श्री कृष्ण ने मनुष्य जाति को न केवल नया जीवन-दर्शन दिया वरन जीवन जीने की शैली भी सिखाई। उनकी जीवन-कथा भले चमत्कारों से भरी पड़ी है, लेकिन वे हमें जितने अपने करीब लगते हैं उतना और कोई नहीं। वे ईश्वर हैं पर उससे भी पहले सफल, गुणवान और दिव्य मनुष्य हैं। ईश्वर होते हुए भी सबसे ज्यादा मानवीय लगते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण को मानवीय भावनाओं, इच्छाओं और कलाओं का प्रतीक माना गया है। ये बात उद्धृत करते हुए प्रखर वक्ता, सुप्रसिद्ध विचारक, 25 से अधिक पुस्तकों के लेखक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक तथा प्रताप गौरव केंद्र के शिल्पी ओमप्रकाश जी ने कहा कि ‘भगवान श्रीकृष्ण सनातन, अविनाशी, सर्वलोक स्वरूप, नित्य शासक, रणधीर एवं अविचल हैं। भीष्म पितामह की इस मान्यता के बाद द्रौपदी का यह कथन कि हे सच्चिदानन्द-स्वरूप श्रीकृष्ण! महायोगिन विश्वात्मन! गोविन्द! कौरवों के बीच कष्ट पाती हुई मुझ शरणागत अबला की रक्षा कीजिए, श्रीकृष्ण के सर्वमान्य एवं सर्वव्यापी चरित्र की एक झलक मात्र प्रस्तुत करता है। सम्पूर्ण भारतीय वाङ्मय में ऐसा बहुआयामी तथा लोकरंजक चरित्र दूसरा नहीं है।
समुत्कर्ष समिति द्वारा आयोजित ‘क्रांतिचेता श्रीकृष्ण का प्रेरणादायक व्यक्तित्व’ विषयक समुत्कर्ष चैरिटी व्याख्यान माला के प्रथम सत्र में बोलते हुए उन्होंने कहा कि विश्वरूप श्रीकृष्ण में वह सब है जो समस्त प्रकृति अथवा मनुष्य के प्रज्ञान में संचित है। ज्ञेय अथवा अज्ञेय स्वरूप के सम्पूर्ण व्याख्यान की क्षमता बेचारे मनुष्य में कहाँ है। वह अपनी जिज्ञासा के अनुसार उस विश्वव्यापी चरित्र का एक नन्हा आयाम ही देख पाया है।
श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व एवं कृतित्व बहुआयामी एवं बहुरंगी है, यानी बुद्धिमत्ता, चातुर्य, युद्धनीति, आकर्षण, प्रेमभाव, गुरुत्व, सुख, दुख और न जाने और क्या-क्या? एक भक्त के लिए श्रीकृष्ण भगवान तो हैं ही, साथ में वे जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं। उन्होंने अपने व्यक्तित्व की विविध विशेषताओं से भारतीय-संस्कृति में महानायक का पद प्राप्त किया। एक ओर वे राजनीति के ज्ञाता, तो दूसरी ओर दर्शन के प्रकांड पंडित थे। धार्मिक जगत् में भी नेतृत्व करते हुए ज्ञान-कर्म-भक्ति का समन्वयवादी धर्म उन्होंने प्रवर्तित किया। अपनी योग्यताओं के आधार पर वे युगपुरुष थे, जो आगे चलकर युगावतार के रूप में स्वीकृत हुए। इसीलिए हम उनका क्रांतिचेता श्रीकृष्ण के रूप में स्मरण करते हैं।
श्रीकृष्ण के लीला प्रसंगों का उल्लेख करते हुए ओमप्रकाश जी ने कहा कि श्रीकृष्ण का जीवन दो छोरों में बंधा है। एक ओर बाँसुरी है, जिसमें सृजन का संगीत है, आनंद है, अमृत है और रास है। तो दूसरी ओर शंख है, जिसमें युद्ध की वेदना है, गरल है तथा निरसता है। ये विरोधाभास ये समझाते हैं कि सुख है तो दुःख भी है। यशोदा नंदन की कथा किसी द्वापर की कथा नही है, किसी ईश्वर का आख्यान नहीं है और ना ही किसी अवतार की लीला। वो तो यमुना के मैदान में बसने वाली भावात्मक रुह की पहचान है। वे यशोदा का नटखट लाल है तो कहीं द्रोपदी का रक्षक, गोपियों का मनमोहन तो कहीं सुदामा का मित्र। हर रिश्ते में रंगे कृष्ण का जीवन नवरस में समाया हुआ है।
समुत्कर्ष समिति द्वारा संस्कृति संरक्षण और समाज प्रबोधन के क्रम में अटल बिहारी वाजपेयी सभागार पर पंचम समुत्कर्ष चैरिटी व्याख्यान माला क्रांतिचेता श्रीकृष्ण का प्रेरणादायक व्यक्तित्व का आयोजन किया गया। व्याख्यान माला की अध्यक्षता समुत्कर्ष समिति के अध्यक्ष संजय कोठारी ने की। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि महापौर गोविंद सिंह टाक तथा नेशनल करियर अकादमी के निदेशक प्रीतम सिंह गुर्जर थे। समुत्कर्ष पत्रिका के सम्पादक वैद्य रामेश्वर प्रसाद तथा उपसंपादक गोविन्द शर्मा के साथ समुत्कर्ष समिति के सचिव विनोद चपलोत भी मंच पर उपस्थित थे।
समुत्कर्ष समिति द्वारा संचालित विभिन्न प्रकल्पों का विषद् परिचय परामर्शद् तरुण शर्मा ने कराया। स्वागत एवं परिचय का उत्तरदायित्व समुत्कर्ष समिति सचिव विनोद चपलोत ने पूर्ण किया। इस अवसर पर अतिथियों द्वारा सामाजिक, सांस्कृतिक एवं पारिवारिक पत्रिका समुत्कर्ष के पिच्चासीवें अंक ‘क्रांतिचेता श्रीकृष्ण’ का लोकार्पण भी किया गया। प्रथम सत्र के व्याख्यान से पूर्व प्रेरक भजन ‘रे मन कृष्ण नाम कही लीजे…’ ख्यात गायक नरेन्द्र वर्मा ने प्रस्तुत किया।
द्वितीय सत्र का आरम्भ कुशल सिकलीगर के मधुर ओजपूर्ण भजन ‘अँखियाँ हरि दर्शन की प्यासी…’ से हुआ। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वक्ता, विचारक एवं लेखक ओमप्रकाश जी ने कहा कि नटवरनागर श्रीकृष्ण उस संर्पूणता के परिचायक हैं जिसमें मनुष्य, देवता, योगीराज तथा संत आदि सभी के गुण समाहित है। समस्त शक्तियों के अधिपति युवा कृष्ण महाभारत में कर्म पर ही विश्वास करते हैं। कृष्ण का मानवीय रूप महाभारत काल में स्पष्ट दिखाई देता है। गोकुल का ग्वाला, बिरज का कान्हा धर्म की रक्षा के लिए रिश्तों के मायाजाल से दूर मोह-माया के बंधनों से अलग है। कंस हो या कौरव पांडव, दोनो ही निकट के रिश्ते फिर भी कृष्ण ने इस बात का उदाहरण प्रस्तुत किया कि धर्म की रक्षा के लिए रिश्तों की बजाय कर्तव्य को महत्व देना आवश्यक है। ये कहना अतिशयोक्ति न होगी कि कर्म प्रधान गीता के उपदेशों को यदि हम व्यवहार में अपना लें तो हम सब की चेतना भी कृष्ण सम विकसित हो सकती है।
ओमप्रकाश जी ने कहा कि श्रीकृष्ण ने उस समाज में आँखें खोलीं जब निरंकुश शक्ति के नशे में चूर सत्ता मानव से दानव बन बैठी थी। सत्ता को कोई चुनौती न दे सके इसलिए दुधमुँहे बच्चे मार दिए जाते थे। खुद श्रीकृष्ण के जन्म की कथा भी ऐसी है। वे जीवित रह सकें इसलिए जन्मते ही माता-पिता की आँखों से दूर कर दिए गए। उस समय के डर से जमे हुए समाज में बालक श्रीकृष्ण ने संवेदना, संघर्ष, प्रतिक्रिया और विरोध के प्राण फूँके। महाभारत का युद्ध तो लगातार चलने वाली लड़ाई का चरम था, जिसे श्रीकृष्ण ने जन्मते ही शुरू कर दिया था। हर युग का समाज हमारे सामने कुछ सवाल रखता है। श्रीकृष्ण ने उन्हीं सवालों का जवाब दिए और तारणहार बने।
श्रीकृष्ण के जीवन घट्य सुनाते हुए ओमप्रकाश जी ने कहा कि अध्यात्म के विराट आकाश में श्रीकृष्ण ही अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जो धर्म की परम गहराइयों व ऊँचाइयों पर जाकर भी न तो गम्भीर ही दिखाई देते हैं और न ही उदासीन दीख पड़ते हैं, अपितु पूर्ण रूप से जीवनी शक्ति से भरपूर व्यक्तित्व हैं। श्रीकृष्ण के चरित्र में नृत्य है, गीत है, प्रीति है, समर्पण है, हास्य है, रास है, और है आवश्यकता पड़ने पर युद्ध को भी स्वीकार कर लेने की मानसिकता। धर्म व सत्य की रक्षा के लिए महायुद्ध का उद्घोष है।
श्रीकृष्ण प्रणीत गीता के सन्दर्भों का उल्लेख करते हुए प्रताप गौरव केंद्र के शिल्पी ओमप्रकाश जी ने कहा कि परिवर्तन संसार का नियम है। यहाँ सब बदलता रहता है। इसलिए सुख दुःख, लाभ-हानि, जय-पराजय, मान-अपमान आदि में भेदों में एक भाव में स्थित रहकर हम जीवन का आनंद ले सकते हैं। नाम, पद, प्रतिष्ठा, संप्रदाय, धर्म, स्त्री पुरुष हम नहीं हैं और न यह शरीर हम है। ये शरीर अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जाएगा लेकिन आत्मा स्थिर है और हम आत्मा हैं। आत्मा कभी न मरती है। न इसका जन्म है और न मृत्यु! श्रीकृष्ण के अनुसार आत्मभाव में रहना ही मुक्ति है। क्रांतिचेता श्रीकृष्ण एक ऐसा आदर्श चरित्र है जो अर्जुन की मानसिक व्यथा का निदान करते समय एक मनोवैज्ञानिक, कंस जैसे असुर का संहार करते हुए एक धर्मावतार, स्वार्थ पोषित राजनीति का प्रतिकार करते हुए एक आदर्श राजनीतिज्ञ, विश्व मोहिनी बंसी बजैया के रूप में सर्वश्रेष्ठ संगीतज्ञ, बृजवासियों के समक्ष प्रेमावतार, सुदामा के समक्ष एक आदर्श मित्र, सुदर्शन चक्रधारी के रूप में एक योद्धा व सामाजिक क्रान्ति के प्रणेता हैं।
विशिष्ट अतिथि के रुप में बोलते हुए नेशनल करियर अकादमी के प्रीतम सिंह गुर्जर ने समुत्कर्ष समिति के कार्यों का अभिनन्दन करते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण का जीवन अनुकरणीय है। हम लोगों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। भगवान श्री कृष्ण ने पूरी दुनिया को कर्म का संदेश दिया तथा पूरा जीवन इसको साकार करने में समर्पित कर दिया। श्रीकृष्ण ने समाज के सभी वर्गो की लड़ाई लड़ी थी इसलिए उन्हे कर्मयोगी कहा जाता है।
समुत्कर्ष समिति द्वारा आयोजित समुत्कर्ष चैरिटी व्याख्यान माला में शहर के गणमान्य नागरिकों सहित विभिन्न सामजिक, राजनैतिक संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ बड़ी संख्या में मातृशक्ति ने भी सहभाग किया। इस मलिका के श्रोताओं में विभिन्न महाविद्यालयों के युवा भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे।
समुत्कर्ष समिति के अध्यक्ष संजय कोठारी ने सर्व समाजों के आबाल वृद्ध श्रोताओं से खचाखच भरे अटल बिहारी वाजपेयी सभागार में सबका धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन वाणी शिल्पी संदीप आमेटा ने किया।
प्रतिमा सामर