषय पर 91वीं समुत्कर्ष विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। समुत्कर्ष समिति के समाज जागरण के आॅनलाइन प्रकल्प समुत्कर्ष विचार गोष्ठी में अपने विचार रखते हुए वक्ताओं का कहना था कि रावण को हर वर्ष जलाना अन्याय पर न्यायवादी जीत का प्रतीक है और सन्देश भी कि जब जब पृथ्वी पर अन्याय होगा हमारा समस्त सांस्कृतिक सामथ्र्य उसके विरुद्ध रहेगा। अपने देश में आज भी आसुरी शक्तियाँ सक्रिय हैं जो देशविरोधी गतिविधियाँ चला रही हैं। इन सभी प्रकार की शक्तियों का विनाश करने के लिए प्रत्येक देशवासी को अपने अंदर की बुद्धि, भावना एवं शक्ति को केंद्रित करना होगा ताकि अपने समाज और देश को सुखी, वैभवशाली और विजयी जीवन प्राप्त हो सके। विजयदशमी के पर्व से विजय की अदम्य प्रेरणा उत्पन्न होती है।
विषय को विस्तार देते हुए शिक्षाविद दर्शना शर्मा ने कहा कि आश्विन शुक्ला दशमी को मनाये जाने वाले इस विजय पर्व के पीछे श्रीराम द्वारा ये केवल रावण का मर्दन मात्र नहीं था बल्कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा व चोरी जैसे इन दस शैतानों का संहार था, जिसने रावण की बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया था। आज हमारे समाज में राम और रावण दोनों विद्यमान है। ये सही है कि बदलते दौर में रावण रूप बदल कर हमारे बीच अनाचार, जातिवाद, अलगाववाद व भ्रष्टाचार के रूप में मौजूद है। आज के संदर्भ में रावण के कागज के पुतले को फूँकने की आवश्यकता नहीं है बल्कि हमारे मन में बैठे उस रावण को मारने की जरूरत है, जो दूसरों की प्रसन्नता देखकर ईष्र्या की अग्नि से दहक उठता है, हमारी उस दृष्टि में रचे-बसे रावण का संहार जरूरी है, जो स्त्रियों व बेटियों को दूषित दृष्टि से देखता है।
साहित्यकार तरुण कुमार दाधीच ने इस अवसर पर बताया कि भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिए इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। इसी दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है। प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है।
सामाजिक कार्यकर्ता भेरुलाल वडेरा का कहना था कि विजयादशमी पर्व को मनाने के पीछे कई धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक कारण जुड़े हुए हैं। लेकिन, इनमें दो कारण एक तो इस दिन भगवान श्रीराम के द्वारा दैत्यराज रावण का वध करना और दूसरा शक्ति की आराध्य देवी माँ दुर्गा द्वारा आतंकी महिषासुर का मर्दन करना जनमानस में अत्यधिक प्रचलित है। इस दिन हिन्दू समाज में अस्त्र-शस्त्र का पूजन करने की भी परंपरा है। इसके पीछे भी तथ्य है- भारतीय संस्कृति सदा ही वीरता, शौर्य व शक्ति की पूजक व समर्थक रही है। शक्ति के बिना विजय की कामना करना असंभव है।
विद्यासागर ने कहा कि इस पावन प्रसंग पर हमें इस बात के लिए दृढ़ संकल्पित होना होगा कि अपने मन, वाणी और व्यवहारों में अंतर्निहित आसुरी प्रवृत्तियों का परिष्कार करें एवं उसके स्थान पर पवित्रता की देवी को प्रतिष्ठित करें। विजयदशमी का पर्व विजय का प्रतीक है। पूरे देश के अंतःकरण में विजय की आकांक्षा जगाने और उसे पूर्ण करने के लिए समाज की सुसंगठित शक्ति खड़ी करने तथा उसके लिए कटिबद्ध होकर खड़े होने का संदेश देने वाला यह दिवस है।
इस अवसर पर जगदीश चैबीसा काव्य का पाठ किया और गोपाल लाल माली, डाॅ. किशन माली ने अपने विचार व्यक्त किए। विषय का प्रवर्तन हरिदत्त शर्मा ने किया। समुत्कर्ष पत्रिका के उपसंपादक गोविन्द शर्मा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए आभार प्रदर्शन किया। संचालन शिक्षाविद् शिवशंकर खण्डेलवाल ने किया। इस ऑनलाइन विचार गोष्ठी में अभिषेक मेहता, तरुण शर्मा, वीणा जोशी, राजेश गोराणा, सीमा गुप्ता, लोकेश जोशी, वंदना जैन, अंजलि कोठारी, अनिल भाटी, निर्मला मेनारिया, करन सिंह, कविता तथा राम मोहन शर्मा भी सम्मिलित हुए।
शिवशंकर खण्डेलवाल