एक गांव में चार भाई रहते थे। उनके पास सैंकड़ों एकड जमीन, आसमान को छूती कई इमारतें, अच्छा खासा बैंक बैलेंस था। बावजूद इसके सभी लालची थे। वे हर प्रकार का जतन करते कि उन्हें और भी धन कहीं से प्राप्त हो जाए और वे रात-दिन इसी चिंता में लगे रहते थे। एक बार गांव में शतचंडी यज्ञ का आयोजन हुआ। उसमें देश के हर कोने से साधु- महात्मा पहुँचे। चारों भाई नियमित रूप से वहाँ जाते। यज्ञ में आहुतियाँ ड़ालते और ईश्वर से प्रार्थना करते कि उनकी इच्छा जल्द पूरी करें। वे जानते थे कि इस आयोजन में पधारे हुए साधु-संत की यदि कृपा हो गई, तो उनकी मनोकामना शीघ्र ही पूरी हो सकती है। वे बारी-बारी से संतों के पास जाते और उनसे धन प्राप्ति के उपाय पूछते। उनका प्रयास रंग लाया और उन्हें एक ऐसे साधु का पता चल ही गया, जो उनकी मनोकामना पूरी कर सकते थे। अब उनकी प्रसन्नता देखते ही बनती थी।
अब वे नियमित रूप से उस साधु की सेवा में उपस्थित होते। उनकी सेवा सुश्रूषा करते और उन्हें प्रसन्न करने की चेष्टा करते। साधु ने प्रसन्न होते हुए उनके पूछा कि वे क्या चाहते हैं। सभी ने अपना मनोरथ कह सुनाया। साधु इस बात को समझ गए थे कि इतना सब कुछ होने के बाद भी उनके मन में धन के प्रति ज्यादा आसक्ति है। उन्होंने चेतावनी देते हुए बतलाया कि उन्हें धन तो मिल जाएगा, लेकिन ज्यादा लालच करने से अहित भी हो सकता है। उन्होंने साधु को आश्वासन दिया कि वे आपकी सीख का पालन करेंगे। साधु ने बतलाया कि आप लोग पूरब दिशा की ओर जाएं। वहाँ आपको रास्ते में चार पहाड मिलेंगे। पहाड़ में गुफा मिलेगी। उसमें प्रवेश करके खुदाई करना, तुम्हें धन अवश्य मिलेगा। चारों ने रास्ते में खाने-पीने का सामान अपने साथ लिया और निकल पड़े। चलते-चलते एक पहाड़ मिला। यहाँ वहाँ भटकने के बाद उन्हें गुफा दिखलाई दी। गुफा के अन्दर जाने के बाद उन्होंने एक स्थान पर खुदाई की। जमीन में तांबा प्राप्त हुआ। सबसे छोटे भाई ने कहा-“बड़े भैया मैं इसी में संतुष्ट हूँ।” इतना कह कर वह वहीं रुक गया। बड़े ने समझाया कि आगे और भी कीमती चीजें मिल सकती है। यदि तू यहीं रुक जाना चाहता है, तो ठीक है। इतना कहकर तीनों भाई आगे बढे। चलते-चलते दूसरा पहाड़ मिला और गुफा भी। तीनों ने अन्दर प्रवेश किया। खुदाई शुरु की। वहाँ चांदी प्राप्त हुई। दूसरे भाई ने अपने बड़े भाई से कहा कि वह इसी से संतुष्ट है। बड़े भाई ने कहा- ‘‘जैसी तुम्हारी मर्जी। हम और आगे जा रहे हैं।’’
अब दो भाई आगे बढे़। चलते-चलते फिर एक पहाड़ मिला और उसमें बनी गुफा भी। दोनों ने अन्दर प्रवेश किया और खुदाई शुरु की। इस बार संयोग से सोने के ढे़र मिले। तीसरे भाई ने कहा-“भैया तांबा और चांदी से तो सोना ठीक रहेगा। बस हम आगे नहीं बढं़ेगे। अपने मंझले भाई की बात सुनकर बड़ा ठहाका मार कर हँसा, फिर बोला-ठीक है छोटे, तुम यहीं रुको। मैं आगे बढ़ता हूँ।’’ छोटे भाई ने समझाया भी कि इतना ही पर्याप्त है। ज्यादा लोभ अब ठीक नहीं।” लेकिन बड़ा मानने से इनकार करते हुए आगे बढ़ गया। काफी दूर जाने के बाद एक पहाड़ मिला और गुफा भी। बड़े भाई ने अन्दर प्रवेश किया और खुदाई शुरु की। उसे वहां हीरा-मोती-पन्ना आदि का अमूल्य जखीरा मिला। मन ही मन प्रसन्न होते हुए उसने सोचा कि तीनों भाई भी उसके साथ होते तो उन्हें भी नायाब खजाना हाथ लगता, लेकिन जिसके भाग्य में जो लिखा-बदा होता है, मिलता है। बहुत सारा असबाब इकठ्ठा कर जब वह गुफा के मुहाने पर पहुँचा तो देखता क्या है कि गुफा का प्रवेश द्वार बंद हो चुका है। उसने खूब रोया-चिल्लाया, लेकिन द्वार नहीं खुला। तभी अन्दर से एक आवाज गूंजी- ज्यादा लोभ का परिणाम तो तुम्हें भुगतना ही पड़ेगा। यह द्वार तभी खुलेगा और जब कोई तुम जैसा बड़ा लोभी धन की तलाश में यहाँ आएगा।
प्रद्युम्न सिंह