माननीय स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी को समर्पित श्रद्धांजलि स्वरूप मेरी एक रचना…
“मुझे चलना अकेला हैं”
आयी अन्तिम ये वेला हैं
लगा अपनों को मेला हैं
चलेगा कौन संग मेरे
मुझे चलना अकेला हैं……
न साथी हैं न कौई साथ
छूंटे हाथों से सारे हाथ
चलेंगे कर्म संग मेरे
ना रत्ती हैं न ठेला हैं, मुझे चलना अकेला हैं….
पीछे हैं बातों का जमघट
अन्तिम रहवास हैं मरघट
अब सोने दो, मुझे सुख से
जीवन भर का थकेला हैं, मुझे चलना अकेला हैं
हैं कई आकण्ठ में डूबें
कहीं हैं तैयार मंसूबे
मुझे परवाह नहीं सब की
यह तो जीवन झमेला हैं, मुझे चलना अकेला हैं…
जो थे जनसंघ के नायक
थे वो माँ हिन्दी के गायक
रहें जब तक प्राण प्राणों में
मुसीबतों को धकेला हैं, मुझे चलना अकेला हैं….
सभी को एक रोज हैं जाना
किया वो सब जो था ठाना
मैं कभी हारा नहीं थक कर
जीवन कितना कसैला हैं, मुझे चलना अकेला हैं…
समय की मांग हर निर्णय
देश हित ना किया परिणय
कभी करगिल कभी पोकरण
दाग सिर कंधार झेला हैं, मुझे चलना अकेला हैं….
देखा युग स्वपन सदियों का
भारत महान देश नदियों का
मिले जब, धारा से धारा
बहें धोरों में रेला हैं, मुझे चलना अकेला हैं…..
सूना लोकतंत्र का पटल
टूटा विश्वास जब अटल
कहीं खोया धरा का नूर
भाग्य ने जब खेल खेला हैं,
मुझे चलना अकेला हैं..
मुझे चलना अकेला हैं..
दुष्यंत कुमार ओझा
उदयपुर राजस्थान
9214363088