‘गीता’ जीवन प्रबंधन का महानतम दर्शन है। जो व्यक्ति जीवन का प्रबंधन करना सीख लेगा, वह देश-दुनिया का प्रबंधन भी सफलतापूर्वक कर लेगा। अध्यात्म में यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी समाविष्ट कर लिया जाए, तो नए क्षितिज छुए जा सकते हैं। गीता में उपदिष्ट कर्मयोग से बिना रुके, बिना थके और बिना हारे श्रेष्ठतम कर्म किया जा सकता है। मानवीय गुणों का विकास और औरों के गुणों का सही नियोजन करना, गीता की यह सीख ही प्रबंधन का सर्वोपरि सूत्र है। यह बात प्रताप गौरव केन्द्र – राष्ट्रीय तीर्थ के शिल्पी और प्रारूपकार तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री ओमप्रकाश जी ने छठी आॅनलाइन समुत्कर्ष व्याख्यान माला में बोलते हुए कही। उन्होंने अपनी बात का विस्तार करते हुए कहा कि गीता मनुष्य को उसका धर्म बताती है। धर्म का मतलब है समाज में उस की भूमिका किस प्रकार की हो। इस धर्म का पालन करते हुए मनुष्य आगे बढ़े तो व्यक्ति कभी दुखी नहीं होगा। जीवन का आनंद लेने के लिए अपना आचरण शुद्ध करना होगा। यदि हमारा आचरण शुद्ध होगा तो जीवन भी आनंदमय रहेगा।
समुत्कर्ष समिति द्वारा समाज जागरण हेतु विभिन्न विषयों पर व्याख्यान मालाओं का आयोजन किया जाता है। अब तक महाराणा प्रताप, गुरु गोविन्द सिंह, भगिनी निवेदिता, वीर सावरकर और क्रांतिचेता श्रीकृष्ण जैसे विषयों पर समुत्कर्ष व्याख्यान माला का आयोजन किया जा चुका है। इसी कड़ी में कोविड संक्रमण की परिस्थिति को ध्यान रखकर इस बार ‘जीवन प्रबंधन का आधारः श्रीमद्भगवद्गीता‘ विषय पर आॅनलाइन समुत्कर्ष व्याख्यान माला का आयोजन किया गया।
ऐतिहासिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विषयों के मर्मज्ञ वक्ता ओम जी भाई साहब ने कहा कि गीता माहात्म्य पर पद्म पुराण में कहा है कि भवबंधन (जन्म-मरण) से मुक्ति के लिए गीता अकेले ही पर्याप्त ग्रंथ है। आधुनिक जीवन शैली में सामाजिक गठबंधन टूट रहा है। मनुष्य अपने स्व-नियंत्रण में नहीं है। जहाँ-तहाँ क्रोध का साम्राज्य फैला नजर आता है। मनुष्यों को अपनी-अपनी मर्यादाओं व रिश्तों का भान नहीं है। श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते है अर्जुन, गुण दो प्रकार है दैवीय गुण और राक्षसी गुण। मनुष्यों को दैवीय गुणों का आचरण करना चाहिए और राक्षसी गुण वाले मनुष्यों की उपेक्षा करनी चाहिए। श्रीमद्भगवद्गीता से शास्त्र विपरीत आचरण को त्यागने और श्रद्धायुक्त होकर शास्त्रानुकूल आचरणों के लिए प्रेरणा मिलती है।
प्रताप गौरव केन्द्र-राष्ट्रीय तीर्थ के शिल्पी श्री ओमप्रकाश ने बताया कि भगवान कर्तव्य करने में ही हमारा अधिकार बताते हैं, उनके फलों में नहीं। हम कर्मफल के हेतु भी ना बने और कर्मों को करने में भी हमारी आसक्ति ना हो। कर्मफल को प्राप्त करने में हम स्वतंत्र नहीं हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य केवल कर्तव्य कर्म करने में ही स्वतंत्र है, अपने अनुसार फल की प्राप्ति में नहीं। यह कर्म करने का प्रमुख सूत्र है। अतः आसक्ति और ममता का त्याग करके तथा सिद्धि-असिद्धि में सम रहकर प्राप्त कर्तव्य कर्मों को करना चाहिए। गीता में समत्व को ही योग कहा है। मनुष्य में और कोई लक्षण आए या नहीं आए पर समता जीवन में आ जाए तो गीता उसे सिद्ध कह देती है।
25 से अधिक पुस्तकों के लेखक एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार ओमप्रकाश जी ने बोलते हुए संके त किया कि यदि आज हम अपनी मन की विवशता वश, अपने आप को दुर्बल कर अपने देश के लिए समाज के लिए, अपने आप के लिए कुछ नहीं करेंगे तो हम उस विश्व गुरु कहलाने वाले भारत की उसमे रहने वाले समाज के अपयश मे भागीदारी बनेंगे। जो देश कभी सोने की चिड़िया, कभी विश्व गुरु, कहलाता था। जिसे विश्व के पहले विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त है, जिसकी वैदिक संस्कृति पर हमे आज भी गर्व है। हम उसकी अपकीर्ति में क्यांे भागीदारी बने, क्यों ना हम अपने देश के लिए अपने समाज के लिए कर्तव्य करें। परेशानियाँ आएंगी सर्वथा आएंगी परंतु उनका अंत भी होगा। इसलिए हमें उन्हंे सहना है और अपने समाज के लिए अपने देश के लिए कुछ करना है। हमें अपने आप को श्रेष्ठ साबित करना है, हमंे किसी परिस्थिति से व्याकुल नहीं होना है।
व्याख्यान माला के अंत में अपनी बात समेकित करते हुए श्री ओमप्रकाश जी ने बताया कि आधुनिक युग में भले ही गीता के प्रसंग से भिन्न परिस्थिति है। गीता के प्रसंग में जहाँ अर्जुन निवृत्ति की ओर उन्मुख था वहा आज का मानव अत्यधिक प्रवृतिशील है। फिर भी आज का मानव अर्जुन के समान ही एकांगी है। अतः सन्तुलन रखने के लिए उसे भी गीता की उतनी ही आवश्यकता है। गीता में सर्वांग पूर्णतावाद का उपदेश है। उसमें ‘प्रवृत्ति से निवृत्ति नहीं बल्कि प्रवृत्ति में निवृत्ति’ का उपदेश दिया गया है। इसी में व्यक्ति और समाज दोनों का ही कल्याण है। वास्तव में गीता देश-काल से परे है। उससे सभी प्रकार के स्वभाव वालों को शक्ति मिल सकती है। राजा, रंक, सन्त, योद्धा सभी उससे प्रकाश पाकर अपने जीवन का सुव्यवस्थित प्रबन्धन कर सकते हैं।