चीन में एक बड़ी प्राचीन कथा है कि एक सम्राट के एक ही बेटा था। वह बेटा मृत्यु-शय्या पर पड़ा था। चिकित्सकों ने हार कर कह दिया कि हम कुछ कर न सकेंगे, बचेगा नहीं, बचना असंभव है। बीमारी ऐसी थी कि कोई इलाज नहीं था। एक-दो दिन की बात है, कभी भी मर जाएगा।
तो बाप रात भर जाग कर बैठा रहा। विदा देने की बात ही थी। आँख से आँसू बहते रहे, बैठा रहा। कोई तीन बजे करीब रात को झपकी लग गई बाप को बैठे-बैठे ही।
झपकी लगी तो उसने सपना देखा कि एक बहुत बड़ा साम्राज्य है, जिसका वह मालिक है। उसके बारह बेटे हैं बड़े सुंदर, युवा, कुशल, बुद्धिमान, महारथी, योद्धा! उन जैसा कोई व्यक्ति नहीं संसार में। खूब धन का अंबार है! कोई सीमा नहीं! वह चक्रवर्ती है। सारे जगत पर उसका साम्राज्य है।
ऐसा सपना देख ही रहा था, तभी बेटा मर गया। पत्नी दहाड़ मार कर रो उठी। उसकी आँख खुली। एकदम चौंका। किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया। क्योंकि अभी-अभी एक दूसरा राज्य था, बारह बेटे थे, बड़ा धन था, वह सब चला गया और इधर यह बेटा मर गया।
लेकिन वह ठगा-सा रह गया। उसकी पत्नी ने समझा कि कहीं दिमाग तो खराब नहीं हो गया, क्योंकि बेटे से उसका बड़ा लगाव था। एक आँसू नहीं आ रहा आँख में। बेटा जिंदा था तो रोता था उसके लिए, अब बेटा मर गया तो रो नहीं रहा बाप। पत्नी ने उसे हिलाया और कहा, तुम्हें कुछ हो तो नहीं गया? रोते क्यों नहीं?
उसने कहा, ‘किस-किस के लिए रोऊँ? बारह अभी थे, वे मर गए। बड़ा साम्राज्य था, वह चला गया। उनके लिए रोऊँ कि इसके लिए रोऊँ? अब मैं सोच रहा हूँ कि किस-किस के लिए रोऊँ। जैसे बारह गए, वैसे तेरह गए।’
बात समाप्त हो गई, उसने कहा। वह भी एक सपना था, यह भी एक सपना है। क्योंकि जब उस सपने को देख रहा था तो इस बेटे को बिलकुल भूल गया था। यह राज्य, तुम और बेटा सब भूल गए थे। अब वह सपना टूट गया तो तुम याद आ गए हो। आज रात फिर सो जाऊँगा, फिर तुमको भूल जाऊँगा। तो जो आता-जाता है, अभी है अभी नहीं, अब दोनों ही गए। अब मैं सपने से जागा। अब किसी सपने में ना रहूँ, हो गया बहुत, समय आ गया। फल पक गया, गिरने का वक्त है!
भव्य आमेटा