भारतीय गणना के अनुसार वर्ष भर में पड़ने वाली छह ऋतुओं (वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर) में वसंत को ऋतुराज अर्थात् सभी ऋतुओं का राजा माना गया है। पंचमी से वसंत ऋतु का आगमन हो जाता है, इसलिए यह ऋतु परिवर्तन का दिन भी है। इस दिन से प्राकृतिक सौन्दर्य निखरना शुरू हो जाता है। वसंत पंचमी को विशेष रूप से सरस्वती जयंती के रूप में मनाया जाता है।
वसंत पंचमी के दिन को ‘‘श्री पंचमी’’ के रूप में भी जाना जाता है। इसे बसंत की शुरुआत के रूप में भी मनाया जाता है। विद्या की देवी सरस्वती का जन्म दिवस वसंत पंचमी वसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है। यह पर्व भारत के साथ-साथ पश्चिमोत्तर बांग्लादेश और नेपाल में भी धूमधाम से मनाया जाता है। साथ ही विश्वभर में जहाँ भी भारतीय बसे हैं, इस पर्व को पूरे विधि-विधान से मनाते हैं। यह पर्व माँ शारदे की उपासना और उनकी असीम अनुकम्पा अर्जित करने का भी अवसर है। कहा जाता है कि इस दिन पीले वस्त्र धारण करने चाहिए। इस पर्व के महत्व का वर्णन पुराणों और अनेक धार्मिक ग्रंथों में विस्तारपूर्वक किया गया है। खासतौर से देवी भागवत में उल्लेख मिलता है कि माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संगीत, काव्य, कला, शिल्प, रस, छंद, शब्द शक्ति, जिह्वा को प्राप्त हुई थी।
विश्व में केवल हमारे देश भारत वर्ष में ही छह ऋतुएँ होती हैं जिनके नाम क्रमशः वसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, शरद ऋतु, हेमन्त ऋतु और शिशिर ऋतु अर्थात् पतझड़ हैं। जिनमें से वसंत ऋतु का मौसम सबसे ज्यादा सुहावना होता है और इसीलिए वसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा यानी ऋतुराज भी कहा जाता है क्योंकि इस मौसम में हर जगह धरती पर हरियाली होती है, इसी मौसम में गेहूँ और सरसों की खेती की जाती है और ऐसा लगता है कि गेहूँ के खेतों ने हरे रंग की साड़ी पहनी हो और दूसरी तरफ पीले सरसों के खेत सोने जैसे लगते हैं मानो हर जगह सोना बिखेर दिया गया हो।
इस दिन को बच्चे के जीवन में एक नई शुरुआत के रूप में भी मनाते हैं। परंपरागत रूप से बच्चों को इस दिन पहला शब्द लिखना सिखाया जाता है क्योंकि इस दिन को ज्ञान की देवी की पूजा के साथ एक नई शुरूआत मानी जाती है।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता ।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्दे वःै सदा वन्दिता ।
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्îापहा ।। 1।।
शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम् ।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्îान्धकारापहाम् ।।
हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम् ।
वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम् ।।2।।
वसंत पंचमी पर पीले रंग का महत्व
पीले रंग का इस दिन काफी महत्व होता है। बसंत का रंग होने के कारण पीले रंग को ‘बसंती’ रंग भी कहा जाता है। यह रंग समृद्धि, प्रकाश, ऊर्जा और आशीर्वाद का प्रतीक है। इस कारण लोग पीले रंग के कपड़े पहनते हैं और पीले रंग में पारंपरिक व्यंजनों को बनातें है।
पीला रंग इस बात का द्योतक है कि फसलें पकने वाली हैं इसके अलावा पीला रंग समृद्धि का सूचक भी कहा गया है। इस पर्व के साथ शुरू होने वाली वसंत ऋतु के दौरान फूलों पर बहार आ जाती है, खेतों में सरसों सोने की तहर चमकने लगता है, जौ और गेहूं की बालियां खिल उठती हैं और इधर उधर रंगबिरंगी तितलियां उड़ती दिखने लगती हैं।
पर्व का पौराणिक महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा ने जब संसार को बनाया तो पेड़-पौधों और जीव जन्तु सब कुछ दिख रहा था, लेकिन उन्हें किसी चीज की कमी महसूस हो रही थी। इस कमी को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने कमंडल से जल निकालकर छिड़का तो सुंदर स्त्री के रूप में एक देवी प्रकट हुईं। उनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में पुस्तक थी। तीसरे में माला और चैथा हाथ वर मुद्रा में था। यह देवी थीं माँ सरस्वती। मां सरस्वती ने जब वीणा बजाया तो संसार की हर चीज में स्वर आ गया। इसी से उनका नाम पड़ा देवी सरस्वती। यह दिन था बसंत पंचमी का। तब से देव लोक और मृत्युलोक में माँ सरस्वती की पूजा होने लगी।
विद्यालयों और महाविद्यालयों में इस दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। मंदिरों में भी पूजा का आयोजन इस दिन किया जाता है और इस दौरान विशेष पूजा पंडालों का भी आयोजन किया जाता है। जहाँ पर मां सरस्वती की पूजा की जाती है। क्योंकि मां सरस्वती को विद्या और ज्ञान की देवी माना जाता है। यह पर्व अब समस्त विश्व में हिन्दू त्यौहार के रूप में मनाया जाने लगा है। इसके साथ ही यह पर्व भारत में भी बहुत लोकप्रिय हो गया है। सभी लोग जोकि कला, साहित्य, विज्ञान अथवा किसी अन्य क्षेत्र से भी संबंधित क्यों ना हों इस बसंत पंचमी के पर्व को मनाते हैं।
पर्व की विभिन्न छटाएँ
वसंत पंचमी के दिन श्रद्धालु गंगा तथा अन्य पवित्र नदियों में डुबकी लगाने के बाद माँ सरस्वती की आराधना करते हैं। उत्तराखंड के हरिद्वार और उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में तो श्रद्धालुओं की अच्छी खासी भीड़ रहती है। इस दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु गंगा और संगम के तट पर पूजा अर्चना करने आते हैं। इसके अलावा पंजाब, हरियाणा, उत्तराखण्ड व अन्य राज्यों से श्रद्धालु हिमाचल प्रदेश के तात्पानी में एकत्र होते हैं और वहाँ सल्फर के गर्म झरनों में स्नान करते हैं। इस दिन उत्तर भारत के कई भागों में पीले रंग के पकवान बनाए जाते हैं और लोग पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं। पंजाब में ग्रामीणों को सरसों के पीले खेतों में झूमते तथा पीले रंग की पतंगों को उड़ाते देखा जा सकता है। पश्चिम बंगाल में ढाक की थापों के बीच सरस्वती माता की पूजा की जाती है तो छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में प्रसिद्ध सिख धार्मिक स्थल गुरु-का-लाहौर में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही सिख गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ था।
वसंत पंचमी को नया काम शुरू करें तो सफलता निश्चित
वसंत पंचमी के दिन कोई भी नया काम प्रारम्भ करना भी शुभ माना जाता है। जिन व्यक्तियों को गृह प्रवेश के लिए कोई मुहूर्त ना मिल रहा हो वह इस दिन गृह प्रवेश कर सकते हैं या फिर कोई व्यक्ति अपने नए व्यवसाय को आरम्भ करने के लिए शुभ मुहूर्त को तलाश रहा हो तो वह वसंत पंचमी के दिन अपना नया व्यवसाय आरम्भ कर सकता है। इसी प्रकार अन्य कोई भी कार्य जिनके लिए किसी को कोई उपयुक्त मुहूर्त ना मिल रहा हो तो वह वसंत पंचमी के दिन वह कार्य कर सकता है।