अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति।
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत?
अर्थात् हाड़-माँस के शरीर से आप जितना प्रेम करते हैं उससे आधा भी प्रेम राम से कर ले तो आप भवसागर से पार हो जाएँगे।
तुलसीदास जी
‘‘इस हार से निराश होने की जरूरत नहीं है। यह तो खुश होने की बेला है।
आने वाले समय में बहुत जल्द एक और आजादी की लड़ाई की लहर उठेगी
जो जालिम अंग्रेजी हुकूमत को किनारे लगा देगी।’’
1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बारे में स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारद्ध
‘‘छत्ता तेरे राज में,धक-धक धरती होय।
जित-जित घोड़ा मुख करे, तित-तित फत्ते होय।।’ ’’
महाराज छत्रसाल के लिए प्रसिद्ध कहावत
‘‘भगवान, हमारे निर्माता ने हमारे मष्तिष्क और व्यक्तित्व में असीमित शक्तियां और क्षमताएं दी हैं। ईश्वर की प्रार्थना हमें इन शक्तियों को विकसित करने में मदद करती है।’’
डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम
‘‘मनुष्य नश्वर है . उसी तरह विचार भी नश्वर हैं . एक विचार को प्रचार -प्रसार की ज़रुरत होती है , जैसे कि एक पौधे को पानी की . नहीं तो दोनों मुरझा कर मर जाते हैं ’’
डॉ. बी. आर. अम्बेडकर
‘‘धर्म और व्यावहारिक जीवन अलग नहीं हैं। सन्यास लेना जीवन का परित्याग करना नहीं है। असली भावना सिर्फ अपने लिए काम करने की बजाये देश को अपना परिवार बना मिलजुल कर काम करना है। इसके बाद का कदम मानवता की सेवा करना है और अगला कदम ईश्वर की सेवा करना है।’’
बाल गंगाधर तिलक
‘‘कठिन समय में भी अपने लक्ष्य को मत छोड़िये और विपत्ति को अवसर में बदलिए ’’
धीरूभाई अंबानी
‘‘अच्छे कर्मों से ही आप ईश्वर को पा सकते हैं. अच्छे कर्म करने वालों की ही ईश्वर मदद करता है ’’
गुरु गोविन्द सिंह
‘‘साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।”
अर्थ: इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे।
कबीर दास जी
‘‘हम जो कुछ भी हैं वो हमने आज तक क्या सोचा इस बात का परिणाम है. यदि कोई व्यक्ति बुरी सोच के साथ बोलता या काम करता है, तो उसे कष्ट ही मिलता है. यदि कोई व्यक्ति शुद्ध विचारों के साथ बोलता या काम करता है, तो उसकी परछाई की तरह ख़ुशी उसका साथ कभी नहीं छोड़ती.”
भगवान गौतम बुद्ध
‘‘आँख के बदले में आँख पूरे विश्व को अँधा बना देगी”
महात्मा गाँधी
‘‘हम ये प्रार्थना ना करें कि हमारे ऊपर खतरे न आयें, बल्कि ये करें कि हम उनका सामना करने में निडर रहे”
रबिन्द्रनाथ टैगोर
‘‘अँधेरा चाहे कितना भी घना हो लेकिन एक छोटा सा दीपक अँधेरे को चीरकर प्रकाश फैला देता है वैसे ही जीवन में चाहे कितना भी अँधेरा हो जाये विवेक रूपी प्रकाश अन्धकार को मिटा देता है ’’