संघो ददाति सामर्थ्यं सामर्थ्यात् सर्वयोग्यता । योग्यत्वाद य: समुत्कर्षो निरपाय: स सर्वथा ॥
अर्थात् – संगठन से सामर्थ्य आता है, सामर्थ्य से सब प्रकार की योग्यता प्राप्त होती है l योग्यता के द्वारा जो “ समुत्कर्ष “ प्राप्त होता है, वह सर्वथा विघ्न रहित होता है l – यह समुत्कर्ष समिति का पथदर्शक सुभाषित है l
भारतीय परम्परा में हमारी विकास की अवधारणा समुत्कर्ष की है। समुत्कर्ष अर्थात् सम्यक्, संतुलित उत्कर्ष। भौतिक विकास को अभ्युदय तथा आध्यात्मिक विकास को नि:श्रेयस कहा जाता है। अभ्युदय तथा नि:श्रेयस के संतुलित विकास को समुत्कर्ष कहते हैं।
जब व्यक्ति यह मानने लगे कि मेरा ही विस्तारित रुप परिवार, समाज, राष्ट्र, सृष्टि व अन्ततः परमेष्टि है। यह समझने से सब का एकात्म विकास ही सच्चा विकास हो सकता हे यह भी समझ में आता है। एक के शोषण से दूसरे का किया विकास यथार्थ में विनाश को ही निमन्त्रण देता है। अपनी गहन अन्तर्दृष्टि से भारत के ऋषियों ने जिस सत्य को देख लिया था और उस पर आधारित आदर्श व्यवस्था ‘धर्म का मार्ग’ भी समय समय पर प्रशस्त किया था। भारत में इसे धर्म कहा। अभ्युदय व निःश्रेयस का समन्वित, संतुलित तथा समुचित अनुपालन इसे एक शब्द में समुत्कर्ष कहा गया। सम्यक उत्कर्ष अर्थात भौतिक, आर्थिक, बाह्य विकास के साथ ही सबके कल्याण का भी उचित ध्यान यह धर्म की व्यवस्थागत परिभाषा है।
समष्टि आध्यात्मिक स्तर का अर्थ है, समाज के हितके लिए आध्यात्मिक साधना (समष्टि साधना) करने पर प्राप्त हुआ आध्यात्मिक स्तर; जब कि व्यष्टि आध्यात्मिक साधना का अर्थ है, व्यक्तिगत आध्यात्मिक साधना (व्यष्टि साधना) करने पर प्राप्त आध्यात्मिक स्तर । समुत्कर्ष समिति इन दोनों का समन्वय कर भारतीय राष्ट्रीय जीवन का निर्माण होते देखना चाहती है l जहाँ प्रत्येक भारतीय अपने उत्कर्ष की कामना का मार्ग देश – समाज के अभ्युदय के राजमार्ग से जोड़कर प्रशस्त करे l
समुत्कर्ष समिति का स्पष्ट मत है कि भारत का वैश्विक कर्तव्य है – मानव जीवन के प्रकृति पोषक सर्वांगीण विकास हेतु धर्माधारित व्यवस्था की स्थापना कर जगत का मार्गदर्शन करना। समुत्कर्ष समिति इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कटिबद्ध है l इस हेतु समाज और सामान्य जनमानस को तत्पर करने के संस्कार हेतु समुत्कर्ष समिति अपने समस्त क्रियाकलापों का निर्धारण कर रही है l
वर्ष 2001 में स्थापित समुत्कर्ष समिति की गतिविधियों से जुड़े युवकों के ह्रदय में जल रही इसी स्वदेश प्रेम की दिव्य आभा से इसे अल्पावधि में सामाजिक स्वीकार्यता मिलती चली जा रही है l समुत्कर्ष समिति द्वारा प्राथमिक रूप से सेवा कार्यों एवं संस्कृति संरक्षण हेतु बौद्धिक जागरण को माध्यम बनाकर कार्य प्रारम्भ किया गया है l देश के कई राज्यों में पाठकों के मन-मस्तिष्क को आह्लादित कर रही हिंदी मासिक पत्रिका “समुत्कर्ष” इस क्रम में प्रथम कड़ी है l जिसके नियमित अंतराल पर प्रकाशित विशेषांकों को सुधि पाठक अनमोल धरोहर की तरह सहेजे हुए हैं l समुत्कर्ष के लोकप्रिय विशेषांकों में विवेकानन्द, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, मेवाड़, महाराणा प्रताप, गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज तथा भगिनी निवेदिता पर प्रकाशित विशेषांकों के साथ साथ क्रांतिकथा अंक, योग अंक, मातृशक्ति अंक, खेल अंक प्रमुख हैं l समुत्कर्ष पत्रिका में आबाल-वृद्ध परिवार जनों के अनुकूल पठनीय सामग्री होने से यह सम्पूर्ण पारिवारिक पत्रिका बन गई है l
समुत्कर्ष पुस्तक माला के अंतर्गत महापुरुषों के संक्षिप्त जीवन चरित्र को सुरुचिपूर्ण रूप से प्रकाशित किया जाता है l जननायक प्रताप, सवा लाख से एक लडाऊं इस पुस्तक माला के बहुप्रशंसित प्रकाशन हैं l
समुत्कर्ष क्लब के माध्यम से विद्यालय/महाविद्यालय विद्यार्थियों में सांस्कृतिक चेतना का जागरण कर विस्मृत आत्मगौरव का भाव जागरण किया जा रहा है l साथ ही समुत्कर्ष क्लब पर्यावरण चेतना जागरण कर अपने उत्तरदायित्व बोध के केंद्र भी बन रहे हैं l समुत्कर्ष समिति द्वारा युवाओं में देशप्रेम के जागरण हेतु गोष्ठियों तथा रक्तदान के कार्यक्रम किये जा रहे हैं l
समाज प्रबोधन हेतु समुत्कर्ष समिति द्वारा वर्ष 2014 से नियमित रूप से मासिक गोष्ठियों का आयोजन किया जा रहा है l वर्ष में बड़े स्तर पर ‘समुत्कर्ष चैरिटी व्याख्यान माला’ तथा ‘समुत्कर्ष संस्कार माला’ इसी दिशा में समिति के लोक ह्रदय स्पर्शी प्रयास हैं l
समुत्कर्ष समिति के इन संक्षिप्त प्रयासों को आपके साहचर्य एवं सहकार के बिना अपने अभीष्ट तक ले जाना दु:साध्य है l आप समुत्कर्ष समिति द्वारा प्रेरित विभिन्न प्रयासों में से स्वरुचि – प्रकृति के प्रकल्पों से जुड़कर स्वदेश, स्वसंस्कृति संरक्षण के अभियान को प्रखर गति प्रदान कर सकते हैं l